24. इस आयत में उन अरबों का खंडन किया गया है जो फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्री कहते थे। जबकि स्वयं पुत्रियों के जन्म से उदास हो जाते थे। और कभी ऐसा भी हुआ कि उन्हें जीवित गाड़ दिया जाता था। तो बताओ यह कहाँ का न्याय है कि अपने लिए पुत्रियों को अप्रिय समझते हो और अल्लाह के लिए पुत्रियाँ बना रखे हो?
25. ताकि उससे संघर्ष करके अपना प्रभुत्व स्थापित कर लें।
26. अर्थात परलोक पर ईमान न लाने का यही स्वभाविक परिणाम है कि क़ुरआन को समझने की योग्यता खो जाती है।
27. मक्का के काफ़िर छुप-छुप कर क़ुरआन सुनते। फिर आपस में परामर्श करते कि इसका तोड़ क्या हो? और जब किसी पर संदेह हो जाता कि वह क़ुरआन से प्रभावित हो गया है, तो उसे समझाते कि इसके चक्कर में क्या पड़े हो, इसपर किसी ने जादू कर दिया है। इसलिए बहकी-बहकी बातें कर रहा है।