5. इस्लाम से पहले साधारणतः यह विचार था कि पुत्रियों का धन और संपत्ति की विरासत (उत्तराधिकार) में कोई भाग नहीं। इसमें इस कुरीति का निवारण किया गया और नियम बना दिय गया कि अधिकार में पुत्र और पुत्री दोनों समान हैं। यह इस्लाम ही की विशेषता है जो संसार के किसी धर्म अथवा विधान में नहीं पाई जाती। इस्लाम ही ने सर्वप्रथम नारी के साथ न्याय किया और उसे पुरुषों के बराबर अधिकार दिया है।
6. इन से अभिप्राय वे समीपवर्ती हैं जिनका मीरास में निर्धारित भाग न हो, जैसे अनाथ पौत्र तथा पौत्री आदि। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4576)
7. अर्थात केवल पुत्रियाँ हों, तो दो हों अथवा दो से अधिक हों। 8. अर्थात न पुत्र है और न पुत्री। 9. और शेष पिता का होगा। भाई-बहनों को कुछ नहीं मिलेगा। 10. वसिय्यत का अर्थ उत्तरदान है, जो एक तिहाई या उससे कम होना चाहिए, परंतु वारिस के लिए उत्तरदान नहीं है। (देखिए : तिर्मिज़ी : 975) पहले ऋण चुकाया जाएगा, फिर वसिय्यत पूरी की जाएगी, फिर माँ का छठा भाग दिया जाएगा।