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51 : 5

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوا الْیَهُوْدَ وَالنَّصٰرٰۤی اَوْلِیَآءَ ؔۘ— بَعْضُهُمْ اَوْلِیَآءُ بَعْضٍ ؕ— وَمَنْ یَّتَوَلَّهُمْ مِّنْكُمْ فَاِنَّهٗ مِنْهُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الظّٰلِمِیْنَ ۟

ऐ ईमान वालो! तुम यहूदियों तथा ईसाइयों को मित्र न बनाओ। वे परस्पर एक-दूसरे के मित्र हैं। और तुममें से जो उन्हें मित्र बनाएगा, तो निश्चय वह उन्हीं में से है। निःसंदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्गदर्शन प्रदान नहीं करता। info
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52 : 5

فَتَرَی الَّذِیْنَ فِیْ قُلُوْبِهِمْ مَّرَضٌ یُّسَارِعُوْنَ فِیْهِمْ یَقُوْلُوْنَ نَخْشٰۤی اَنْ تُصِیْبَنَا دَآىِٕرَةٌ ؕ— فَعَسَی اللّٰهُ اَنْ یَّاْتِیَ بِالْفَتْحِ اَوْ اَمْرٍ مِّنْ عِنْدِهٖ فَیُصْبِحُوْا عَلٰی مَاۤ اَسَرُّوْا فِیْۤ اَنْفُسِهِمْ نٰدِمِیْنَ ۟ؕ

फिर (ऐ नबी!) आप उन लोगों को देखेंगे जिनके दिलों में एक रोग है कि वे दौड़कर उनमें जाते हैं। वे कहते हैं : हम डरते हैं कि हमपर कोई विपत्ति (न) आ जाए। तो निकट है कि अल्लाह विजय प्रदान कर दे या अपनी ओर से कोई और मामला (प्रकट कर दे)। फिर वे उसपर, जो उन्होंने अपने दिलों में छिपाया था, लज्जित हो जाएँ। info
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53 : 5

وَیَقُوْلُ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اَهٰۤؤُلَآءِ الَّذِیْنَ اَقْسَمُوْا بِاللّٰهِ جَهْدَ اَیْمَانِهِمْ ۙ— اِنَّهُمْ لَمَعَكُمْ ؕ— حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فَاَصْبَحُوْا خٰسِرِیْنَ ۟

तथा ईमान वाले कहते हैं : क्या यही लोग हैं, जिन्होंने अपनी मज़बूत क़समें खाते हुए अल्लाह की क़सम खाई थी कि निःसंदेह वे निश्चय तुम्हारे साथ हैं। उनके कार्य नष्ट हो गए, अतः वे घाटा उठाने वाले हो गए। info
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54 : 5

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مَنْ یَّرْتَدَّ مِنْكُمْ عَنْ دِیْنِهٖ فَسَوْفَ یَاْتِی اللّٰهُ بِقَوْمٍ یُّحِبُّهُمْ وَیُحِبُّوْنَهٗۤ ۙ— اَذِلَّةٍ عَلَی الْمُؤْمِنِیْنَ اَعِزَّةٍ عَلَی الْكٰفِرِیْنَ ؗ— یُجَاهِدُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَلَا یَخَافُوْنَ لَوْمَةَ لَآىِٕمٍ ؕ— ذٰلِكَ فَضْلُ اللّٰهِ یُؤْتِیْهِ مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِیْمٌ ۟

ऐ ईमान वालो! तुममें से जो कोई अपने धर्म से फिर जाए, तो अल्लाह निकट ही ऐसे लोग लाएगा, जिनसे वह प्रेम करेगा और वे उससे प्रेम करेंगे। वे ईमान वालों के प्रति बहुत नरम तथा काफ़िरों के प्रति बहुत कठोर[36] होंगे, अल्लाह की राह में जिहाद करेंगे और किसी निंदा करने वाले की निंदा से नहीं डरेंगे। यह अल्लाह का अनुग्रह है, वह उसे देता है जिसको चाहता है और अल्लाह विस्तार वाला, सब कुछ जानने वाला है। info

36. कठोर होने का अर्थ यह है कि वह युद्ध तथा अपने धर्म की रक्षा के समय उनके दबाव में नहीं आएँगे, न जिहाद की निंदा उन्हें अपने धर्म की रक्षा से रोक सकेगी।

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55 : 5

اِنَّمَا وَلِیُّكُمُ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوا الَّذِیْنَ یُقِیْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَیُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَهُمْ رٰكِعُوْنَ ۟

तुम्हारे मित्र तो केवल अल्लाह और उसका रसूल तथा वे लोग हैं जो ईमान लाए, जो नमाज़ क़ायम करते और ज़कात देते हैं और वे (अल्लाह के आगे) झुकने वाले हैं। info
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56 : 5

وَمَنْ یَّتَوَلَّ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا فَاِنَّ حِزْبَ اللّٰهِ هُمُ الْغٰلِبُوْنَ ۟۠

तथा जो कोई अल्लाह और उसके रसूल को और उन लोगों को दोस्त बनाए, जो ईमान लाए हैं, तो निश्चय अल्लाह का दल ही वे लोग हैं जो प्रभावी हैं। info
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57 : 5

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوا الَّذِیْنَ اتَّخَذُوْا دِیْنَكُمْ هُزُوًا وَّلَعِبًا مِّنَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَالْكُفَّارَ اَوْلِیَآءَ ۚ— وَاتَّقُوا اللّٰهَ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْنَ ۟

ऐ ईमान वालो! उन लोगों को जिन्होंने तुम्हारे धर्म को उपहास और खेल बना लिया, उन लोगों में से जिन्हें तुमसे पहले पुस्तक दी गई है और काफ़िरों को मित्र न बनाओ और अल्लाह से डरो, यदि तुम ईमान वाले हो। info
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