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5 : 49

وَلَوْ اَنَّهُمْ صَبَرُوْا حَتّٰی تَخْرُجَ اِلَیْهِمْ لَكَانَ خَیْرًا لَّهُمْ ؕ— وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟

और यदि ये लोग जो (ऐ रसूल!) आपको आपकी पत्नियों के कमरों के बाहर से पुकारते हैं, धैर्य रखते और आपको न पुकारते यहाँ तक कि आप उनके पास निकल कर आते, फिर वे धीमी आवाज़ में आपसे बात करते; तो यह उनके लिए आपको बाहर से पुकारने की तुलना में बेहतर होता; क्योंकि इसमें आदर और सम्मान पाया जाता है। तथा अल्लाह उनमें से तथा उनके अलावा लोगों में से तौबा करने वालों के पापों को माफ़ करने वाला है और उन्हें उनकी अज्ञानता के कारण क्षमा करने वाला, उनपर दया करने वाला है। info
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6 : 49

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِنْ جَآءَكُمْ فَاسِقٌ بِنَبَاٍ فَتَبَیَّنُوْۤا اَنْ تُصِیْبُوْا قَوْمًا بِجَهَالَةٍ فَتُصْبِحُوْا عَلٰی مَا فَعَلْتُمْ نٰدِمِیْنَ ۟

ऐ अल्लाह पर ईमान लाने वालो और उसकी शरीयत पर अमल करने वालो! यदि कोई दुराचारी व्यक्ति तुम्हारे पास किसी समुदाय के बारे में कोई समाचार लेकर आए, तो उसके समाचार की प्रामाणिकता को सत्यापित कर लिया करो, और उसपर विश्वास करने में जल्दबाज़ी न करो; ऐसा न हो कि (यदि तुमने बिना छानबीन के उसकी खबर पर विश्वास कर लिया) तुम किसी समुदाय को कुछ नुक़सान पहुँचा दो, जबकि तुम उनके बारे में सच्चाई से अनजान हो। फिर उन्हें नुक़सान पहुँचाने के बाद तुम्हें पछताना पड़े, जब तुम्हारे लिए यह स्पष्ट हो जाए कि उसकी ख़बर झूठी है। info
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7 : 49

وَاعْلَمُوْۤا اَنَّ فِیْكُمْ رَسُوْلَ اللّٰهِ ؕ— لَوْ یُطِیْعُكُمْ فِیْ كَثِیْرٍ مِّنَ الْاَمْرِ لَعَنِتُّمْ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ حَبَّبَ اِلَیْكُمُ الْاِیْمَانَ وَزَیَّنَهٗ فِیْ قُلُوْبِكُمْ وَكَرَّهَ اِلَیْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُسُوْقَ وَالْعِصْیَانَ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ هُمُ الرّٰشِدُوْنَ ۟ۙ

और (ऐ ईमान वालों!) जान लो कि तुम्हारे बीच अल्लाह के रसूल मौजूद हैं जिनपर वह़्य (प्रकाशना) उतरती है। इसलिए झूठ बोलने से सावधान रहो। क्योंकि अल्लाह उनपर वह़्य उतारकर उन्हें तुम्हारे झूठ के बारे में बता देगा। वह उसे अधिक जानते हैं जिसमें तुम्हारा हित है। अगर वह तुम्हारे बहुत-से सुझावों में तुम्हारी बात मान लें, तो तुम कठिनाई में पड़ जाओगे, जो वह तुम्हारे लिए पसंद नहीं करता है। लेकिन अल्लाह ने अपने अनुग्रह से तुम्हारे लिए ईमान को प्रिय कर दिया और उसे तुम्हारे दिलों में सुंदर बना दिया है, इसलिए तुम ईमान ले आए तथा उसने कुफ़्र, अवज्ञा और पाप को तुम्हारे लिए घिनौना बना दिया। ये लोग जो इन गुणों से सुसज्जित हैं वही हिदायत और भलाई के रास्ते पर चलने वाले हैं। info
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8 : 49

فَضْلًا مِّنَ اللّٰهِ وَنِعْمَةً ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟

तुम्हें जो कुछ प्राप्त हुआ (जैसे तुम्हारे दिलों में भलाई को सुंदर और बुराई को अप्रिय बनाना), वह केवल अल्लाह का अनुग्रह है, जो उसने तुमपर किया है और उसकी नेमत है, जो उसने तुम्हें प्रदान की है। और अल्लाह अपने बंदों में से उसे खूब जानने वाला है, जो उसका शुक्र अदा करता है, इसलिए उसे सामर्थ्य प्रदान करता है, तथा पूर्ण हिकमत वाला है क्योंकि वह हर चीज़ को उसके उचित स्थान पर रखता है। info
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9 : 49

وَاِنْ طَآىِٕفَتٰنِ مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ اقْتَتَلُوْا فَاَصْلِحُوْا بَیْنَهُمَا ۚ— فَاِنْ بَغَتْ اِحْدٰىهُمَا عَلَی الْاُخْرٰی فَقَاتِلُوا الَّتِیْ تَبْغِیْ حَتّٰی تَفِیْٓءَ اِلٰۤی اَمْرِ اللّٰهِ ۚ— فَاِنْ فَآءَتْ فَاَصْلِحُوْا بَیْنَهُمَا بِالْعَدْلِ وَاَقْسِطُوْا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ یُحِبُّ الْمُقْسِطِیْنَ ۟

यदि मोमिनों के दो समूह आपस में लड़ पड़ें, तो (ऐ मोमिनो!) दोनों के बीच सुलह करा दो, इस प्रकार कि उन दोनों को अपने विवाद में अल्लाह की शरीयत को मध्यस्थ बनाने के लिए आमंत्रित करो। फिर यदि दोनों में से एक सुलह से इनकार कर दे और ज़्यादती करे, तो ज़्यादती करने वाले समूह से लड़ो, यहाँ तक कि वह अल्लाह के फैसले की ओर पलट आए। अगर वह अल्लाह के फैसले की ओर पलट आए, तो दोनों के बीच न्याय और निष्पक्षता के साथ सुलह करा दो और दोनों के बीच अपने निर्णय में न्याय से काम लो। निःसंदेह अल्लाह उन लोगों से प्रेम करता है, जो अपने निर्णय में न्याय से काम लेते हैं। info
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10 : 49

اِنَّمَا الْمُؤْمِنُوْنَ اِخْوَةٌ فَاَصْلِحُوْا بَیْنَ اَخَوَیْكُمْ وَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ۟۠

ईमान वाले तो इस्लाम में भाई हैं, और इस्लाम में भाईचारे का तक़ाज़ा है यह है कि (ऐ ईमान वालो!) तुम अपने दो झगड़ने वाले भाइयों के बीच मेल-मिलाप करा दो। तथा अल्लाह से, उसकी आज्ञाओं का पालन करके और उसके निषेधों से दूर रहकर, डरते रहो; इस आशा में कि तुमपर दया की जाए। info
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11 : 49

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا یَسْخَرْ قَوْمٌ مِّنْ قَوْمٍ عَسٰۤی اَنْ یَّكُوْنُوْا خَیْرًا مِّنْهُمْ وَلَا نِسَآءٌ مِّنْ نِّسَآءٍ عَسٰۤی اَنْ یَّكُنَّ خَیْرًا مِّنْهُنَّ ۚ— وَلَا تَلْمِزُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَلَا تَنَابَزُوْا بِالْاَلْقَابِ ؕ— بِئْسَ الِاسْمُ الْفُسُوْقُ بَعْدَ الْاِیْمَانِ ۚ— وَمَنْ لَّمْ یَتُبْ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ ۟

ऐ अल्लाह पर ईमान लाने वालो और उसकी शरीयत पर अमल करने वालो! तुम्हारे पुरुषों का कोई समूह दूसरे समूह का मज़ाक न उड़ाए, संभव है कि जिनका मज़ाक उड़ाया जा रहा है, वे अल्लाह के निकट अच्छे हों, और मायने वही रखता है जो अल्लाह के निकट है। और न कोई स्त्रियाँ दूसरी स्त्रियों का मज़ाक उड़ाएँ, संभव है कि जिन स्त्रियों का मज़ाक उड़ाया जा रहा है, वे अल्लाह के निकट बेहतर हों। और अपने भाइयों पर दोष न लगाओ, क्योंकि वे तुम्हारी अपनी जानों के दर्जे में हैं। और तुममें से कोई किसी को ऐसी उपाधि के द्वारा शरम न दिलाए, जिसे वह नापसंद करता है, जैसा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगमन से पहले कुछ अंसारियों का हाल था। तुममें से जो ऐसा करेगा, वह अवज्ञाकारी है। ईमान के बाद अवज्ञा की विशेषता बहुत बुरी विशेषता है। और जिसने इन पापों से तौबा नहीं की, तो वही लोग अपने किए हुए पापों के कारण खुद को विनाश के संसाधनों में लाकर, अपने आपपर अत्याचार करने वाले हैं। info
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ក្នុង​ចំណោម​អត្ថប្រយោជន៍​នៃអាយ៉ាត់ទាំងនេះក្នុងទំព័រនេះ:
• وجوب التثبت من صحة الأخبار، خاصة التي ينقلها من يُتَّهم بالفسق.
• समाचारों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने की अनिवार्यता, विशेष रूप से उन समाचारों की, जिन्हें पहुँचाने वाला दुराचार से आरोपित हो। info

• وجوب الإصلاح بين من يتقاتل من المسلمين، ومشروعية قتال الطائفة التي تصر على الاعتداء وترفض الصلح.
• आपस में लड़ने वाले मुसलमानों के बीच सुलह कराने की अनिवार्यता, और उस समूह से लड़ने की वैधता जो ज़्यादती करने पर अडिग है और सुलह को अस्वीकार करती है। info

• من حقوق الأخوة الإيمانية: الصلح بين المتنازعين والبعد عما يجرح المشاعر من السخرية والعيب والتنابز بالألقاب.
• ईमानी भाईचारे के अधिकारों में : विवाद करने वालों के बीच सुलह कराना, भावनाओं को आहत करने वाली चीजों जैसे कि मज़ाक़ उड़ाने, दोष लगाने और बुरे उपनामों से पुकारने से दूर रहना, है। info