ශුද්ධවූ අල් කුර්ආන් අර්ථ කථනය - ශුද්ධ වූ අල්කුර්ආන් අර්ථ විවරණයේ සංෂිප්ත අනුවාදය - ඉන්දියානු පරිවර්තනය

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99 : 10

وَلَوْ شَآءَ رَبُّكَ لَاٰمَنَ مَنْ فِی الْاَرْضِ كُلُّهُمْ جَمِیْعًا ؕ— اَفَاَنْتَ تُكْرِهُ النَّاسَ حَتّٰی یَكُوْنُوْا مُؤْمِنِیْنَ ۟

और यदि (ऐ रसूल!) आपका पालनहार धरती में मौजूद सभी लोगों को ईमान वाला बनाना चाहता, तो सभी लोग अवश्य ईमान ले आते, परंतु अपनी हिकमत के कारण उसने ऐसा नहीं चाहा। अतः वह जिसे चाहता है, अपने न्याय से गुमराह कर देता है और जिसे चाहता है, अपनी कृपा से मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसलिए आप लोगों को ईमान लाने पर मजबूर नहीं कर सकते। क्योंकि उन्हें ईमान लाने की तौफ़ीक़ देना केवल अल्लाह के हाथ में है। info
التفاسير:
මෙ⁣ම පිටුවේ තිබෙන වැකිවල ප්‍රයෝජන:
• الإيمان هو السبب في رفعة صاحبه إلى الدرجات العلى والتمتع في الحياة الدنيا.
• ईमान ही ईमान वाले को ऊँचे पदों पर पहुँचाने और इस दुनिया के जीवन का आनंद लेने का कारण है। info

• ليس في مقدور أحد حمل أحد على الإيمان؛ لأن هذا عائد لمشيئة الله وحده.
• कोई भी किसी को ईमान लाने पर मजबूर नहीं कर सकता; क्योंकि यह केवल अल्लाह की इच्छा पर निर्भर है। info

• لا تنفع الآيات والنذر من أصر على الكفر وداوم عليه.
• जो व्यक्ति कुफ़्र (अविश्वास) पर हठ करता है और निरंतर उसी पर जमा रहता है, उसे निशानियाँ और चेतावनियाँ लाभ नहीं देतीं। info

• وجوب الاستقامة على الدين الحق، والبعد كل البعد عن الشرك والأديان الباطلة.
• सत्य धर्म पर मज़बूती से जमे रहना और बहुदेववाद तथा झूठे धर्मों से पूरी तरह से दूर रहना अनिवार्य है। info