29. आयत का भावार्थ यह है कि जैसे पराधीन दास और धनी स्वतंत्र व्यक्ति को तुम बराबर नहीं समझते, ऐसे मुझे और इन मूर्तियों को कैसे बराबर समझ रहे हो, जो एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकतीं। और यदि मक्खी उनका चढ़ावा ले भागे, तो वे छीन भी नहीं सकतीं? इससे बड़ा अत्याचार क्या हो सकता है? 30. अर्थात अल्लाह के सिवा तुम्हारे पूज्यों में से कोई प्रशंसा के लायक़ नहीं है।
31. यह दूसरा उदाहरण है जो मूर्तियों का दिया है। जो गूँगी-बहरी होती हैं।
32. अर्थात गुप्त तथ्यों का। 33. अर्थात पल भर में आएगी
34. अर्थात पक्षियों को यह क्षमता अल्लाह ही ने दी है।