ಪವಿತ್ರ ಕುರ್‌ಆನ್ ಅರ್ಥಾನುವಾದ - ಹಿಂದಿ ಅನುವಾದ - ಅಝೀಝ್ ಅಲ್-ಹಕ್ ಅಲ್-ಉಮರಿ

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92 : 3

لَنْ تَنَالُوا الْبِرَّ حَتّٰی تُنْفِقُوْا مِمَّا تُحِبُّوْنَ ؕ۬— وَمَا تُنْفِقُوْا مِنْ شَیْءٍ فَاِنَّ اللّٰهَ بِهٖ عَلِیْمٌ ۟

तुम नेकी[49] को कदापि नहीं प्राप्त कर सकते, जब तक तुम उन चीज़ों में से (अल्लाह के मार्ग में) खर्च न करो, जो तुम्हें प्रिय हैं। तथा तुम जो चीज़ भी खर्च करोगे, निःसंदेह अल्लाह उसे भली-भांति जानता है। info

49. अर्थात नेकी का फल स्वर्ग।

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93 : 3

كُلُّ الطَّعَامِ كَانَ حِلًّا لِّبَنِیْۤ اِسْرَآءِیْلَ اِلَّا مَا حَرَّمَ اِسْرَآءِیْلُ عَلٰی نَفْسِهٖ مِنْ قَبْلِ اَنْ تُنَزَّلَ التَّوْرٰىةُ ؕ— قُلْ فَاْتُوْا بِالتَّوْرٰىةِ فَاتْلُوْهَاۤ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِیْنَ ۟

खाने की समस्त चीज़ें बनी इसराईल के लिए हलाल (वैध) थीं, सिवाय उसके जिसे इसराईल (याक़ूब अलैहिस्सलाम)[50] ने तौरात उतरने से पहले अपने ऊपर हराम (अवैध) कर लिया था। (ऐ नबी!) आप कह दीजिए कि यदि तुम सच्चे हो, तो तौरात लाओ और उसे पढ़ो। info

50. जब क़ुरआन ने यह कहा कि यहूद पर बहुत से स्वच्छ खाद्य पदार्थ उनके अत्याचार के कारण अवैध कर दिए गए। (देखिए : सूरतुन-निसा आयत : 160, सूरतुल- अन्आम, आयत : 146)। अन्यथा यह सभी इबराहीम (अलैहिस्सलाम) के युग में वैध थे। तो यहूद ने इसे झुठलाया तथा कहने लगे कि यह सब तो इबराहीम अलैहिस्सलाम के युग ही से अवैथ चले आ रहे हैं। इसी पर ये आयतें उतरीं कि तौरात से इसका प्रमाण प्रस्तुत करो कि ये इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ही के युग से अवैध हैं। यह और बात है कि इसराईल ने कुछ चीज़ों जैसे ऊँट का मांस रोग अथवा मनौती के कारण अपने लिए स्वयं अवैध कर लिया था। यहाँ यह याद रखें कि इस्लाम में किसी उचित चीज़ को अनुचित करने की अनुमति किसी को नहीं है। (देखिए : शौकानी)

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94 : 3

فَمَنِ افْتَرٰی عَلَی اللّٰهِ الْكَذِبَ مِنْ بَعْدِ ذٰلِكَ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ ۟ؔ

अब इसके बाद भी जो व्यक्ति अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगाए, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी हैं। info
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95 : 3

قُلْ صَدَقَ اللّٰهُ ۫— فَاتَّبِعُوْا مِلَّةَ اِبْرٰهِیْمَ حَنِیْفًا ؕ— وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِیْنَ ۟

(ऐ नबी!) आप कह दीजिए कि अल्लाह ने सच कहा है। अतः तुम इबराहीम (अलैहिस्सलाम) के धर्म का अनुसरण करो, जो एकेश्वरवादी थे और वह बहुदेववादियों में से नहीं थे। info
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96 : 3

اِنَّ اَوَّلَ بَیْتٍ وُّضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِیْ بِبَكَّةَ مُبٰرَكًا وَّهُدًی لِّلْعٰلَمِیْنَ ۟ۚ

निःसंदेह पहला घर जो मानव के लिए बनाया गया, वह वही है जो मक्का में है, जो बरकत वाला तथा समस्त संसार के लिए मार्गदर्शन है। info
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97 : 3

فِیْهِ اٰیٰتٌۢ بَیِّنٰتٌ مَّقَامُ اِبْرٰهِیْمَ ۚ۬— وَمَنْ دَخَلَهٗ كَانَ اٰمِنًا ؕ— وَلِلّٰهِ عَلَی النَّاسِ حِجُّ الْبَیْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ اِلَیْهِ سَبِیْلًا ؕ— وَمَنْ كَفَرَ فَاِنَّ اللّٰهَ غَنِیٌّ عَنِ الْعٰلَمِیْنَ ۟

उसमें खुली निशानियाँ हैं, (जिनमें) मक़ामे इबराहीम[51] है, तथा जो उसमें प्रवेश कर गया, वह सुरक्षित हो गया। तथा अल्लाह के लिए लोगों पर इस घर का हज्ज अनिवार्य है, जो वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ्य रखता हो, और जिसने इनकार किया तो निःसंदेह अल्लाह (उससे, बल्कि) समस्त संसार से निस्पृह (बेनियाज़) है। info

51. अर्थात वह पत्थर जिसपर खड़े होकर इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ने काबा का निर्माण किया, जिसपर उनके पैरों के निशान आज तक हैं।

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98 : 3

قُلْ یٰۤاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَكْفُرُوْنَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ ۖۗ— وَاللّٰهُ شَهِیْدٌ عَلٰی مَا تَعْمَلُوْنَ ۟

(ऐ नबी!) आप कह दीजिए कि ऐ किताब वालो! तुम अल्लाह की आयतों का क्यों इनकार करते हो, हालाँकि जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे अवगत हैॽ info
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99 : 3

قُلْ یٰۤاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَصُدُّوْنَ عَنْ سَبِیْلِ اللّٰهِ مَنْ اٰمَنَ تَبْغُوْنَهَا عِوَجًا وَّاَنْتُمْ شُهَدَآءُ ؕ— وَمَا اللّٰهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُوْنَ ۟

(ऐ नबी) आप कह दीजिए : ऐ किताब वालो! तुम ईमान लाने वालों को अल्लाह के रास्ते से क्यों रोकते होॽ तुम्हें उसमें कुटिलता की तलाश रहती है। जबकि तुम (उसके सच्चे होने के) गवाह[52] होॽ और अल्लाह तुम्हारे कर्मों से अनभिज्ञ नहीं है। info

52. अर्थात इस्लाम के सत्धर्म होने को जानते हो।

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100 : 3

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِنْ تُطِیْعُوْا فَرِیْقًا مِّنَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ یَرُدُّوْكُمْ بَعْدَ اِیْمَانِكُمْ كٰفِرِیْنَ ۟

ऐ ईमान वालो! यदि तुम किताब वालों के किसी समूह की बात मानोगे, तो वे तुम्हारे ईमान लाने के बाद फिर तुम्हें काफ़िर बना देंगे। info
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