Қуръони Карим маъноларининг таржимаси - Ҳиндча таржима - Азизул Ҳақ Умарий

अल-इख़्लास

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1 : 112

قُلْ هُوَ اللّٰهُ اَحَدٌ ۟ۚ

(ऐ रसूल!) आप कह दीजिए : वह अल्लाह एक है।[1] info

1. आयत संख्या 1 में 'अह़द' शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ है, उसके अस्तित्व एवं गुणों में कोई साझी नहीं है। यहाँ 'अह़द' शब्द का प्रयोग यह बताने के लिए किया गया है कि वह अकेला है। वह वृक्ष के समान एक नहीं है जिसकी अनेक शाखाएँ होती हैं। आयत संख्या 2 में 'समद' शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ है अब्रण होना। अर्थात जिसमें कोई छिद्र न हो जिससे कुछ निकले, या वह किसी से निकले। और आयत संख्या 3 इसी अर्थ की व्याख्या करती है कि न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।

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2 : 112

اَللّٰهُ الصَّمَدُ ۟ۚ

अल्लाह बेनियाज़ है। info
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3 : 112

لَمْ یَلِدْ ۙ۬— وَلَمْ یُوْلَدْ ۟ۙ

न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है। info
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4 : 112

وَلَمْ یَكُنْ لَّهٗ كُفُوًا اَحَدٌ ۟۠

और न कोई उसका समकक्ष है।[2] info

2. इस आयत में यह बताया गया है कि उसकी प्रतिमा तथा उसके बराबर और समतुल्य कोई नहीं है। उसके कर्म, गुण और अधिकार में कोई किसी रूप में बराबर नहीं। न उसकी कोई जाति है न परिवार। इन आयतों में क़ुरआन उन विषयों को जो लोगों के तौह़ीद से फिसलने का कारण बने, उसे अनेक रूप में वर्णित करता है। और देवियों और देवताओं के विवाहों और उन के पुत्र और पौत्रों का जो विवरण देव मालाओं में मिलता है, क़ुरआन ने उसका खंडन किया है।

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