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32 : 5

مِنْ اَجْلِ ذٰلِكَ ؔۛۚ— كَتَبْنَا عَلٰی بَنِیْۤ اِسْرَآءِیْلَ اَنَّهٗ مَنْ قَتَلَ نَفْسًا بِغَیْرِ نَفْسٍ اَوْ فَسَادٍ فِی الْاَرْضِ فَكَاَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِیْعًا ؕ— وَمَنْ اَحْیَاهَا فَكَاَنَّمَاۤ اَحْیَا النَّاسَ جَمِیْعًا ؕ— وَلَقَدْ جَآءَتْهُمْ رُسُلُنَا بِالْبَیِّنٰتِ ؗ— ثُمَّ اِنَّ كَثِیْرًا مِّنْهُمْ بَعْدَ ذٰلِكَ فِی الْاَرْضِ لَمُسْرِفُوْنَ ۟

इसी कारण, हमने बनी इसराईल पर लिख दिया[25] कि निःसंदेह जिसने किसी प्राणी की किसी प्राणी के खून (के बदले) अथवा धरती में विद्रोह के बिना हत्या कर दी, तो मानो उसने सारे इनसानों की हत्या[26] कर दी, और जिसने उसे जीवन प्रदान किया, तो मानो उसने सारे इनसानों को जीवन प्रदान किया। तथा निःसंदेह उनके पास हमारे रसूल स्पष्ट प्रमाण लेकर आए। फिर निःसंदेह उनमें से बहुत से लोग उसके बाद भी धरती में निश्चय सीमा से आगे बढ़ने वाले हैं। info

25. अर्थात नियम बना दिया। इस्लाम में भी यही नियम और आदेश है। 26. क्योंकि सभी प्राण, प्राण होने में बराबर हैं।

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33 : 5

اِنَّمَا جَزٰٓؤُا الَّذِیْنَ یُحَارِبُوْنَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَیَسْعَوْنَ فِی الْاَرْضِ فَسَادًا اَنْ یُّقَتَّلُوْۤا اَوْ یُصَلَّبُوْۤا اَوْ تُقَطَّعَ اَیْدِیْهِمْ وَاَرْجُلُهُمْ مِّنْ خِلَافٍ اَوْ یُنْفَوْا مِنَ الْاَرْضِ ؕ— ذٰلِكَ لَهُمْ خِزْیٌ فِی الدُّنْیَا وَلَهُمْ فِی الْاٰخِرَةِ عَذَابٌ عَظِیْمٌ ۟ۙ

जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से जंग करते हैं तथा धरती में उपद्रव करने का प्रयास करते हैं, उनका दंड यही है कि उन्हें बुरी तरह क़त्ल कर दिया जाए, या उन्हें बुरी तरह सूली दी जाए, या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं से बुरी तरह काट दिए जाएँ, या उन्हें (उस) देश से निकाल दिया जाए। यह उनके लिए दुनिया में अपमान है तथा आख़िरत में उनके लिए बहुत बड़ी यातना है। info
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34 : 5

اِلَّا الَّذِیْنَ تَابُوْا مِنْ قَبْلِ اَنْ تَقْدِرُوْا عَلَیْهِمْ ۚ— فَاعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟۠

परंतु जो लोग इससे पहले तौबा कर लें कि तुम उनपर क़ाबू पाओ, तो जान लो कि निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है। info
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35 : 5

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ وَابْتَغُوْۤا اِلَیْهِ الْوَسِیْلَةَ وَجَاهِدُوْا فِیْ سَبِیْلِهٖ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ۟

ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो और उसकी ओर निकटता[27] तलाश करो तथा उसके मार्ग में जिहाद करो, ताकि तुम सफल हो जाओ। info

27. "वसीला" का अर्थ है : अल्लाह की आज्ञा का पालन करने और उसकी अवज्ञा से बचने तथा ऐसे कर्मों के करने का, जिनसे वह प्रसन्न हो। वसीला ह़दीस में स्वर्ग के उस सर्वोच्च स्थान को भी कहा गया है, जो स्वर्ग में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मिलेगा, जिसका नाम "मक़ामे मह़मूद" है। इसीलिए आपने कहा : जो अज़ान के पश्चात् मेरे लिए वसीला की दुआ करेगा, वह मेरी सिफारिश के योग्य होगा। (बुख़ारी : 4719) पीरों और फ़क़ीरों आदि की समाधियों को वसीला समझना निर्मूल और शिर्क है।

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36 : 5

اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا لَوْ اَنَّ لَهُمْ مَّا فِی الْاَرْضِ جَمِیْعًا وَّمِثْلَهٗ مَعَهٗ لِیَفْتَدُوْا بِهٖ مِنْ عَذَابِ یَوْمِ الْقِیٰمَةِ مَا تُقُبِّلَ مِنْهُمْ ۚ— وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟

निःसंदेह जिन लोगों ने कुफ़्र किया, यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो धरती में है और उतना ही उसके साथ और भी हो, ताकि वे यह सब कुछ क़ियामत के दिन की यातना से छुड़ौती के रूप मे दे दें, तो उनकी ओर से स्वीकार नहीं किया जाएगा और उनके लिए दर्दनाक यातना है। info
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