ශුද්ධවූ අල් කුර්ආන් අර්ථ කථනය - හින්දි පරිවර්තනය - අසීසුල් හක්කිල් උමරී

अत्-तलाक़

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1 : 65

یٰۤاَیُّهَا النَّبِیُّ اِذَا طَلَّقْتُمُ النِّسَآءَ فَطَلِّقُوْهُنَّ لِعِدَّتِهِنَّ وَاَحْصُوا الْعِدَّةَ ۚ— وَاتَّقُوا اللّٰهَ رَبَّكُمْ ۚ— لَا تُخْرِجُوْهُنَّ مِنْ بُیُوْتِهِنَّ وَلَا یَخْرُجْنَ اِلَّاۤ اَنْ یَّاْتِیْنَ بِفَاحِشَةٍ مُّبَیِّنَةٍ ؕ— وَتِلْكَ حُدُوْدُ اللّٰهِ ؕ— وَمَنْ یَّتَعَدَّ حُدُوْدَ اللّٰهِ فَقَدْ ظَلَمَ نَفْسَهٗ ؕ— لَا تَدْرِیْ لَعَلَّ اللّٰهَ یُحْدِثُ بَعْدَ ذٰلِكَ اَمْرًا ۟

ऐ नबी! जब तुम अपनी पत्नियों को तलाक़ दो, तो उन्हें उनकी 'इद्दत' के समय तलाक़ दो, और 'इद्दत' की गिनती करो। तथा अल्लाह से डरो, जो तुम्हारा पालनहार है। तुम उन्हें उनके घरों से न निकालो और न वे स्वयं निकलें, परंतु यह कि वे कोई खुली बुराई कर जाएँ। तथा ये अल्लाह की सीमाएँ हैं और जो अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करेगा, तो निश्चय उसने अपने ऊपर अत्याचार किया। तुम नहीं जानते, शायद अल्लाह उसके बाद कोई नई बात पैदा कर दे। info
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