29. अर्थात परिहास करते हुए आश्चर्य से सिर हिलाएँगे।
30. अर्थात अपनी क़ब्रों से प्रलय के दिन जीवित होकर उपस्थित हो जाओगे।
31. अर्थात कटु शब्दों द्वारा।
32. अर्थात आपका दायित्व केवल उपदेश पहुँचा देना है, वे तो स्वयं अल्लाह के समीप होने की आशा लगाए हुए हैं, कि कैसे उस तक पहुँचा जाए, तो भला वे पूज्य कैसे हो सकते हैं?
33. अर्थात मुश्रिक जिन नबियों, महापुरुषों और फ़रिश्तों को पुकारते हैं। 34. साधन से अभिप्रेत सत्कर्म और आज्ञाकारिता है।