1. बरकत वाली रात से अभिप्राय "लैलतुल क़द्र" है। यह रमज़ान के महीने के अंतिम दशक की एक विषम रात्रि होती है। यहाँ आगे बताया जा रहा है कि इसी रात्रि में पूरे वर्ष होने वाले विषय का निर्णय किया जाता है। इस शुभ रात की विशेषता तथा प्रधानता के लिए सूरतुल-क़द्र देखिए। इसी शुभ रात्रि में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर क़ुरआन उतरने का आरंभ हुआ। फिर 23 वर्षों तक आवश्यकतानुसार विभिन्न समय में उतरता रहा। (देखिए : सूरतुल-बक़रह, आयत संख्या : 185)
2. इस प्रत्यक्ष धुएँ तथा दुःखदायी यातना की व्याख्या सह़ीह़ ह़दीस में यह आयी है कि जब मक्कावासियों ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कड़ा विरोध किया, तो आपने यह शाप दिया कि ऐ अल्लाह! उनपर सात वर्ष का अकाल भेज दे। और जब अकाल आया, तो भूख के कारण उन्हें धुआँ जैसा दिखाई देने लगा। तब उन्होंने आप से कहा कि आप अल्लाह से प्रार्थना कर दें। वह हमसे अकाल दूर कर देगा, तो हम ईमान ले आएँगे। और जब अकाल दूर हुआ तो फिर अपनी स्थिति पर लौट आए। फिर अल्लाह ने बद्र के युद्ध के दिन उनसे बदला लिया। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4821, तथा सह़ीह़ मुस्लिम : 2798)
3. यह बड़ी पकड़ का दिन बद्र के युद्ध का दिन है। जिसमें उनके बड़े-बड़े सत्तर प्रमुख मारे गए तथा इतनी ही संख्या में बंदी बनाए गए। और उनकी दूसरी पकड़ क़ियामत के दिन होगी, जो इससे भी बड़ी और गंभीर होगी।