আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - আল-মুখতাচাৰ ফী তাফছীৰিল কোৰআনিল কাৰীমৰ হিন্দী অনুবাদ

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21 : 25

وَقَالَ الَّذِیْنَ لَا یَرْجُوْنَ لِقَآءَنَا لَوْلَاۤ اُنْزِلَ عَلَیْنَا الْمَلٰٓىِٕكَةُ اَوْ نَرٰی رَبَّنَا ؕ— لَقَدِ اسْتَكْبَرُوْا فِیْۤ اَنْفُسِهِمْ وَعَتَوْ عُتُوًّا كَبِیْرًا ۟

और जो काफ़िर हमसे मिलने की आशा नहीं रखते और हमारी सज़ा से नहीं डरते, उन्होंने कहा : अल्लाह ने हमारे पास फ़रिश्ते क्यों नहीं भेजे, जो हमें मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सत्यता के विषय में बताते, अथवा हम अपने पालनहार को अपनी आँखों से देख लेते और वह हमें इस विषय में सब कुछ बता देता? निश्चित रूप से इन लोगों के दिलों में अहंकार इतना बढ़ गया है कि उसने इन्हें ईमान से रोक दिया है और वे ऐसा कहकर कुफ़्र और सरकशी में सीमा को पार कर चुके हैं। info
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22 : 25

یَوْمَ یَرَوْنَ الْمَلٰٓىِٕكَةَ لَا بُشْرٰی یَوْمَىِٕذٍ لِّلْمُجْرِمِیْنَ وَیَقُوْلُوْنَ حِجْرًا مَّحْجُوْرًا ۟

जिस दिन काफ़िर लोग फ़रिश्तों को देखेंगे अपनी मौत के समय, क़ब्र की ज़िंदगी में, दोबारा जीवित किए जाते समय तथा उस समय जब वे हिसाब-किताब के लिए धकेलकर ले जाए जाएँगे और जब वे जहन्नम में डाले जाएँगे- तो इन सभी स्थितियों में उनके लिए कोई अच्छी खबर नहीं होगी। जबकि ईमान वालों का मामला इसके विपरीत होगा। तथा फ़रिश्ते उन अपराधियों से कहेंगे : अल्लाह की ओर से तुम्हें कोई खुशख़बरी मिलने वाली नहीं है। info
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23 : 25

وَقَدِمْنَاۤ اِلٰی مَا عَمِلُوْا مِنْ عَمَلٍ فَجَعَلْنٰهُ هَبَآءً مَّنْثُوْرًا ۟

तथा काफ़िरों ने इस दुनिया में नेकी और भलाई के जो कार्य किए होंगे, हम उसकी ओर बढ़कर उसे उनके कुफ़्र के कारण उस बिखरी हुई धूल की तरह अमान्य और बेकार कर देंगे, जिसे देखने वाला खिड़की से अंदर आने वाली सूर्य की किरणों में देखता है। info
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24 : 25

اَصْحٰبُ الْجَنَّةِ یَوْمَىِٕذٍ خَیْرٌ مُّسْتَقَرًّا وَّاَحْسَنُ مَقِیْلًا ۟

उस दिन जन्नत वाले मोमिन इन काफ़िरों से बेहतर स्थिति और आराम की बेहतर जगह में होंगे। यह उनके अल्लाह पर ईमान और उनके अच्छे कर्मों के कारण होगा। info
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25 : 25

وَیَوْمَ تَشَقَّقُ السَّمَآءُ بِالْغَمَامِ وَنُزِّلَ الْمَلٰٓىِٕكَةُ تَنْزِیْلًا ۟

तथा (ऐ रसूल!) उस दिन को याद करें, जब आकाश फट जाएगा और पतले सफ़ेद बादल दिखाई देंगे, तथा फ़रिश्तों को उनकी बड़ी संख्या के कारण निरंतर 'महशर' की भूमि में उतारा जाएगा। info
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26 : 25

اَلْمُلْكُ یَوْمَىِٕذِ ١لْحَقُّ لِلرَّحْمٰنِ ؕ— وَكَانَ یَوْمًا عَلَی الْكٰفِرِیْنَ عَسِیْرًا ۟

उस दिन वास्तविक राज्य एवं हक़ीक़ी बादशाहत केवल 'रहमान' की होगी और वह दिन काफ़िरों के लिए बड़ा कठिन होगा। जबकि ईमान वालों की स्थिति इसके विपरीत होगी। उनके लिए वह बहुत आसान होगा। info
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27 : 25

وَیَوْمَ یَعَضُّ الظَّالِمُ عَلٰی یَدَیْهِ یَقُوْلُ یٰلَیْتَنِی اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُوْلِ سَبِیْلًا ۟

और (ऐ रसूल!) उस दिन को याद करें, जिस दिन अत्याचारी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण न करने के कारण, घोर पछतावे से अपने दोनों हाथ चबाएगा और कहेगा : ऐ काश! मैंने रसूल का उस चीज़ में पालन किया होता जो कुछ वह अपने पालनहार की ओर से लाए थे और उसके साथ उद्धार का मार्ग अपनाया होता। info
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28 : 25

یٰوَیْلَتٰی لَیْتَنِیْ لَمْ اَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِیْلًا ۟

तथा वह बड़े अफसोस के साथ अपने आपको अभिशाप देते हुए कहेगा : हाय मेरा विनाश! काश मैंने फलाँ काफ़िर व्यक्ति को मित्र न बनाया होता। info
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29 : 25

لَقَدْ اَضَلَّنِیْ عَنِ الذِّكْرِ بَعْدَ اِذْ جَآءَنِیْ ؕ— وَكَانَ الشَّیْطٰنُ لِلْاِنْسَانِ خَذُوْلًا ۟

निश्चय इस काफ़िर मित्र ने मुझे क़ुरआन से भटका दिया, जब कि वह रसूल के माध्यम से मेरे पास पहुँच चुका था। तथा शैतान मनुष्य को हमेशा छोड़ जाने वाला है। जब उसपर कोई मुसीबत आती है, तो उससे किनारा कर लेता है। info
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30 : 25

وَقَالَ الرَّسُوْلُ یٰرَبِّ اِنَّ قَوْمِی اتَّخَذُوْا هٰذَا الْقُرْاٰنَ مَهْجُوْرًا ۟

तथा उस दिन रसूल अपनी जाति की हालत के बारे में शिकायत करते हुए कहेगा : ऐ मेरे पालनहार! मेरी क़ौम के लोग, जिनकी ओर तूने मुझे भेजा था, इस क़ुरआन को को छोड़कर इससे दूर हो गए थे। info
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31 : 25

وَكَذٰلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نَبِیٍّ عَدُوًّا مِّنَ الْمُجْرِمِیْنَ ؕ— وَكَفٰی بِرَبِّكَ هَادِیًا وَّنَصِیْرًا ۟

ऐ रसूल! जिस प्रकार आपको आपके समुदाय द्वारा कष्ट दिया गया और लोगों को आपकी राह से रोका गया, उसी प्रकार हमने आपसे पूर्व नबियों में से प्रत्येक नबी के लिए उसके समुदाय के अपराधियों में से एक दुश्मन बना दिया। तथा आपका रब एक पथ-प्रदर्शक के रूप में पर्याप्त है जो सत्य का मार्गदर्शन करता है, तथा वह एक सहायक के रूप में पर्याप्त है, जो आपके शत्रु के विरुद्ध आपकी सहायता करता है। info
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32 : 25

وَقَالَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا لَوْلَا نُزِّلَ عَلَیْهِ الْقُرْاٰنُ جُمْلَةً وَّاحِدَةً ۛۚ— كَذٰلِكَ ۛۚ— لِنُثَبِّتَ بِهٖ فُؤَادَكَ وَرَتَّلْنٰهُ تَرْتِیْلًا ۟

और अल्लाह का इनकार करने वालों ने कहा : यह क़ुरआन रसूल पर एक ही बार में क्यों नहीं उतार दिया गया? इस तरह थोड़ा-थोड़ा करके क्यों उतारा गया? (अल्लाह कहता है :) हमने क़ुरआन को ऐसे ही थोड़ा-थोड़ा करके इसलिए उतारा, ताकि (ऐ रसूल!) हम समय-समय पर इसे उतारकर आपके दिल को दृढ़ता प्रदान करें। तथा हमने इसे थोड़ा-थोड़ा इसलिए भी उतारा, ताकि इसे समझना और याद करना आसान हो जाए। info
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এই পৃষ্ঠাৰ আয়াতসমূহৰ পৰা সংগৃহীত কিছুমান উপকাৰী তথ্য:
• الكفر مانع من قبول الأعمال الصالحة.
• 'कुफ़्र' नेक कामों के क़बूल होने की राह में बाधा है। info

• خطر قرناء السوء.
• बुरे साथियों का ख़तरा। info

• ضرر هجر القرآن.
• क़ुरआन को छोड़ने का नुक़सान। info

• من حِكَمِ تنزيل القرآن مُفَرّقًا طمأنة النبي صلى الله عليه وسلم وتيسير فهمه وحفظه والعمل به.
• क़ुरआन को थोड़ा-थोड़ा करके उतारने की हिकमतों में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दिल को मज़बूत करना और उसके समझने, याद करने तथा अमल करने को सुविधाजनक बनाना शामिल हैं। info