1. अर्थात क़ुरआन की। जिसे उतरने के साथ ही नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) लेखकों से लिखवाते थे। जैसे ही कोई सूरत या आयत उतरती, लेखक क़लम तथा चमड़ों और झिल्लियों के साथ उपस्थित हो जाते थे, ताकि पूरे संसार के मनुष्यों को क़ुरआन अपने वास्तविक रूप में पहुँच सके। और सदा के लिए सुरक्षित हो जाए। क्योंकि अब आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पश्चात् कोई नबी और कोई पुस्तक नहीं आएगी। और प्रलय तक के लिए अब पूरे संसार के नबी आप ही हैं। और उनके मार्गदर्शन के लिए क़ुरआन ही एकमात्र धर्म पुस्तक है। इसी लिए इसे सुरक्षित कर दिया गया है। और यह विशेषता किसी भी आकाशीय ग्रंथ को प्राप्त नहीं है। इस लिए अब मोक्ष के लिए अंतिम नबी तथा अंतिम धर्म ग्रंथ क़ुरआन पर ईमान लाना अनिवार्य है।
2. जब काफ़िर, इस्लाम के प्रभाव को रोकने में असफल हो गए, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को धमकी और लालच देने के पश्चात्, कुछ लो और कुछ दो की नीति पर आ गए। इस लिए कहा गया कि आप उनकी बातों में न आएँ और परिणाम की प्रतीक्षा करें।
3. इन आयतों में किसी विशेष काफ़िर की दशा का वर्णन नहीं, बल्कि काफ़िरों के प्रमुखों के नैतिक पतन तथा कुविचारों और दुराचारों को बताया गया है, जो लोगों को इस्लाम के विरुद्ध उकसा रहे थे। तो फिर क्या इनकी बात मानी जा सकती है?
5. अर्थात मक्का वालों को। इस लिए यदि वे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाएँगे, तो उनपर सफलता की राह खुलेगी। अन्यथा संसार और परलोक दोनों की यातना के भागी होंगे।
8. मक्का के प्रमुख कहते थे कि यदि प्रलय हुई, तो वहाँ भी हमें यही सांसारिक सुख-सुविधा प्राप्त होगी। जिसका इस आयत में खंडन किया जा रहा है। अभिप्राय यह है कि अल्लाह के यहाँ देर है, परंतु अँधेर नहीं है।
10. ह़दीस में है कि प्रलय के दिन अल्लाह अपनी पिंडली खोलेगा, तो प्रत्येक मोमिन पुरुष तथा स्त्री सजदे में गिर जाएँगे। हाँ, वे शेष रह जाएँगे जो दिखावे और नाम के लिये (संसार में) सजदे किया करते थे। वह सजदा करना चाहेंगे, परंतु उनकी रीढ़ की हड्डी तख्त के समान बन जाएगी। जिसके कारण उनके लिए सजदा करना असंभव हो जाएगा। (बुख़ारी : 4919)
15. इससे अभिप्राय यूनुस (अलैहिस्सलाम) हैं, जिनको मछली ने निगल लिया था। (देखिए : सूरतुस-साफ़्फ़ात, आयत : 139)