14. अर्थात तुमपर आक्रमण करने का निश्चय किया, तो अल्लाह ने उनके आक्रमण से तुम्हारी रक्षा की। इस आयत से संबंधित बुख़ारी में सह़ीह़ ह़दीस आती है कि एक युद्ध में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एकांत में एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे कि एक व्यक्ति आया और आपकी तलवार खींच कर कहा : तुम को अब मुझसे कौन बचाएगा? आपने कहा : अल्लाह! यह सुनते ही तलवार उसके हाथ से गिर गई और आपने उसे क्षमा कर दिया। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4139)
15. अल्लाह को क़र्ज़ देने का अर्थ उसके लिए दान करना है। इस आयत में ईमान वालों को सावधान किया गया है कि तुम अह्ले किताब : यहूद और नसारा जैसे न हो जाना जो अल्लाह के वचन को भंग करके उसकी धिक्कार के अधिकारी बन गए। (इब्ने कसीर)
16. सह़ीह़ ह़दीस में आया है कि कुछ यहूदी, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास एक नर और नारी को लाए जिन्होंने व्यभिचार किया था। आपने कहा : तुम तौरात में क्या पाते हो? उन्होंने कहा : उनका अपमान करें और कोड़े मारें। अब्दुल्लाह बिन सलाम ने कहा : तुम झूठे हो, बल्कि उसमें (रज्म) करने का आदेश है। तौरात लाओ। वे तौरात लाए, तो एक ने रज्म की आयत पर हाथ रख दिया और आगे-पीछे पढ़ दिया। अब्दुल्लाह बिन सलाम ने कहा : हाथ उठाओ। उसने हाथ उठाया तो उसमें रज्म की आयत थी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3559, सह़ीह़ मुस्लिम : 1699)