अल्लाह के निकट पसंदीदा नेकी केवल पूर्व या पश्चिम की ओर मुँह कर लेना और उसके बारे में मतभेद करना नहीं है। बल्कि सारी की सारी अच्छाई उस व्यक्ति में है, जो अल्लाह पर उसे एकमात्र पूज्य मानते हुए ईमान लाए, तथा क़ियामत के दिन पर और सभी फ़रिश्तों पर, और सभी अवतरित की गई किताबों पर और सभी नबियों पर बिना किसी भेदभाव के ईमान लाए, तथा धन खर्च करे उसके मोह और लोभ के बावजूद अपने रिश्तेदारों पर, तथा व्यस्क होने से पहले अपने पिता को खो देने वाले पर, ज़रूरतमंदों, अपने परिवार और स्वदेश से कट जाने वाले परदेशी और उन लोगों पर जिन्हें किसी आवश्यकता के कारण लोगों से माँगना पड़ जाता है। तथा गुलामी और क़ैद से गर्दनों को छुड़ाने में पैसा खर्च करे। तथा अल्लाह की आज्ञा के अनुसार पूरी तरह से नमाज़ अदा करे, और अनिवार्य ज़कात का भुगतान करे। इसी तरह वे लोग, जो यदि वचन देते हैं तो अपने वचन को पूरा करते हैं, और जो लोग ग़रीबी और कठिनाई पर तथा बीमारी पर और भीषण युद्ध के समय धैर्य से काम लेते हैं, चुनाँचे वे भागते नहीं हैं। जो लोग इन विशेषताओं से सुसज्जित हैं, वही लोग हैं जो अपने ईमान और कर्मों में अल्लाह के प्रति सच्चे हैं, और वही परहेज़गार लोग हैं, जिन्होंने अल्लाह के आदेशों का पालन किया और उसकी मना की हुई चीज़ों से परहेज़ किया।
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसके रसूल का अनुसरण करने वालो! उन लोगों के मामले में जो जानबूझकर और आक्रामकता में दूसरों हत्या कर देते हैं, हत्यारे को उसके अपराध के समान दंड देना तुमपर अनिवार्य कर दिया गया है। अतः आज़ाद आदमी को आज़ाद के बदले क़त्ल किया जाएगा, ग़ुलाम को ग़ुलाम के बदले क़त्ल किया जाएगा तथा नारी को नारी के बदले क़त्ल किया जाएगा। यदि वधित व्यक्ति अपनी मृत्यु से पहले क्षमा कर दे, या उसका अभिभावक दियत - वह धनराशि जो हत्यारा अपनी क्षमा के बदले में भुगतान करता है - लेकर क्षमा कर दे, तो क्षमा करने वाले को चाहिए कि क़ातिल से दियत (रक्त धन) की माँग अच्छे तरीक़े से करे, उपकार जतलाने तथा कष्ट देने से बचे। क़ातिल को भी चाहिए कि बिना टाल-मटोल के भले तरीक़े से दियत (ख़ून-बहा) अदा कर दे। यह क्षमा करना और ख़ून-बहा लेना, तुम्हारे पालनहार की ओर से तुमपर एक आसानी और इस उम्मत पर एक दया है। फिर जो व्यक्ति क्षमा करने और ख़ून-बहा लेने के बाद क़ातिल पर अत्याचार करे; तो उसके लिए अल्लाह की ओर से एक दर्दनाक सज़ा है।
अल्लाह ने तुम्हारे लिए क़िसास का जो नियम निर्धारित किया है, उसमें तुम्हारे लिए जीवन है; क्योंकि इससे तुम्हारे ख़ून की रक्षा होती है और तुम्हारे बीच ज़्यादती (अत्याचार) को रोका जाता है। इसे वे बुद्धि वाले लोग महसूस करते हैं, जो अल्लाह की शरीयत का पालन करके और उसके आदेश के अनुसार कार्य करके उससे डरते हैं।
जब तुममें से किसी की मृत्यु के लक्षण तथा कारण सामने आ जाएँ, और यदि उसने बहुत सारा धन छोड़ा है, तो उसपर माता-पिता और रिश्तेदारों के लिए शरीयत की निर्धारित की हुई मात्रा के अनुसार वसीयत करना ज़रूरी है, जो कि एक तिहाई धन से अधिक नहीं होना चाहिए। ऐसा करना उन लोगों पर एक पक्का अधिकार है जो सर्वशक्तिमान अल्लाह से डरने वाले हैं। ज्ञात रहे कि यह हुक्म मीरास की आयतें उतरने से पहले था। जब मीरास की आयतें उतरीं, तो उनके द्वारा स्पष्ट कर दिया गया कि मृतक का वारिस कौन होगा और उसे विरासत में कितना मिलेगा।
फिर जो व्यक्ति वसीयत के बारे में जानने के बाद, कोई वृद्धि या कमी करके या उसे रोककर वसीयत में बदलाव कर दे; तो उस परिवर्तन का पाप परिवर्तन करने वालों पर होगा, वसीयतकर्ता पर नहीं। निःसंदेह अल्लाह अपने बंदों की बातों को सुनने वाला और उनके कार्यों को जानने वाला है। उनकी स्थितियों में से कोई चीज़ उससे छूटती नहीं है।
التفاسير:
من فوائد الآيات في هذه الصفحة:
• البِرُّ الذي يحبه الله يكون بتحقيق الإيمان والعمل الصالح، وأما التمسك بالمظاهر فقط فلا يكفي عنده تعالى.
• अल्लाह जिस नेकी को पसंद करता है, वह ईमान और अच्छे कर्मों की पूर्ति से प्राप्त होती है। जहाँ तक केवल ज़ाहिरी चीज़ों का पालन करना है, तो यह अल्लाह के निकट काफ़ी नहीं है।
• من أعظم ما يحفظ الأنفس، ويمنع من التعدي والظلم؛ تطبيق مبدأ القصاص الذي شرعه الله في النفس وما دونها.
• सबसे बड़ी चीज़ जो प्राणों की रक्षा करती है, तथा ज़्याजती और अत्याचार को रोकती है; वह क़िसास (प्रतिशोध) के सिद्धांत को लागू करना करना है, जिसे अल्लाह ने प्राण तथा उससे कमतर नुक़सान के बारे में निर्धारित किया है।
• عِظَمُ شأن الوصية، ولا سيما لمن كان عنده شيء يُوصي به، وإثمُ من غيَّر في وصية الميت وبدَّل ما فيها.
• वसीयत का महत्व, विशेष रूप से उसके लिए जिसके पास वसीयत करने के लिए कोई वस्तु हो, तथा मृतक की वसीयत को बदलने वाले का पाप।