Tradução dos significados do Nobre Qur’an. - Tradução indiana de interpretação abreviada do Nobre Alcorão.

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104 : 5

وَاِذَا قِیْلَ لَهُمْ تَعَالَوْا اِلٰی مَاۤ اَنْزَلَ اللّٰهُ وَاِلَی الرَّسُوْلِ قَالُوْا حَسْبُنَا مَا وَجَدْنَا عَلَیْهِ اٰبَآءَنَا ؕ— اَوَلَوْ كَانَ اٰبَآؤُهُمْ لَا یَعْلَمُوْنَ شَیْـًٔا وَّلَا یَهْتَدُوْنَ ۟

जब अल्लाह पर कुछ चौपायों को हराम ठहराने का झूठा आरोप लगाने वाले इन लोगों से कहा जाता है : अल्लाह के उतारे हुए क़ुरआन की ओर आओ, तथा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत की ओर आओ, ताकि तुम हलाल और हराम को पहचान सको, तो वे कहते हैं : हमने जिन विश्वासों, कथनों और कार्यों को अपने पूर्वजों से लिया है और हमें विरासत में मिला है, वही हमारे लिए काफ़ी हैं। उनके लिए यह कैसे काफ़ी है जबकि उनके पूर्वज कुछ नहीं जानते थे, और न तो उन्हें सत्य का मार्गदर्शन प्राप्त था?! इसलिए उनका अनुसरण वही करेगा, जो उनसे अधिक अज्ञानी और उनसे अधिक मार्ग से भटका हुआ होगा। अतः वे अज्ञानी और पथभ्रष्ट हैं। info
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105 : 5

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا عَلَیْكُمْ اَنْفُسَكُمْ ۚ— لَا یَضُرُّكُمْ مَّنْ ضَلَّ اِذَا اهْتَدَیْتُمْ ؕ— اِلَی اللّٰهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِیْعًا فَیُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ۟

ऐ ईमान वालो! तुम अपनी चिंता करो। अतः अपने आपको ऐसा कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध करो, जिससे तुम्हारा सुधार हो। यदि तुम स्वयं मार्गदर्शन पा चुके, तो लोगों में से जो व्यक्ति गुमराह हो गया और उसने तुम्हारी बात नहीं मानी, वह तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँचाएगा। तथा तुम्हारे मार्गदर्शन प्राप्त होने की अपेक्षा यह कि तुम भलाई का आदेश दो और बुराई से रोको। क़ियामत के दिन तुम्हें अकेले अल्लाह ही की ओर लौटकर जाना है, फिर वह तुम्हें बताएगा कि तुम दुनिया में क्या किया करते थे और तुम्हें उसका बदला देगा। info
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106 : 5

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا شَهَادَةُ بَیْنِكُمْ اِذَا حَضَرَ اَحَدَكُمُ الْمَوْتُ حِیْنَ الْوَصِیَّةِ اثْنٰنِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنْكُمْ اَوْ اٰخَرٰنِ مِنْ غَیْرِكُمْ اِنْ اَنْتُمْ ضَرَبْتُمْ فِی الْاَرْضِ فَاَصَابَتْكُمْ مُّصِیْبَةُ الْمَوْتِ ؕ— تَحْبِسُوْنَهُمَا مِنْ بَعْدِ الصَّلٰوةِ فَیُقْسِمٰنِ بِاللّٰهِ اِنِ ارْتَبْتُمْ لَا نَشْتَرِیْ بِهٖ ثَمَنًا وَّلَوْ كَانَ ذَا قُرْبٰی ۙ— وَلَا نَكْتُمُ شَهَادَةَ ۙ— اللّٰهِ اِنَّاۤ اِذًا لَّمِنَ الْاٰثِمِیْنَ ۟

ऐ ईमान वालो! यदि तुममें से किसी की मृत्यु का समय मौत की किसी निशानी के प्रकट होने के साथ निकट आ जाए, तो वह अपनी वसीयत पर मुसलमानों में से दो न्यायप्रिय व्यक्तियों को, या मुसलमानों की अनुपस्थिति के कारण ज़रूरत पड़ने पर काफ़िरों में से दो आदमियों को गवाह बना दे, यदि तुम यात्रा कर रहे हो और तुमपर मृत्यु आ पहुँचे। यदि तुम्हें उन दोनों की गवाही के विषय में संदेह हो, तो किसी नमाज़ के बाद उन्हें रोक लो और वे दोनों अल्लाह की क़सम खाएँ कि : वे दोनों अल्लाह की ओर से मिले हुए अपने हिस्से (यानी अपनी क़सम) को किसी मुआवज़े के बदले नहीं बेचेंगे, और न उसके साथ किसी संबंधी का पक्ष लेंगे (लाभ पहुँचाएँगे), तथा वे दोनों अपने पास मौजूद अल्लाह की किसी गवाही को नहीं छिपाएँगे, और यदि उन्होंने ऐसा किया तो वे दोनों अल्लाह की अवज्ञा करने वाले पापियों में से होंगे। info
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107 : 5

فَاِنْ عُثِرَ عَلٰۤی اَنَّهُمَا اسْتَحَقَّاۤ اِثْمًا فَاٰخَرٰنِ یَقُوْمٰنِ مَقَامَهُمَا مِنَ الَّذِیْنَ اسْتَحَقَّ عَلَیْهِمُ الْاَوْلَیٰنِ فَیُقْسِمٰنِ بِاللّٰهِ لَشَهَادَتُنَاۤ اَحَقُّ مِنْ شَهَادَتِهِمَا وَمَا اعْتَدَیْنَاۤ ۖؗ— اِنَّاۤ اِذًا لَّمِنَ الظّٰلِمِیْنَ ۟

यदि क़सम खिलाने के बाद यह स्पष्ट हो जाए कि उन दोनों ने गवाही अथवा क़सम में झूठ बोला है, या उन दोनों की ख़यानत (विश्वासघात) प्रकट हो जाए; तो उनके स्थान पर मरे हुए व्यक्ति के निकटतम संबंधियों में से दो व्यक्ति खड़े होकर सत्य की गवाही दें या क़सम खाएँ। वे दोनों अल्लाह की क़सम खाते हुए कहें : निश्चय उनके झूठ और ख़यानत पर हमारी गवाही, उन दोनों की अपनी सच्चाई और अमानत पर गवाही से अधिक सच्ची है, और हमने झूठी क़सम नहीं खाई है। यदि हमने झूठी गवाही दी है, तो निश्चय हम उन अत्याचारियों में से होंगे जो अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करने वाले हैं। info
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108 : 5

ذٰلِكَ اَدْنٰۤی اَنْ یَّاْتُوْا بِالشَّهَادَةِ عَلٰی وَجْهِهَاۤ اَوْ یَخَافُوْۤا اَنْ تُرَدَّ اَیْمَانٌ بَعْدَ اَیْمَانِهِمْ ؕ— وَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاسْمَعُوْا ؕ— وَاللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الْفٰسِقِیْنَ ۟۠

दोनों गवाहों की गवाही में संदेह होने पर उन्हें नमाज़ के बाद क़सम खिलाने और उनकी गवाही को रद्द करने का जो उल्लेख किया गया है, यह इस बात के अधिक क़रीब है कि वे दोनों गवाही का निष्पादन उसके शरई तरीक़े के अनुसार करें। अतः वे गवाही को विकृत न करें या उसमें बदलाव न करें या ख़यानत (विश्वासघात) न करें। तथा यह इस तथ्य के अधिक क़रीब है कि वे इस बात से डरें कि वारिसों की क़सम उन दोनों की क़सम को ख़ारिज कर देगी, चुनाँचे वे लोग उन दोनों की गवाही के विपरीत क़सम खा लेंगे, इस तरह वे दोनों बेनक़ाब हो जाएँगे। गवाही और क़सम में झूठ और ख़यानत (विश्वासघात) को त्यागकर अल्लाह से डरो, तथा तुम्हें जिस बात का आदेश दिया गया है उसे सुनो और स्वीकार करो। और अल्लाह उन लोगों को सामर्थ्य प्रदान नहीं करता, जो उसके आज्ञापालन से निकल जाने वाले हैं। info
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• إذا ألزم العبد نفسه بطاعة الله، وأمر بالمعروف ونهى عن المنكر بحسب طاقته، فلا يضره بعد ذلك ضلال أحد، ولن يُسْأل عن غيره من الناس، وخاصة أهل الضلال منهم.
• जब बंदा अपने आपको अल्लाह के आज्ञापालन के लिए प्रतिबद्ध कर ले, और अपनी क्षमता के अनुसार भलाई का आदेश दे और बुराई से मना करे, तो उसके बाद किसी के गुमराह होने से उसका कोई नुक़सान नहीं होगा, तथा उससे अन्य लोगों के बारे में हरगिज़ पूछताछ नहीं की जाएगी, खासकर उन लोगों के बारे में जो उनमें से गुमराह हैं। info

• الترغيب في كتابة الوصية، مع صيانتها بإشهاد العدول عليها.
• वसीयत के लिखने के लिए प्रोत्साहन, साथ ही उसपर न्यायप्रिय लोगों को गवाह बनाकर उसका संरक्षण करना। info

• بيان الصورة الشرعية لسؤال الشهود عن الوصية.
• वसीयत के बारे में गवाहों से पूछने के लिए शरई रूप का वर्णन। info