पवित्र कुरअानको अर्थको अनुवाद - हिन्दी अनुवाद : अजिजुल हक उमरी ।

رقم الصفحة:close

external-link copy
13 : 20

وَاَنَا اخْتَرْتُكَ فَاسْتَمِعْ لِمَا یُوْحٰی ۟

और मैंने तुझे चुन[5] लिया है। अतः ध्यान से सुन, जो वह़्य की जा रही है। info

5. अर्थात नबी बना दिया।

التفاسير:

external-link copy
14 : 20

اِنَّنِیْۤ اَنَا اللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّاۤ اَنَا فَاعْبُدْنِیْ ۙ— وَاَقِمِ الصَّلٰوةَ لِذِكْرِیْ ۟

निःसंदेह मैं ही अल्लाह हूँ, मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं, तो मेरी ही इबादत कर तथा मेरे स्मरण (याद) के लिए नमाज़ स्थापित कर।[6] info

6. इबादत में नमाज़ सम्मिलित है, फिर भी उसका महत्त्व दिखाने के लिए उसका विशेष आदेश दिया गया है।

التفاسير:

external-link copy
15 : 20

اِنَّ السَّاعَةَ اٰتِیَةٌ اَكَادُ اُخْفِیْهَا لِتُجْزٰی كُلُّ نَفْسٍ بِمَا تَسْعٰی ۟

निश्चय क़ियामत आने वाली है, मैं क़रीब हूँ कि उसे छिपाकर रखूँ। ताकि प्रत्येक प्राणी को उसका बदला दिया जाए, जो वह प्रयास करता है। info
التفاسير:

external-link copy
16 : 20

فَلَا یَصُدَّنَّكَ عَنْهَا مَنْ لَّا یُؤْمِنُ بِهَا وَاتَّبَعَ هَوٰىهُ فَتَرْدٰی ۟

अतः तुझे उससे वह व्यक्ति कहीं रोक न दे, जो उसपर ईमान (विश्वास) नहीं रखता और अपनी इच्छा के पालन में लगा है, अन्यथा तेरा नाश हो जाएगा। info
التفاسير:

external-link copy
17 : 20

وَمَا تِلْكَ بِیَمِیْنِكَ یٰمُوْسٰی ۟

और ऐ मूसा! यह तेरे दाहिने हाथ में क्या है? info
التفاسير:

external-link copy
18 : 20

قَالَ هِیَ عَصَایَ ۚ— اَتَوَكَّؤُا عَلَیْهَا وَاَهُشُّ بِهَا عَلٰی غَنَمِیْ وَلِیَ فِیْهَا مَاٰرِبُ اُخْرٰی ۟

उसने कहा : यह मेरी लाठी है। मैं इसपर टेक लगाता हूँ और इससे अपनी बकरियों के लिए पत्ते झाड़ता हूँ और मेरे लिए इसमें और भी कई ज़रूरतें हैं। info
التفاسير:

external-link copy
19 : 20

قَالَ اَلْقِهَا یٰمُوْسٰی ۟

फरमाया : इसे फेंक दे, ऐ मूसा! info
التفاسير:

external-link copy
20 : 20

فَاَلْقٰىهَا فَاِذَا هِیَ حَیَّةٌ تَسْعٰی ۟

तो उसने उसे फेंक दिया और सहसा वह एक साँप था, जो दोड़ रहा था। info
التفاسير:

external-link copy
21 : 20

قَالَ خُذْهَا وَلَا تَخَفْ ۫— سَنُعِیْدُهَا سِیْرَتَهَا الْاُوْلٰی ۟

फरमाया : इसे पकड़ ले और डर मत, जल्द ही हम इसे इसकी प्रथम स्थिति में लौटा देंगे। info
التفاسير:

external-link copy
22 : 20

وَاضْمُمْ یَدَكَ اِلٰی جَنَاحِكَ تَخْرُجْ بَیْضَآءَ مِنْ غَیْرِ سُوْٓءٍ اٰیَةً اُخْرٰی ۟ۙ

और अपना हाथ अपनी कांख (बग़ल) की ओर लगा दे, वह बिना किसी दोष के सफेद (चमकता हुआ) निकलेगा, जबकि यह एक और निशानी है। info
التفاسير:

external-link copy
23 : 20

لِنُرِیَكَ مِنْ اٰیٰتِنَا الْكُبْرٰی ۟ۚ

ताकि हम तुझे अपनी कुछ बड़ी निशानियाँ दिखाएँ। info
التفاسير:

external-link copy
24 : 20

اِذْهَبْ اِلٰی فِرْعَوْنَ اِنَّهٗ طَغٰی ۟۠

फ़िरऔन के पास जा, निश्चय वह सरकश हो गया है। info
التفاسير:

external-link copy
25 : 20

قَالَ رَبِّ اشْرَحْ لِیْ صَدْرِیْ ۟ۙ

उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरे लिए मेरा सीना खोल दे। info
التفاسير:

external-link copy
26 : 20

وَیَسِّرْ لِیْۤ اَمْرِیْ ۟ۙ

तथा मेरे लिए मेरा काम सरल कर दे। info
التفاسير:

external-link copy
27 : 20

وَاحْلُلْ عُقْدَةً مِّنْ لِّسَانِیْ ۟ۙ

और मेरी ज़बान की गाँठ खोल दे। info
التفاسير:

external-link copy
28 : 20

یَفْقَهُوْا قَوْلِیْ ۪۟

ताकि वे मेरी बात समझ लें। info
التفاسير:

external-link copy
29 : 20

وَاجْعَلْ لِّیْ وَزِیْرًا مِّنْ اَهْلِیْ ۟ۙ

तथा मेरे लिए मेरे अपने घरवालों में से एक सहायकबना दे। info
التفاسير:

external-link copy
30 : 20

هٰرُوْنَ اَخِی ۟ۙ

हारून को, जो मेरा भाई है। info
التفاسير:

external-link copy
31 : 20

اشْدُدْ بِهٖۤ اَزْرِیْ ۟ۙ

उसके साथ मेरी पीठ मज़बूत़ कर दे। info
التفاسير:

external-link copy
32 : 20

وَاَشْرِكْهُ فِیْۤ اَمْرِیْ ۟ۙ

और उसे मेरे काम में शरीक कर दे। info
التفاسير:

external-link copy
33 : 20

كَیْ نُسَبِّحَكَ كَثِیْرًا ۟ۙ

ताकि हम तेरी बहुत ज़्यादा पवित्रता बयान करें। info
التفاسير:

external-link copy
34 : 20

وَّنَذْكُرَكَ كَثِیْرًا ۟ؕ

तथा हम तुझे बहुत ज़्यादा याद करें। info
التفاسير:

external-link copy
35 : 20

اِنَّكَ كُنْتَ بِنَا بَصِیْرًا ۟

निःसंदेह तू हमेशा हमारी स्थिति को भली प्रकार देखने वाला है। info
التفاسير:

external-link copy
36 : 20

قَالَ قَدْ اُوْتِیْتَ سُؤْلَكَ یٰمُوْسٰی ۟

फरमाया : निःसंदेह तुझे दिया गया जो तूने माँगा, ऐ मूसा! info
التفاسير:

external-link copy
37 : 20

وَلَقَدْ مَنَنَّا عَلَیْكَ مَرَّةً اُخْرٰۤی ۟ۙ

और निश्चय ही हमने तुझपर एक और बार भी उपकार किया।[7] info

7. यह उस समय की बात है जब मूसा का जन्म हुआ। उस समय फ़िरऔन का आदेश था कि बनी इसराईल में जो भी शिशु जन्म ले, उसे वध कर दिया जाए।

التفاسير: