ߞߎ߬ߙߣߊ߬ ߞߟߊߒߞߋ ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌߘߊ - ߟߊߘߛߏߣߍ߲" ߞߎ߬ߙߣߊ߬ ߞߟߊߒߞߋ ߞߘߐߦߌߘߊ ߘߐ߫ ߤߌߣߘߌߞߊ߲ ߘߐ߫

ߞߐߜߍ ߝߙߍߕߍ:close

external-link copy
158 : 6

هَلْ یَنْظُرُوْنَ اِلَّاۤ اَنْ تَاْتِیَهُمُ الْمَلٰٓىِٕكَةُ اَوْ یَاْتِیَ رَبُّكَ اَوْ یَاْتِیَ بَعْضُ اٰیٰتِ رَبِّكَ ؕ— یَوْمَ یَاْتِیْ بَعْضُ اٰیٰتِ رَبِّكَ لَا یَنْفَعُ نَفْسًا اِیْمَانُهَا لَمْ تَكُنْ اٰمَنَتْ مِنْ قَبْلُ اَوْ كَسَبَتْ فِیْۤ اِیْمَانِهَا خَیْرًا ؕ— قُلِ انْتَظِرُوْۤا اِنَّا مُنْتَظِرُوْنَ ۟

ये झुठलाने वाले केवल इस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि मौत का फ़रिश्ता तथा उसके सहायक दुनिया में उनके प्राणों को निकालने के लिए उनके पास आ जाएँ, या आख़िरत में निर्णय के दिन आपका रब उनके बीच फैसला करने के लिए आ जाए, या क़ियामत का पता देने वाली तुम्हारे रब की कुछ निशानियाँ आ जाएँ। जिस दिन तुम्हारे रब की कोई निशानी आएगी (जैसे पश्चिम से सूरज का उगना) तो किसी काफ़िर को उसके ईमान लाने से कोई फायदा नहीं होगा, और न ही किसी मोमिन को, जिसने उससे पहले भलाई नहीं की, उसका अमल लाभ देगा। (ऐ रसूल!) आप इन झुठलाने वाले मुश्रिकों से कह दें : तुम इन चीज़ों में से एक की प्रतीक्षा करो, हम (भी) प्रतीक्षा करने वाले हैं। info
التفاسير:

external-link copy
159 : 6

اِنَّ الَّذِیْنَ فَرَّقُوْا دِیْنَهُمْ وَكَانُوْا شِیَعًا لَّسْتَ مِنْهُمْ فِیْ شَیْءٍ ؕ— اِنَّمَاۤ اَمْرُهُمْ اِلَی اللّٰهِ ثُمَّ یُنَبِّئُهُمْ بِمَا كَانُوْا یَفْعَلُوْنَ ۟

जिन यहूदियों एवं ईसाइयों ने अपने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर लिए, चुनाँचे उन्होंने उसमें से कुछ को अपनाया और कुछ को छोड़ दिया तथा वे अलग-अलग संप्रदाय हो गए, उनसे (ऐ रसूल!) आपका कोई संबंध नहीं है। क्योंकि वे जिस पथभ्रष्टता में पड़े हुए हैं, आप उससे बरी हैं। आपका दायित्व केवल उन्हें सचेत करना है। उनका मामला तो अल्लाह ही के हवाले है। फिर वह क़ियामत के दिन उन्हें बताएगा कि वे दुनिया में क्या कर रहे थे और उन्हें उसपर बदला देगा। info
التفاسير:

external-link copy
160 : 6

مَنْ جَآءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهٗ عَشْرُ اَمْثَالِهَا ۚ— وَمَنْ جَآءَ بِالسَّیِّئَةِ فَلَا یُجْزٰۤی اِلَّا مِثْلَهَا وَهُمْ لَا یُظْلَمُوْنَ ۟

जो मोमिन क़ियामत के दिन एक नेकी के साथ आएगा, अल्लाह उसकी एक नेकी को बढ़ाकर दस नेकियाँ कर देगा, परंतु जो एक पाप के साथ आएगा, उसे उसके पाप के समान ही सज़ा दी जाएगी, उससे ज़्यादा सज़ा नहीं दी जाएगी। तथा क़ियामत के दिन उनकी नेकियों का सवाब घटाकर, या उनके गुनाहों की सज़ा बढ़ाकर उनपर कोई अत्याचार नहीं किया जाएगा। info
التفاسير:

external-link copy
161 : 6

قُلْ اِنَّنِیْ هَدٰىنِیْ رَبِّیْۤ اِلٰی صِرَاطٍ مُّسْتَقِیْمٍ ۚ۬— دِیْنًا قِیَمًا مِّلَّةَ اِبْرٰهِیْمَ حَنِیْفًا ۚ— وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِیْنَ ۟

(ऐ रसूल!) इन झुठलाने वाले मुश्रिकों से कह दें : मेरे रब ने मुझे एक सीधे मार्ग पर निर्देशित किया है, जो उस धर्म का मार्ग है जो दुनिया और आख़िरत के हितों पर आधारित है, और यही इबराहीम अलैहिस्सलाम का धर्म है जो सत्य की ओर झुके हुए थे और कभी भी मुश्रिकों में से नहीं थे। info
التفاسير:

external-link copy
162 : 6

قُلْ اِنَّ صَلَاتِیْ وَنُسُكِیْ وَمَحْیَایَ وَمَمَاتِیْ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ ۟ۙ

(ऐ रसूल!) आप कह दें : निश्चय ही मेरी नमाज़, मेरा अल्लाह के लिए तथा उसके नाम पर जानवर ज़बह करना, मेरा जीवन तथा मेरी मृत्यु, सब कुछ केवल सारी सृष्टि के पालनहार अल्लाह के लिए है, किसी और का इसमें कोई हिस्सा नहीं है। info
التفاسير:

external-link copy
163 : 6

لَا شَرِیْكَ لَهٗ ۚ— وَبِذٰلِكَ اُمِرْتُ وَاَنَا اَوَّلُ الْمُسْلِمِیْنَ ۟

उस महिमावान अल्लाह का कोई साझी नहीं और न ही उसके सिवा कोई सत्य पूज्य है। इसी बहुदेववाद से पवित्र तौहीद (एकेश्वरवाद) का अल्लाह ने मुझे आदेश दिया है। तथा मैं उसके सामने आत्मसमर्पण करने वाला इस उम्मत का सबसे पहला व्यक्ति हूँ। info
التفاسير:

external-link copy
164 : 6

قُلْ اَغَیْرَ اللّٰهِ اَبْغِیْ رَبًّا وَّهُوَ رَبُّ كُلِّ شَیْءٍ ؕ— وَلَا تَكْسِبُ كُلُّ نَفْسٍ اِلَّا عَلَیْهَا ۚ— وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِّزْرَ اُخْرٰی ۚ— ثُمَّ اِلٰی رَبِّكُمْ مَّرْجِعُكُمْ فَیُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ فِیْهِ تَخْتَلِفُوْنَ ۟

(ऐ रसूल!) इन मुश्रिकों से कह दें : क्या मैं अल्लाह के अतिरिक्त कोई अन्य पालनहार तलाश करूँ, हालाँकि वह महिमावान हर चीज़ का पालनहार है?! वही उन पूज्यों का भी पालनहार है, जिनकी तुम उसके सिवा पूजा करते हो। तथा कोई निर्दोष व्यक्ति किसी दूसरे के गुनाह का बोझ नहीं उठाएगा। फिर क़ियामत के दिन तुम सब को केवल अपने पालनहार ही के पास लौटना है। तब वह तुम्हें धर्म के उन सारे विषयों के बारे में बताएगा, जिनको ले कर तुम मतभेद किया करते थे। info
التفاسير:

external-link copy
165 : 6

وَهُوَ الَّذِیْ جَعَلَكُمْ خَلٰٓىِٕفَ الْاَرْضِ وَرَفَعَ بَعْضَكُمْ فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجٰتٍ لِّیَبْلُوَكُمْ فِیْ مَاۤ اٰتٰىكُمْ ؕ— اِنَّ رَبَّكَ سَرِیْعُ الْعِقَابِ ۖؗۗ— وَاِنَّهٗ لَغَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟۠

और अल्लाह ही है जिसने तुम्हें उन लोगों का उत्तराधिकारी बनाया जो धरती पर तुमसे पहले थे; ताकि तुम उसे आबाद करो। तथा उसने तुम में से कुछ को रचना और जीविका में दूसरों की अपेक्षा में ऊँचे दरजे प्रदान किए; ताकि जो कुछ उसने तुम्हें दिया है, उसमें तुम्हारी परीक्षा ले। निःसंदेह (ऐ रसूल!) आपका पालनहार बहुत शीघ्र दंड देने वाला है, क्योंकि हर आने वाली चीज़ क़रीब है। तथा वह अपने बंदों में से तौबा करने वाले को क्षमा करने वाला तथा उसपर दया करने वाला है। info
التفاسير:
ߟߝߊߙߌ ߟߎ߫ ߢߊ߬ߕߣߐ ߘߏ߫ ߞߐߜߍ ߣߌ߲߬ ߞߊ߲߬:
• أن الدين يأمر بالاجتماع والائتلاف، وينهى عن التفرق والاختلاف.
• धर्म एकता और आपसी मेल-जोल का आदेश देता है तथा विभाजन और असहमति से रोकता है। info

• من تمام عدله تعالى وإحسانه أنه يجازي بالسيئة مثلها، وبالحسنة عشرة أمثالها، وهذا أقل ما يكون من التضعيف.
• यह अल्लाह के न्याय और उपकार की पूर्णता से है कि वह बुराई का बदला उसी के समान देता है, जबकि नेकी का बदला उसके दस गुना देता है, और यह बढ़ोतरी की न्यूनतम सीमा है। info

• الدين الحق القَيِّم يتطَلب تسخير كل أعمال العبد واهتماماته لله عز وجل، فله وحده يتوجه العبد بصلاته وعبادته ومناسكه وذبائحه وجميع قرباته وأعماله في حياته وما أوصى به بعد وفاته.
• सच्चे धर्म की अपेक्षा यह है कि बंदा सभी कार्यों और हितों (रूचियों) को सर्वशक्तिमान अल्लाह के अधीन कर दे। अतः बंदा अपने जीवन के दौरान अपनी नमाज़, उपासना, अनुष्ठानों (कर्मकांडों), क़ुरबानियों, तथा अपने सभी निकटता के कामों और कार्यों, तथा अपनी मृत्यु के बाद की वसीयतों को केवल अल्लाह के लिए समर्पित कर दे। info