12. अर्थात सबका विधाता तथा स्वामी वही है। वही सबकी व्यवस्था करता है। और सब उसी के अधीन तथा अधिकार में हैं।
13. इस आयत का भावार्थ यह है कि यदि मान लिया जाए कि आपके जीवन का अंत शिर्क पर हुआ, और क्षमा याचना नहीं की तो आपके भी कर्म नष्ट हो जाएँगे। ह़ालाँकि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सभी नबी शिर्क से पाक थे। इसलिए कि उनका संदेश ही एकेश्वरवाद और शिर्क का खंडन है। फिर भी इसमें संबोधित नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को किया गया और यह साधारण नियम बताया गया कि शिर्क के साथ अल्लाह के हाँ कोई कर्म स्वीकार्य नहीं। तथा ऐसे सभी कर्म निष्फल होंगे जो एकेश्वरवाद की आस्था पर आधारित न हों। चाहे वह नबी हो या उसका अनुयायी हो।
14. ह़दीस में आता है कि एक यहूदी विद्वान नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहा : हम अल्लाह के विषय में (अपनी धर्म पुस्तकों में) यह पाते हैं कि प्रलय के दिन आकाशों को एक उँगली, तथा भूमि को एक उँगली पर और पेड़ों को एक उंँगली, जल तथा तरी को एक उंँगली पर और समस्त उत्पत्ति को एक उंँगली पर रख लेगा, तथा कहेगा : "मैं ही राजा हूँ।" यह सुनकर आप हँस पड़े और इसी आयत को पढ़ा। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस : 4812, 6519, 7382, 7413)