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35 : 16

وَقَالَ الَّذِیْنَ اَشْرَكُوْا لَوْ شَآءَ اللّٰهُ مَا عَبَدْنَا مِنْ دُوْنِهٖ مِنْ شَیْءٍ نَّحْنُ وَلَاۤ اٰبَآؤُنَا وَلَا حَرَّمْنَا مِنْ دُوْنِهٖ مِنْ شَیْءٍ ؕ— كَذٰلِكَ فَعَلَ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚ— فَهَلْ عَلَی الرُّسُلِ اِلَّا الْبَلٰغُ الْمُبِیْنُ ۟

और अल्लाह के साथ अन्य चीज़ों की पूजा करने वालों ने कहा : यदि अल्लाह चाहता कि हम केवल उसी की पूजा करें और किसी को उसका साझी न बनाएँ, तो हम उसके सिवा किसी को न पूजते। न हम और न ही हमसे पहले हमारे बाप-दादा। इसी तरह यदि वह चाहता कि हम किसी चीज़ को हराम न ठहराएँ, तो हम उसे हराम न ठहराते। इसी तरह के झूठे तर्क पिछले काफ़िरों ने भी दिए थे। अतः रसूलों का कर्तव्य केवल उस चीज़ को स्पष्ट रूप से पहुँचा देना है, जिसके पहुँचाने का उन्हें आदेश दिया गया है और निश्चय उन्होंने अपना काम कर दिया है। और काफ़िर लोगों के पास भाग्य को बहाना बनाने में कोई तर्क नहीं है, जबकि अल्लाह ने उन्हें इरादा और चयन का अधिकार दिया है और उनकी ओर अपने रसूल भेजे हैं। info
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36 : 16

وَلَقَدْ بَعَثْنَا فِیْ كُلِّ اُمَّةٍ رَّسُوْلًا اَنِ اعْبُدُوا اللّٰهَ وَاجْتَنِبُوا الطَّاغُوْتَ ۚ— فَمِنْهُمْ مَّنْ هَدَی اللّٰهُ وَمِنْهُمْ مَّنْ حَقَّتْ عَلَیْهِ الضَّلٰلَةُ ؕ— فَسِیْرُوْا فِی الْاَرْضِ فَانْظُرُوْا كَیْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِیْنَ ۟

हमने पिछले हर समुदाय में एक रसूल भेजा, जो अपने समुदाय के लोगों को आदेश देता कि वे एक अल्लाह की इबादत करें और उसके अलावा मूर्तियों, शैतानों और अन्य चीज़ों की इबादत छोड़ दें। चुनाँचे उनमें से कुछ को अल्लाह ने सामर्थ्य प्रदान किया और वे अल्लाह पर ईमान लाए और उसके रसूल की लाई हुई बातों का पालन किए। तथा उनमें से कुछ ऐसे थे जिन्होंने अल्लाह का इनकार किया और उसके रसूल की अवज्ञा की, तो अल्लाह ने उन्हें सामर्थ्य नहीं दिया। अतः उनपर गुमराही सिद्ध हो गई। इसलिए धरती में चलो-फिरो, ताकि अपनी आँखों से देखो कि झुठलाने वालों पर यातना और विनाश आने के बाद उनका अंजाम कैसा हुआ? info
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37 : 16

اِنْ تَحْرِصْ عَلٰی هُدٰىهُمْ فَاِنَّ اللّٰهَ لَا یَهْدِیْ مَنْ یُّضِلُّ وَمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِیْنَ ۟

(ऐ रसूल!) यदि आप इन लोगों को निमंत्रण देने का अपना भरसक प्रयास कर लें और उनके सत्य मार्ग पर आने के लिए बहुत लालायित रहें और उसके कारणों को अपनाएँ; किंतु अल्लाह जिसे गुमराह कर दे, उसे सीधी राह नहीं दिखाता। और ऐसे लोगों को अल्लाह के अलावा कोई नहीं मिलेगा, जो उनसे यातना को दूर करके उनकी मदद करे। info
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38 : 16

وَاَقْسَمُوْا بِاللّٰهِ جَهْدَ اَیْمَانِهِمْ ۙ— لَا یَبْعَثُ اللّٰهُ مَنْ یَّمُوْتُ ؕ— بَلٰی وَعْدًا عَلَیْهِ حَقًّا وَّلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا یَعْلَمُوْنَ ۟ۙ

इन पुनर्जीवन को झुठलाने वालों ने अतिशयोक्ति करते हुए बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पक्की क़समें खाते हुए कहा : अल्लाह मरने वाले को दोबारा ज़िंदा करके नहीं उठाएगा। जबकि उनके पास इसके लिए कोई तर्क नहीं है। क्यों नहीं! अल्लाह हर मरने वाले को ज़िंदा करके उठाएगा। यह उसके ऊपर सच्चा वादा है। किंतु अधिकतर लोग इस बात को नहीं जानते कि अल्लाह मृतकों को दोबारा ज़िंदा करके उठाएगा। यही कारण है कि वे पुनर्जीवन का इनकार करते हैं। info
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39 : 16

لِیُبَیِّنَ لَهُمُ الَّذِیْ یَخْتَلِفُوْنَ فِیْهِ وَلِیَعْلَمَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْۤا اَنَّهُمْ كَانُوْا كٰذِبِیْنَ ۟

अल्लाह उन सभी लोगों को क़ियामत के दिन दोबारा जीवित करके उठाएगा, ताकि उनके लिए उन बातों की वास्तविकता को स्पष्ट कर दे, जिनके बारे में वे मतभेद किया करते थे, जैसे एकेश्वरवाद, पुनर्जीवन और नुबुव्वत और ताकि काफ़िर लोग जान लें कि वे अल्लाह के साथ साझी होने के अपने दावे में और पूनर्जीवन के इनकार में झूठे थे। info
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40 : 16

اِنَّمَا قَوْلُنَا لِشَیْءٍ اِذَاۤ اَرَدْنٰهُ اَنْ نَّقُوْلَ لَهٗ كُنْ فَیَكُوْنُ ۟۠

जब हम मृतकों को पुनर्जीवित करना और उन्हें उठाना चाहें, तो हमें कोई चीज़ इससे रोक नहीं सकती। जब हम किसी चीज़ को पैदा करना चाहते हैं, तो उसे केवल यह कहते हैं कि : (हो जा), तो वह अनिवार्य रूप से हो जाती है। info
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41 : 16

وَالَّذِیْنَ هَاجَرُوْا فِی اللّٰهِ مِنْ بَعْدِ مَا ظُلِمُوْا لَنُبَوِّئَنَّهُمْ فِی الدُّنْیَا حَسَنَةً ؕ— وَلَاَجْرُ الْاٰخِرَةِ اَكْبَرُ ۘ— لَوْ كَانُوْا یَعْلَمُوْنَ ۟ۙ

और जिन लोगों ने काफ़िरों का अत्याचार सहने के बाद, अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए कुफ़्र के देश से इस्लाम के देश की ओर हिजरत करते हुए अपने घर-बार, बीवी-बच्चों और धन-दौलत को छोड़ दिया, हम उन्हें इस दुनिया में एक ऐसे घर में उतारेंगे, जिसमें वे ससम्मान रहेंगे। और आख़िरत का बदला इससे अधिक बड़ा है, क्योंकि उसमें जन्नत भी शामिल है। यदि हिजरत से पीछे रहने वाले हिजरत करने वालों का प्रतिफल जान लेते, तो उससे पीछे न रहते। info
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42 : 16

الَّذِیْنَ صَبَرُوْا وَعَلٰی رَبِّهِمْ یَتَوَكَّلُوْنَ ۟

ये अल्लाह के मार्ग में हिजरत करने वाले वे लोग हैं, जिन्होंने अपने समुदाय के कष्ट पर तथा अपने परिवार और अपने घर के लोगों को छोड़ने पर धैर्य रखा, तथा अल्लाह के आज्ञापालन पर धैर्य से काम लिया, तथा वे अपने सभी मामलों में केवल अल्लाह पर भरोसा रखते हैं। इसलिए अल्लाह ने उन्हें यह महान प्रतिफल प्रदान किया। info
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ក្នុង​ចំណោម​អត្ថប្រយោជន៍​នៃអាយ៉ាត់ទាំងនេះក្នុងទំព័រនេះ:
• العاقل من يعتبر ويتعظ بما حل بالضالين المكذبين كيف آل أمرهم إلى الدمار والخراب والعذاب والهلاك.
• बुद्धिमान वह है, जो झुठलाने वाले गुमराह समुदायों पर उतरने वाले विनाश, तबाही और यातना से शिक्षा ग्रहण करता है। info

• الحكمة من البعث والمعاد إظهار الله الحقَّ فيما يختلف فيه الناس من أمر البعث وكل شيء.
• दोबारा ज़िंदा करने की हिकमत, अल्लाह का पुनर्जीवन और हर उस चीज़ के बारे में सत्य को प्रकट करना है, जिसमें लोग मतभेद करते हैं। info

• فضيلة الصّبر والتّوكل: أما الصّبر: فلما فيه من قهر النّفس، وأما التّوكل: فلأن فيه الثقة بالله تعالى والتعلق به.
• सब्र और तवक्कुल का महत्व : सब्र का इसलिए कि इसमें नफ़्स को क़ाबू में रखना (आत्म-संयम) पाया जाता है। और तवक्कुल का इसलिए कि इसमें अल्लाह पर भरोसा और उसके प्रति लगाव पाया जाता है। info

• جزاء المهاجرين الذين تركوا ديارهم وأموالهم وصبروا على الأذى وتوكّلوا على ربّهم، هو الموطن الأفضل، والمنزلة الحسنة، والعيشة الرّضية، والرّزق الطّيّب الوفير، والنّصر على الأعداء، والسّيادة على البلاد والعباد.
• जिन मुहाजिरों ने घर-बार और धन-दौलत छोड़ी, कष्ट पर धैर्य से काम लिया और अपने रब पर भरोसा रखा, उनका बदला सबसे अच्छा घर, अच्छी स्थिति, सुखमय जीवन, प्रचुर पवित्र रोज़ी, दुश्मनों पर जीत तथा बंदों और देश पर संप्रभुता है। info