وه‌رگێڕانی ماناكانی قورئانی پیرۆز - وەرگێڕاوی هیندی - عزيز الحق ئەلعومەری

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82 : 6

اَلَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَلَمْ یَلْبِسُوْۤا اِیْمَانَهُمْ بِظُلْمٍ اُولٰٓىِٕكَ لَهُمُ الْاَمْنُ وَهُمْ مُّهْتَدُوْنَ ۟۠

जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अपने ईमान को अत्याचार (शिर्क) के साथ नहीं मिलाया[57], यही लोग हैं जिनके लिए शांति है तथा वही मार्गदर्शन पाने वाले हैं। info

57. ह़दीस में है कि जब यह आयत उतरी तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों ने कहा : हममें कौन है जिसने अत्याचार न किया हो? उस समय वह आयत उतरी, जिसका अर्थ यह है कि निश्चय शिर्क (मिश्रणवाद) ही सबसे बड़ा अत्याचार है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4629)

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83 : 6

وَتِلْكَ حُجَّتُنَاۤ اٰتَیْنٰهَاۤ اِبْرٰهِیْمَ عَلٰی قَوْمِهٖ ؕ— نَرْفَعُ دَرَجٰتٍ مَّنْ نَّشَآءُ ؕ— اِنَّ رَبَّكَ حَكِیْمٌ عَلِیْمٌ ۟

यह हमारा तर्क है, जो हमने इबराहीम को उसकी जाति के विरुद्ध प्रदान किया। हम जिसे चाहते है, पदों में ऊँचा[58] कर देते हैं। निःसंदेह आपका पालनहार पूर्ण हिकमत वाला, सब कुछ जानने वाला है। info

58. एक व्यक्ति नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहा : ऐ सर्वोत्तम पुरुष! आपने कहा : वह (सर्वोत्तम पुरुष) इबराहीम (अलैहिस्सलाम) हैं। (सह़ीह़ मुस्लिम : 2369)

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84 : 6

وَوَهَبْنَا لَهٗۤ اِسْحٰقَ وَیَعْقُوْبَ ؕ— كُلًّا هَدَیْنَا ۚ— وَنُوْحًا هَدَیْنَا مِنْ قَبْلُ وَمِنْ ذُرِّیَّتِهٖ دَاوٗدَ وَسُلَیْمٰنَ وَاَیُّوْبَ وَیُوْسُفَ وَمُوْسٰی وَهٰرُوْنَ ؕ— وَكَذٰلِكَ نَجْزِی الْمُحْسِنِیْنَ ۟ۙ

और हमने उसे (इबराहीम को) इसहाक़ और याक़ूब प्रदान किए, प्रत्येक को हमने मार्गदर्शन दिया और उससे पहले नूह को मार्गदर्शन प्रदान किया और उसकी संतति में से दाऊद और सुलैमान और अय्यूब और यूसुफ़ और मूसा तथा हारून को। और इसी प्रकार हम नेकी करने वालों को प्रतिफल प्रदान करते हैं। info
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85 : 6

وَزَكَرِیَّا وَیَحْیٰی وَعِیْسٰی وَاِلْیَاسَ ؕ— كُلٌّ مِّنَ الصّٰلِحِیْنَ ۟ۙ

तथा ज़करीया और यह़्या और ईसा और इलयास को। ये सभी सदाचारियों में से थे। info
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86 : 6

وَاِسْمٰعِیْلَ وَالْیَسَعَ وَیُوْنُسَ وَلُوْطًا ؕ— وَكُلًّا فَضَّلْنَا عَلَی الْعٰلَمِیْنَ ۟ۙ

तथा इसमाईल और अल-यसअ, यूनुस और लूत को। और उन सबको हमने संसार वालों पर श्रेष्ठता प्रदान की है। info
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87 : 6

وَمِنْ اٰبَآىِٕهِمْ وَذُرِّیّٰتِهِمْ وَاِخْوَانِهِمْ ۚ— وَاجْتَبَیْنٰهُمْ وَهَدَیْنٰهُمْ اِلٰی صِرَاطٍ مُّسْتَقِیْمٍ ۟

तथा उनके बाप-दादा और उनकी संतानों तथा उनके भाइयों में से भी कुछ को (तौफ़ीक़ दी) और हमने उन्हें चुन लिया और सीधे मार्ग की ओर उनका मार्गदर्शन किया। info
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88 : 6

ذٰلِكَ هُدَی اللّٰهِ یَهْدِیْ بِهٖ مَنْ یَّشَآءُ مِنْ عِبَادِهٖ ؕ— وَلَوْ اَشْرَكُوْا لَحَبِطَ عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ ۟

यह अल्लाह का मार्गदर्शन है, जिसपर वह अपने बंदों में से जिसे चाहता है, चलाता है। और यदि ये लोग शिर्क करते, तो निश्चय उनसे वह सब नष्ट हो जाता जो वे किया करते थे।[59] info

59. इन आयतों में अठारह नबियों की चर्चा करने के पश्चात् यह कहा गया है कि यदि ये सब भी शिर्क करते, तो इनके सत्कर्म व्यर्थ हो जाते। जिससे अभिप्राय शिर्क की गंभीरता से सावधान करना है।

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89 : 6

اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ اٰتَیْنٰهُمُ الْكِتٰبَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ ۚ— فَاِنْ یَّكْفُرْ بِهَا هٰۤؤُلَآءِ فَقَدْ وَكَّلْنَا بِهَا قَوْمًا لَّیْسُوْا بِهَا بِكٰفِرِیْنَ ۟

यही वे लोग हैं जिन्हें हमने पुस्तक, हिकमत एवं नुबुव्वत प्रदान की। फिर यदि ये (मुश्रिक) इन बातों का इनकार करें, तो हमने इन (बातों) के लिए ऐसे लोग नियत किए हैं, जो इनका इनकार करने वाले नहीं। info
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90 : 6

اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ هَدَی اللّٰهُ فَبِهُدٰىهُمُ اقْتَدِهْ ؕ— قُلْ لَّاۤ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَیْهِ اَجْرًا ؕ— اِنْ هُوَ اِلَّا ذِكْرٰی لِلْعٰلَمِیْنَ ۟۠

यही वे लोग हैं, जिन्हें अल्लाह ने मार्गदर्शन प्रदान किया, तो आप उनके मार्गदर्शन का अनुसरण करें। आप कह दें : मैं इस (कार्य) पर[60] तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। यह तो सारे संसारों के लिए एक उपदेश के सिवा कुछ नहीं। info

60. अर्थात इस्लाम का उपदेश देने पर।

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