Vertaling van de betekenissen Edele Qur'an - Indische vertaling - Aziz Al-Haq Al-Amri

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94 : 2

قُلْ اِنْ كَانَتْ لَكُمُ الدَّارُ الْاٰخِرَةُ عِنْدَ اللّٰهِ خَالِصَةً مِّنْ دُوْنِ النَّاسِ فَتَمَنَّوُا الْمَوْتَ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِیْنَ ۟

(ऐ नबी!) आप कह दीजिए : यदि आख़िरत का घर अल्लाह के पास सब लोगों को छोड़कर विशेष रूप से तुम्हारे ही लिए है, तो तुम मौत की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो। info
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95 : 2

وَلَنْ یَّتَمَنَّوْهُ اَبَدًا بِمَا قَدَّمَتْ اَیْدِیْهِمْ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌۢ بِالظّٰلِمِیْنَ ۟

और वे हरगिज़ उसकी कामना कभी नहीं करेंगे, उसके कारण जो उनके हाथों ने आगे भेजा और अल्लाह अत्याचारियों को ख़ूब जानने वाला है। info
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96 : 2

وَلَتَجِدَنَّهُمْ اَحْرَصَ النَّاسِ عَلٰی حَیٰوةٍ ۛۚ— وَمِنَ الَّذِیْنَ اَشْرَكُوْا ۛۚ— یَوَدُّ اَحَدُهُمْ لَوْ یُعَمَّرُ اَلْفَ سَنَةٍ ۚ— وَمَا هُوَ بِمُزَحْزِحِهٖ مِنَ الْعَذَابِ اَنْ یُّعَمَّرَ ؕ— وَاللّٰهُ بَصِیْرٌ بِمَا یَعْمَلُوْنَ ۟۠

और निःसंदेह तुम उन्हें सब लोगों से बढ़कर किसी भी तरह जीने का लोभी पाओगे और उनसे भी जिन्होंने शिर्क किया। उनका (हर) एक व्यक्ति चाहता है काश! उसे हज़ार वर्ष की आयु दी जाए। हालाँकि यह उसे अज़ाब से बचाने वाला नहीं कि उसे लंबी आयु दी जाए और अल्लाह ख़ूब देखने वाला है, जो कुछ वे कर रहे हैं। info
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97 : 2

قُلْ مَنْ كَانَ عَدُوًّا لِّجِبْرِیْلَ فَاِنَّهٗ نَزَّلَهٗ عَلٰی قَلْبِكَ بِاِذْنِ اللّٰهِ مُصَدِّقًا لِّمَا بَیْنَ یَدَیْهِ وَهُدًی وَّبُشْرٰی لِلْمُؤْمِنِیْنَ ۟

(ऐ नबी!)[46] कह दीजिए कि जो व्यक्ति जिबरील का शत्रु हो, तो निःसंदेह उसने इसे आपके दिल पर अल्लाह के आदेश से उतारा है, उसकी पुष्टि करने वाला है, जो इससे पूर्व है तथा ईमान वालों के लिए मार्गदर्शन एवं शुभ समाचार है। info

46. यहूदी केवल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके अनुयायियों ही को बुरा नहीं कहते थे, वे अल्लाह के फ़रिश्ते जिबरील को भी गालियाँ देते थे कि वह दया का नहीं, प्रकोप का फ़रिश्ता है। और कहते थे कि हमारा मित्र मीकाईल है।

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98 : 2

مَنْ كَانَ عَدُوًّا لِّلّٰهِ وَمَلٰٓىِٕكَتِهٖ وَرُسُلِهٖ وَجِبْرِیْلَ وَمِیْكٰىلَ فَاِنَّ اللّٰهَ عَدُوٌّ لِّلْكٰفِرِیْنَ ۟

जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील तथा मीकाल का शत्रु हो, तो निःसंदेह अल्लाह सब काफ़िरों का शत्रु है।[47] info

47. आयत का भावार्थ यह है कि जिसने अल्लाह के किसी रसूल - चाहे वह फ़रिश्ता हो या इनसान - से बैर रखा, तो वह सभी रसूलों का शत्रु तथा कुकर्मी है। (इब्ने कसीर)

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99 : 2

وَلَقَدْ اَنْزَلْنَاۤ اِلَیْكَ اٰیٰتٍۢ بَیِّنٰتٍ ۚ— وَمَا یَكْفُرُ بِهَاۤ اِلَّا الْفٰسِقُوْنَ ۟

और निःसंदेह हमने (ऐ नबी!) आपकी ओर खुली आयतें उतारी हैं और उनका इनकार केवल वही लोग[48] करते हैं, जो फ़ासिक़ (अवज्ञा करने वाले) हैं। info

48. इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि यहूदियों के विद्वान इब्ने सूरिया ने कहा : ऐ मुह़म्मद! (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आप हमारे पास कोई ऐसी चीज़ नहीं लाए जिसे हम पहचानते हों, और न आपपर कोई खुली आयत उतारी गई कि हम आपका अनुसरण करें। इसपर यह आयत उतरी। (इब्ने जरीर)

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100 : 2

اَوَكُلَّمَا عٰهَدُوْا عَهْدًا نَّبَذَهٗ فَرِیْقٌ مِّنْهُمْ ؕ— بَلْ اَكْثَرُهُمْ لَا یُؤْمِنُوْنَ ۟

और क्या जब कभी उन्होंने कोई वचन दिया, तो उनके एक समूह ने उसे तोड़ दिया? बल्कि उनमें अधिकतर ईमान नहीं रखते। info
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101 : 2

وَلَمَّا جَآءَهُمْ رَسُوْلٌ مِّنْ عِنْدِ اللّٰهِ مُصَدِّقٌ لِّمَا مَعَهُمْ نَبَذَ فَرِیْقٌ مِّنَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ ۙۗ— كِتٰبَ اللّٰهِ وَرَآءَ ظُهُوْرِهِمْ كَاَنَّهُمْ لَا یَعْلَمُوْنَ ۟ؗ

तथा जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक रसूल उसकी पुष्टि करने वाला आया,[49] जो उनके पास है, तो उन लोगों में से एक समूह ने, जिन्हें पुस्तक दी गई थी, अल्लाह की पुस्तक को अपनी पीठों के पीछे ऐसे फेंक दिया, जैसे वे नहीं जानते। info

49. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ुरआन के साथ आ गए।

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