ترجمة معاني القرآن الكريم - الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم

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118 : 9

وَّعَلَی الثَّلٰثَةِ الَّذِیْنَ خُلِّفُوْا ؕ— حَتّٰۤی اِذَا ضَاقَتْ عَلَیْهِمُ الْاَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ وَضَاقَتْ عَلَیْهِمْ اَنْفُسُهُمْ وَظَنُّوْۤا اَنْ لَّا مَلْجَاَ مِنَ اللّٰهِ اِلَّاۤ اِلَیْهِ ؕ— ثُمَّ تَابَ عَلَیْهِمْ لِیَتُوْبُوْا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِیْمُ ۟۠

अल्लाह ने उन तीनों व्यक्तियों अर्थात् कअब बिन मालिक, मुरारा बिन रबी' और हिलाल बिन उमय्यह को भी क्षमा कर दिया, जिनके अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ तबूक की ओर निकलने से पीछे रह जाने के बाद उनकी तौबा के क़बूल होने का मामला स्थगित कर दिया गया था। चुनाँचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने लोगों को इन तीनों से अलग-थलग रहने का आदेश दे दिया, जिसपर उन्हें दु:ख और शोक ने घेर लिया, यहाँ तक कि धरती अपने विस्तार के बावजूद उनपर तंग हो गई और उन्हें जिस अकेलेपन का सामना हुआ उसके कारण उनके दिल संकुचित हो गए और उन्होंने जान लिया कि एकमात्र अल्लाह के सिवा उनके लिए कोई शरण लेने का स्थान नहीं है। इसलिए अल्लाह ने उनपर दया करते हुए उन्हें तौबा की तौफ़ीक़ दी, फिर उनकी तौबा क़बूल फरमाई। निःसंदेह वह अपने बंदों की तौबा क़बूल करने वाला, उनपर दया करने वाला है। info
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119 : 9

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ وَكُوْنُوْا مَعَ الصّٰدِقِیْنَ ۟

ऐ अल्लाह पर ईमान रखने, उसके रसूल का अनुसरण करने और उसकी शरीयत पर अमल करने वालो! अल्लाह के आदेशों का पालन करके और उसके निषेधों से बचकर अल्लाह से डरो तथा उन लोगों के साथ रहो, जो अपने ईमान तथा अपने वचन और कर्म में सच्चे हैं। क्योंकि तुम्हारे लिए मोक्ष केवल सच्चाई में है। info
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120 : 9

مَا كَانَ لِاَهْلِ الْمَدِیْنَةِ وَمَنْ حَوْلَهُمْ مِّنَ الْاَعْرَابِ اَنْ یَّتَخَلَّفُوْا عَنْ رَّسُوْلِ اللّٰهِ وَلَا یَرْغَبُوْا بِاَنْفُسِهِمْ عَنْ نَّفْسِهٖ ؕ— ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ لَا یُصِیْبُهُمْ ظَمَاٌ وَّلَا نَصَبٌ وَّلَا مَخْمَصَةٌ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَلَا یَطَـُٔوْنَ مَوْطِئًا یَّغِیْظُ الْكُفَّارَ وَلَا یَنَالُوْنَ مِنْ عَدُوٍّ نَّیْلًا اِلَّا كُتِبَ لَهُمْ بِهٖ عَمَلٌ صَالِحٌ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ لَا یُضِیْعُ اَجْرَ الْمُحْسِنِیْنَ ۟ۙ

मदीना वालों तथा उनके आस-पास के देहात के वासियों के लिए उचित नहीं है कि जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम स्वयं जिहाद के लिए निकलें, तो वे आपसे पीछे रह जाएँ। उनके लिए यह भी उचित नहीं है कि वे अपने प्राणों के मामले में कंजूसी करें और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्राण की उपेक्षा कर अपने प्राणों की रक्षा करें। बल्कि उनके लिए अनिवार्य है कि आपके प्राण की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दें; क्योंकि उन्हें अल्लाह के मार्ग में जो भी प्यास, थकान या भूख पहुँचती है, तथा वे जिस स्थान पर भी उतरते हैं, जहाँ उनकी उपस्थिति काफ़िरों के क्रोध को भड़काती है, और वे किसी दुश्मन को क़त्ल, या क़ैद या पराजय से पीड़ित करते, या ग़नीमत का धन प्राप्त करते हैं - तो उसके बदले में अल्लाह उनके लिए एक सत्कर्म का सवाब लिख देता है जिसे वह उनसे स्वीकार करता है। निःसंदेह अल्लाह सत्कर्मियों के प्रतिफल को नष्ट नहीं करता, बल्कि उन्हें उसका पूर्ण बदला देता है और उससे भी बढ़ाकर देता है। info
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121 : 9

وَلَا یُنْفِقُوْنَ نَفَقَةً صَغِیْرَةً وَّلَا كَبِیْرَةً وَّلَا یَقْطَعُوْنَ وَادِیًا اِلَّا كُتِبَ لَهُمْ لِیَجْزِیَهُمُ اللّٰهُ اَحْسَنَ مَا كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ ۟

और वे जो भी थोड़ा या अधिक धन खर्च करते हैं और जो भी घाटी पार करते हैं, तो उनके उस खर्च करने और यात्रा को लिख लिया जाता है, ताकि अल्लाह उन्हें पुरस्कृत करे। चुनाँचे वह उन्हें आख़िरत में उनके सर्वोत्तम कार्यों का बदला प्रदान करेगा। info
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122 : 9

وَمَا كَانَ الْمُؤْمِنُوْنَ لِیَنْفِرُوْا كَآفَّةً ؕ— فَلَوْلَا نَفَرَ مِنْ كُلِّ فِرْقَةٍ مِّنْهُمْ طَآىِٕفَةٌ لِّیَتَفَقَّهُوْا فِی الدِّیْنِ وَلِیُنْذِرُوْا قَوْمَهُمْ اِذَا رَجَعُوْۤا اِلَیْهِمْ لَعَلَّهُمْ یَحْذَرُوْنَ ۟۠

मोमिनों के लिए उचित नहीं है कि वे सब के सब लड़ाई के लिए निकल खड़े हों, ताकि ऐसा न हो कि यदि उनका दुश्मन उनपर गालिब आ जाए तो उनका सफ़ाया कर दिया जाए। इसलिए ऐसा क्यों नहीं किया गया कि उनका एक समूह जिहाद के लिए निकलता और एक समूह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ रहता। ताकि वे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से क़ुरआन और शरीयत के अहकाम सुनकर धर्म की समझ हासिल करते और अपनी जाति के लोगों को सचेत करते जब वे जो कुछ उन्होंने सीखा था उसे लेकर उनके पास लौटते; इस आशा में कि वे अल्लाह की यातना और उसके दंड से सावधान हो जाएँ तथा उसके आदेशों का पालन करने लगें और उसके निषेधों से बचने लगें। यह आयत उन सैन्यदलों के बारे में है, जिन्हें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आस-पास के क्षेत्रों में भेजते थे और उनके लिए अपने सहाबा के एक समूह का चयन करते थे। info
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من فوائد الآيات في هذه الصفحة:
• وجوب تقوى الله والصدق وأنهما سبب للنجاة من الهلاك.
• अल्लाह का तक़्वा (परहेज़गारी) और सच्चाई दोनों आवश्यक हैं तथा वे विनाश से बचने का एक कारण हैं। info

• عظم فضل النفقة في سبيل الله.
• अल्लाह के मार्ग में खर्च करने की महान श्रेष्ठता। info

• وجوب التفقُّه في الدين مثله مثل الجهاد، وأنه لا قيام للدين إلا بهما معًا.
• अल्लाह के धर्म की समझ हासिल करने की आवश्यकता जिहाद के समान है, और यह कि दोनों के बिना धर्म की स्थापना नहीं हो सकती। info