97. अर्थात "ह़मराउल असद" से मदीन वापस हुए।
99. अर्थात उन्हें सांसारिक सुःख-सुविधा देना। भावार्थ यह है कि इस संसार में अल्लाह, सत्यासत्य, न्याय तथा अत्याचार सब के लिए अवसर देता है। परंतु इससे धोखा नहीं खाना चाहिए, यह देखना चाहिए कि परलोक की सफलता किस में है। सत्य ही स्थायी है तथा असत्य को ध्वस्त हो जाना है। 100. यह स्वभाविक नियम है कि पाप करने से पापाचारी में पाप करने की भावना अधिक हो जाती है।
101. अर्थात तुम्हें बता दे कि कौन ईमान वाला और कौन मुनाफ़िक़ (पाखंडी) है।
102. अर्थात धन-धान्य की ज़कात नहीं देते। 103. सह़ीह़ बुखारी में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : जिसे अल्लाह ने धन दिया है, और वह उस की ज़कात नहीं देता, तो प्रलय के दिन उसका धन गंजा सर्प बना दिया जाएगा, जो उसके गले का हार बन जाएगा। और उसे अपने जबड़ों से पकड़ेगा, तथा कहेगा कि मैं तुम्हारा कोष हुँ! मैं तुम्हारा धन हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4565) 104. अर्थात प्रलय के दिन वही अकेला सब का स्वामी होगा।