16. अर्थात तुम और तुम्हारे सब देवी-देवता मिलकर भी मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकते। क्योंकि मेरा भरोसा जिस अल्लाह पर है, पूरा संसार उसके नियंत्रण में है, उसके आगे किसी की शक्ति नहीं कि किसी का कुछ बिगाड़ सके।
17. अर्थात उसका रास्ता अत्याचार का रास्ता नहीं हो सकता कि तुम दुराचारी और कुपथ में रहकर सफल रहो और मैं सदाचारी रहकर हानि में पड़ूँ।
18. अर्थात तुम्हें ध्वस्त निरस्त कर देगा।
19. अर्थात अल्लाह की दया से दूरी। इसका प्रयोग धिक्कार और विनाश के अर्थ में होता है।
20. यह जाति तबूक और मदीना के बीच "अल-ह़िज्र" में आबाद थी। 21. देखिए : सूरतुल-बक़रह, आयत : 186.