पवित्र कुरअानको अर्थको अनुवाद - हिन्दी अनुवाद : अजिजुल हक उमरी ।

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77 : 20

وَلَقَدْ اَوْحَیْنَاۤ اِلٰی مُوْسٰۤی ۙ۬— اَنْ اَسْرِ بِعِبَادِیْ فَاضْرِبْ لَهُمْ طَرِیْقًا فِی الْبَحْرِ یَبَسًا ۙ— لَّا تَخٰفُ دَرَكًا وَّلَا تَخْشٰی ۟

और निश्चय ही हमने मूसा की ओर वह़्य की कि मेरे बंदो को रातों-रात ले जा, फिर उनके लिए समुद्र में एक सूखा मार्ग बना,[21] न तू पकड़े जाने से भय खाएगा और न डरेगा। info

21. इसका सविस्तार वर्णन सूरतुश शुअरा : 26 में आ रहा है।

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78 : 20

فَاَتْبَعَهُمْ فِرْعَوْنُ بِجُنُوْدِهٖ فَغَشِیَهُمْ مِّنَ الْیَمِّ مَا غَشِیَهُمْ ۟ؕ

फिर फ़िरऔन ने अपनी सेना के साथ उनका पीछा किया, तो उन्हें समुद्र से उस चीज़ ने ढाँप लिया जिसने उन्हें ढाँप लिया। info
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79 : 20

وَاَضَلَّ فِرْعَوْنُ قَوْمَهٗ وَمَا هَدٰی ۟

और फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को गुमराह किया और उन्हें सीधे रास्ते पर न चलाया। info
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80 : 20

یٰبَنِیْۤ اِسْرَآءِیْلَ قَدْ اَنْجَیْنٰكُمْ مِّنْ عَدُوِّكُمْ وَوٰعَدْنٰكُمْ جَانِبَ الطُّوْرِ الْاَیْمَنَ وَنَزَّلْنَا عَلَیْكُمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوٰی ۟

ऐ बनी इसराईल! निःसंदेह हमने तुम्हें तुम्हारे शत्रुओं से छुड़ाया और तुम्हें पर्वत के दाहिनी ओर[22] का वचन दिया और तुमपर 'मन्न' और 'सल्वा' उतारा।[23] info

22. अर्ताथ तुमपर तौरात उतारने के लिए। 23. मन्न तथा सल्वा के भाष्य के लिये देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत : 57

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81 : 20

كُلُوْا مِنْ طَیِّبٰتِ مَا رَزَقْنٰكُمْ وَلَا تَطْغَوْا فِیْهِ فَیَحِلَّ عَلَیْكُمْ غَضَبِیْ ۚ— وَمَنْ یَّحْلِلْ عَلَیْهِ غَضَبِیْ فَقَدْ هَوٰی ۟

खाओ उन पवित्र चीज़ों में से, जो हमने तुम्हें प्रदान की हैं तथा उनमें हद से न बढ़ो। अन्यथा तुमपर मेरा प्रकोप उतरेगा और जिसपर मेरा प्रकोप उतरा, तो निश्चय उसका सर्वनाश हो गया। info
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82 : 20

وَاِنِّیْ لَغَفَّارٌ لِّمَنْ تَابَ وَاٰمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا ثُمَّ اهْتَدٰی ۟

और निःसंदेह मैं निश्चय उसको बहुत क्षमा करने वाला हूँ, जो तौबा करे और ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, फिर सीधे मार्ग पर चले। info
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83 : 20

وَمَاۤ اَعْجَلَكَ عَنْ قَوْمِكَ یٰمُوْسٰی ۟

और तुझे तेरी जाति से जल्दी क्या चीज़ ले आई ऐ मूसा!?[24] info

24. अर्थात तुम पर्वत की दाहिनी ओर अपनी जाति से पहले क्यों आ गए और उन्हें पीछे क्यों छोड़ दिया?

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84 : 20

قَالَ هُمْ اُولَآءِ عَلٰۤی اَثَرِیْ وَعَجِلْتُ اِلَیْكَ رَبِّ لِتَرْضٰی ۟

उसने कहा : वे मेरे पीछे ही हैं और मैं तेरी ओर जल्दी आ गया, ऐ मेरे पालनहार! ताकि तू प्रसन्न हो जाए। info
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85 : 20

قَالَ فَاِنَّا قَدْ فَتَنَّا قَوْمَكَ مِنْ بَعْدِكَ وَاَضَلَّهُمُ السَّامِرِیُّ ۟

(अल्लाह ने) फरमाया : तो निश्चय हमने तेरे पीछे तेरी जाति के लोगों को परीक्षा में डाल दिया है और सामिरी ने उन्हें पथभ्रष्ट कर दिया है। info
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86 : 20

فَرَجَعَ مُوْسٰۤی اِلٰی قَوْمِهٖ غَضْبَانَ اَسِفًا ۚ۬— قَالَ یٰقَوْمِ اَلَمْ یَعِدْكُمْ رَبُّكُمْ وَعْدًا حَسَنًا ؕ۬— اَفَطَالَ عَلَیْكُمُ الْعَهْدُ اَمْ اَرَدْتُّمْ اَنْ یَّحِلَّ عَلَیْكُمْ غَضَبٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ فَاَخْلَفْتُمْ مَّوْعِدِیْ ۟

फिर मूसा ग़ुस्से से भरा हुआ, खेद में डूबा हुआ अपनी जाति की ओर वापस आया। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! क्या तुम्हारे रब ने तुम्हें अच्छा वादा नहीं दिया था?[25] तो क्या वह अवधि तुम पर लंबी हो गई,[26] या तुमने चाहा कि तुमपर तुम्हारे रब का कोई प्रकोप उतरे? तो तुमने मेरा वादा[27] तोड़ दिया। info

25. अर्थात धर्म-पुस्तक तौरात देने का वादा। 26. अर्थात वादा की अवधि दीर्घ प्रतीत होने लगी। 27. अर्थात मेरे वापस आने तक, अल्लाह की इबादत पर स्थिर रहने की जो प्रतिज्ञा की थी।

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87 : 20

قَالُوْا مَاۤ اَخْلَفْنَا مَوْعِدَكَ بِمَلْكِنَا وَلٰكِنَّا حُمِّلْنَاۤ اَوْزَارًا مِّنْ زِیْنَةِ الْقَوْمِ فَقَذَفْنٰهَا فَكَذٰلِكَ اَلْقَی السَّامِرِیُّ ۟ۙ

उन्होंने कहा : हमने अपने अधिकार से आपके वचन का उल्लंघन नहीं किया, लेकिन लोगों[28] के गहनों का कुछ बोझ हमपर लाद दिया गया था, तो हमने उन्हें फेंक[29] दिया और ऐसे ही सामिरी[30] ने फेंक दिया। info

28. इससे अभिप्रेत फ़िरऔन की जाति है, जिनके आभूषण उन्होंने उधार ले रखे थे। 29. अर्थात अपने पास रखना नहीं चाहा, और एक अग्नि कुंड में फेंक दिया। 30. अर्थात जो कुछ उसके पास था।

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