Traduction des sens du Noble Coran - La traduction indienne du Résumé dans l'Exégèse du noble Coran

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95 : 4

لَا یَسْتَوِی الْقٰعِدُوْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ غَیْرُ اُولِی الضَّرَرِ وَالْمُجٰهِدُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ بِاَمْوَالِهِمْ وَاَنْفُسِهِمْ ؕ— فَضَّلَ اللّٰهُ الْمُجٰهِدِیْنَ بِاَمْوَالِهِمْ وَاَنْفُسِهِمْ عَلَی الْقٰعِدِیْنَ دَرَجَةً ؕ— وَكُلًّا وَّعَدَ اللّٰهُ الْحُسْنٰی ؕ— وَفَضَّلَ اللّٰهُ الْمُجٰهِدِیْنَ عَلَی الْقٰعِدِیْنَ اَجْرًا عَظِیْمًا ۟ۙ

उज़्र वालों जैसे कि बीमार और अंधे लोगों के अलावा अल्लाह के रास्ते में जिहाद छोड़कर घर बैठ रहने वाले मोमिन तथा अल्लाह के मार्ग में अपनी जानों और मालों के साथ जिहाद करने वाले बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह ने जान एवं माल के साथ जिहाद करने वालों को पद के एतिबार से, जिहाद से बैठे रहने वालों पर प्रधानता प्रदान किया है। जबकि जिहाद करने वालों और उचित कारण की बिना पर जिहाद से बैठे रहने वालों में से प्रत्येक को उसका वह प्रतिफल मिलेगा जिसका वह वह हक़दार है।परंतु अल्लाह ने जिहाद करने वालों को अपनी ओर से महान प्रतिफल देकर उन्हें जिहाद से बैठ रहने वालों पर श्रेष्ठता प्रदान किया है। info
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96 : 4

دَرَجٰتٍ مِّنْهُ وَمَغْفِرَةً وَّرَحْمَةً ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟۠

यह सवाब (स्वर्ग में) एक के ऊपर एक घरों, साथ ही साथ उनके पापों के क्षमादान और उनपर अल्लाह की दया के रूप में होगा। तथा अल्लाह अपने बंदों को बड़ा क्षमा करने वाला और उन पर दया करने वाला है। info
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97 : 4

اِنَّ الَّذِیْنَ تَوَفّٰىهُمُ الْمَلٰٓىِٕكَةُ ظَالِمِیْۤ اَنْفُسِهِمْ قَالُوْا فِیْمَ كُنْتُمْ ؕ— قَالُوْا كُنَّا مُسْتَضْعَفِیْنَ فِی الْاَرْضِ ؕ— قَالُوْۤا اَلَمْ تَكُنْ اَرْضُ اللّٰهِ وَاسِعَةً فَتُهَاجِرُوْا فِیْهَا ؕ— فَاُولٰٓىِٕكَ مَاْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ ؕ— وَسَآءَتْ مَصِیْرًا ۟ۙ

फ़रिश्ते जिन लोगाों के प्राण इस हाल में निकालते हैं कि वे कुफ़्र की नगरी से इस्लाम की नगरी की तरफ़ हिजरत न करके अपने ऊपर अत्याचार करने वाले होते हैं, तो फरिश्ते उनका प्राण निकालते समय उन्हें फटकार लगाते हुए कहते हैं : तुम किस हाल में थे? और तुम किस चीज़ के द्वारा मुश्रिकों से भिन्न थे? तो वे कारण बताते हुए जवाब देते हैं : हम कमज़ोर व असहाय थे, हमारे पास इतनी शक्ति और ताक़त नहीं थी जिससे हम अपना बचाव कर सकते। तो फ़रिश्ते उन्हें फटकारते हुए कहेंगे : क्या अल्लाह की धरती विस्तृत नहीं थी कि तुम उसमें हिजरत कर जाते ताकि तुम अपने धर्म और अपने आपको अपमान और उत्पीड़न से बचा सकते?! अतः वे लोग जिन्होंने हिजरत नहीं किया, उनका ठिकाना जहाँ वे रहेंगे, नरक है और वह उनके लिए बहुत ही बुरा ठिकाना है। info
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98 : 4

اِلَّا الْمُسْتَضْعَفِیْنَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَآءِ وَالْوِلْدَانِ لَا یَسْتَطِیْعُوْنَ حِیْلَةً وَّلَا یَهْتَدُوْنَ سَبِیْلًا ۟ۙ

98-99- परंतु सज़ा की इस धमकी से उज़्र वाले कमज़ोर व लाचार पुरुष, स्त्री और बच्चे अलग हैं, जिनके पास अपने आपसे अत्याचार और उत्पीड़न को हटाने की शक्ति नहीं है तथा वे अपने उत्पीड़न से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं पाते हैं। तो अल्लाह ऐसे लोगों को अपनी दया व कृपा से निश्चय ही माफ़ कर देगा। अल्लाह अपने बंदों को माफ़ करने वाला और उनमें से तौबा करने वालों को क्षमा करने वाला है। info
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99 : 4

فَاُولٰٓىِٕكَ عَسَی اللّٰهُ اَنْ یَّعْفُوَ عَنْهُمْ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَفُوًّا غَفُوْرًا ۟

98-99- परंतु सज़ा की इस धमकी से उज़्र वाले कमज़ोर व लाचार पुरुष, स्त्री और बच्चे अलग हैं, जिनके पास अपने आपसे अत्याचार और उत्पीड़न को हटाने की शक्ति नहीं है तथा वे अपने उत्पीड़न से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं पाते हैं। तो अल्लाह ऐसे लोगों को अपनी दया व कृपा से निश्चय ही माफ़ कर देगा। अल्लाह अपने बंदों को माफ़ करने वाला और उनमें से तौबा करने वालों को क्षमा करने वाला है। info
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100 : 4

وَمَنْ یُّهَاجِرْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ یَجِدْ فِی الْاَرْضِ مُرٰغَمًا كَثِیْرًا وَّسَعَةً ؕ— وَمَنْ یَّخْرُجْ مِنْ بَیْتِهٖ مُهَاجِرًا اِلَی اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ ثُمَّ یُدْرِكْهُ الْمَوْتُ فَقَدْ وَقَعَ اَجْرُهٗ عَلَی اللّٰهِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟۠

जो व्यक्ति अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए कुफ़्र के देश से इस्लाम के देश की ओर हिजरत करेगा, वह उस भूमि में जिसमें उसने पलायन किया है एक नया स्थान और ज़मीन पाएगा, जहाँ उसे गौरव और व्यापक आजीविका प्राप्त होगी। तथा जो व्यक्ति अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की ओर हिजरत के उद्देश्य से निकलता है, फिर उसके अपने प्रवास स्थल पर पहुँचने से पहले उसकी मृत्यु हो जाती है, तो अल्लाह के यहाँ उसका सवाब निश्चित हो गया। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वह अपने प्रवास स्थल तक नहीं पहुँच सका। तथा अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदों को क्षमा करने वाला और उनपर दया करने वाला है। info
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101 : 4

وَاِذَا ضَرَبْتُمْ فِی الْاَرْضِ فَلَیْسَ عَلَیْكُمْ جُنَاحٌ اَنْ تَقْصُرُوْا مِنَ الصَّلٰوةِ ۖۗ— اِنْ خِفْتُمْ اَنْ یَّفْتِنَكُمُ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا ؕ— اِنَّ الْكٰفِرِیْنَ كَانُوْا لَكُمْ عَدُوًّا مُّبِیْنًا ۟

जब तुम धरती में यात्रा करो और काफ़िरों की ओर से कोई कष्ट पहुँचने का डर हो, तो चार रक्अत वाली नमाज़ों को क़स्र (कम) करके दो रक्अत पढ़ने में तुमपर कोई गुनाह नहीं है। निःसंदेह काफ़िरों की तुमसे दुश्मनी बिल्कुल खुली हुई स्पष्ट है। तथा सहीह सुन्नत (हदीस) से साबित है कि सुरक्षा की स्थिति में भी यात्रा करने में नमाज़ को क़स्र करना जायज़ है। info
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Parmi les bénéfices ( méditations ) des versets de cette page:
• فضل الجهاد في سبيل الله وعظم أجر المجاهدين، وأن الله وعدهم منازل عالية في الجنة لا يبلغها غيرهم.
• अल्लाह के रास्ते में जिहाद की विशेषता तथा मुजाहिदीन का महान प्रतिफल और यह कि अल्लाह ने उनके लिए जन्नत में उच्च घरों का वादा किया है, जहाँ दूसरे नहीं पहुँच सकते। info

• أصحاب الأعذار يسقط عنهم فرض الجهاد مع ما لهم من أجر إن حسنت نيتهم.
• ऐसे लोग जो किसी उचित कारण की बिना पर जिहाद में शामिल नहीं हो सकते, उन पर जिहाद अनिवार्य नहीं रह जाता। साथ ही यदि नीयत सही हो, तो उन्हें नेकी भी मिलती है। info

• فضل الهجرة إلى بلاد الإسلام، ووجوبها على القادر إن كان يخشى على دينه في بلده.
• इस्लाम की नगरी की ओर हिजरत की विशेषता और हिजरत करने में सक्षम व्यक्ति पर उसकी अनिवार्यता, यदि वह अपने देश में अपने धर्म के प्रति डरता है। info

• مشروعية قصر الصلاة في حال السفر.
• यात्रा की स्थिति में नमाज़ को क़स्र करने की वैधता। info