17. आयत का अर्थ यह है कि जब ईसाइयों ने वचन भंग कर दिया, तो उनमें कई परस्पर विरोधी संप्रदाय हो गए, जैसे याक़ूबिय्यः, नसतूरिय्यः और आरयूसिय्यः। ये सभी एक-दूसरे के शत्रु हो गए। तथा इस समय आर्थिक और राजनीतिक संप्रदायों में विभाजित होकर आपस में रक्तपात कर रहे हैं। इसमें मुसलमानों को भी सावधान किया गया है कि क़ुरआन के अर्थों में परिवर्तन करके ईसाइयों के समान संप्रदायों में विभाजित न होना।
18. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम। तथा प्रकाश से अभिप्राय क़ुरआन पाक है।
19. इस आयत में ईसा अलैहिस्सलाम के अल्लाह होने की मिथ्या आस्था का खंडन किया जा रहा है।