Traducción de los significados del Sagrado Corán - Traducción India - Azizul-Haqq Al-Umary

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39 : 19

وَاَنْذِرْهُمْ یَوْمَ الْحَسْرَةِ اِذْ قُضِیَ الْاَمْرُ ۘ— وَهُمْ فِیْ غَفْلَةٍ وَّهُمْ لَا یُؤْمِنُوْنَ ۟

और (ऐ नबी!) आप उन्हें पछतावे के दिन से डराएँ, जब हर काम का फैसला[14] कर दिया जाएगा, और वे पूरी तरह से ग़फ़लत में हैं और वे ईमान नहीं लाते। info

14. अर्थात प्रत्येक के कर्मानुसार उसके लिए नरक अथवा स्वर्ग का निर्णय कर दिया जाएगा। फिर मौत को एक भेड़ के रूप में वध कर दिया जाएगा। तथा घोषणा कर दी जाएगी कि ऐ स्वर्गियो! तुम्हें सदा रहना है, और अब मौत नहीं है। और हे नारकियो! तुम्हें सदा नरक में रहना है, अब मौत नहीं है। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्या : 4730)

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40 : 19

اِنَّا نَحْنُ نَرِثُ الْاَرْضَ وَمَنْ عَلَیْهَا وَاِلَیْنَا یُرْجَعُوْنَ ۟۠

निःसंदेह हम ही धरती के उत्तराधिकारी होंगे और उनके भी जो उसपर हैं और वे हमारी ही ओर लौटाए जाएँगे। info
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41 : 19

وَاذْكُرْ فِی الْكِتٰبِ اِبْرٰهِیْمَ ؕ۬— اِنَّهٗ كَانَ صِدِّیْقًا نَّبِیًّا ۟

तथा इस किताब में इबराहीम की चर्चा करें, निःसंदेह वह बहुत सच्चा (और) नबी था। info
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42 : 19

اِذْ قَالَ لِاَبِیْهِ یٰۤاَبَتِ لِمَ تَعْبُدُ مَا لَا یَسْمَعُ وَلَا یُبْصِرُ وَلَا یُغْنِیْ عَنْكَ شَیْـًٔا ۟

जब उसने अपने पिता से कहा : ऐ मेरे पिता! आप उस चीज़ को क्यों पूजते हैं, जो न सुनती है और न देखती है और न आपके किसी काम आती है? info
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43 : 19

یٰۤاَبَتِ اِنِّیْ قَدْ جَآءَنِیْ مِنَ الْعِلْمِ مَا لَمْ یَاْتِكَ فَاتَّبِعْنِیْۤ اَهْدِكَ صِرَاطًا سَوِیًّا ۟

ऐ मेरे पिता! निःसंदेह मेरे पास वह ज्ञान आया है, जो आपके पास नहीं आया, अतः आप मेरा अनुसरण करें, मैं आपको सीधा मार्ग दिखाऊँगा। info
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44 : 19

یٰۤاَبَتِ لَا تَعْبُدِ الشَّیْطٰنَ ؕ— اِنَّ الشَّیْطٰنَ كَانَ لِلرَّحْمٰنِ عَصِیًّا ۟

ऐ मेरे पिता! शैतान की पूजा न करें। निःसंदेह शैतान हमेशा से रहमान (परम दयालु अल्लाह) का अवज्ञाकारी है। info
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45 : 19

یٰۤاَبَتِ اِنِّیْۤ اَخَافُ اَنْ یَّمَسَّكَ عَذَابٌ مِّنَ الرَّحْمٰنِ فَتَكُوْنَ لِلشَّیْطٰنِ وَلِیًّا ۟

ऐ मेरे पिता! वास्तव में, मुझे डर है कि आपको रहमान (परम दयालु) की ओर से कोई यातना आ लगे, फिर आप शैतान के मित्र हो जाएँगे। info
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46 : 19

قَالَ اَرَاغِبٌ اَنْتَ عَنْ اٰلِهَتِیْ یٰۤاِبْرٰهِیْمُ ۚ— لَىِٕنْ لَّمْ تَنْتَهِ لَاَرْجُمَنَّكَ وَاهْجُرْنِیْ مَلِیًّا ۟

उसने कहा : क्या तू हमारे पूज्यों से विमुख हो रहा है, ऐ इबराहीम!? निश्चय यदि तू बाज़ न आया, तो मैं अवश्य ही तुझे संगसार कर दूँगा और तू लंबे समय के लिए मुझसे अलग हो जा। info
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47 : 19

قَالَ سَلٰمٌ عَلَیْكَ ۚ— سَاَسْتَغْفِرُ لَكَ رَبِّیْ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ بِیْ حَفِیًّا ۟

(इबराहीम ने) कहा : आपपर सलाम हो! मैं अपने पालनहार से आपके लिए अवश्य क्षमा की प्रार्थना करूँगा। निःसंदेह वह हमेशा से मुझपर बहुत दयालु है। info
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48 : 19

وَاَعْتَزِلُكُمْ وَمَا تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَاَدْعُوْا رَبِّیْ ۖؗ— عَسٰۤی اَلَّاۤ اَكُوْنَ بِدُعَآءِ رَبِّیْ شَقِیًّا ۟

तथा मैं आप लोगों से और उन चीज़ों से जिन्हें आप लोग अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, किनारा करता हूँ और अपने पालनहार को पुकारता हूँ। आशा है कि मैं अपने रब को पुकारकर असफल नहीं रहूँगा। info
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49 : 19

فَلَمَّا اعْتَزَلَهُمْ وَمَا یَعْبُدُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۙ— وَهَبْنَا لَهٗۤ اِسْحٰقَ وَیَعْقُوْبَ ؕ— وَكُلًّا جَعَلْنَا نَبِیًّا ۟

फिर जब वह उनसे और उन चीज़ों से जिनकी वे अल्लाह के सिवा पूजा करते थे, अलग हो गया, तो हमने उसे इसहाक़ और याक़ूब प्रदान किए और हर एक को हमने नबी बनाया। info
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50 : 19

وَوَهَبْنَا لَهُمْ مِّنْ رَّحْمَتِنَا وَجَعَلْنَا لَهُمْ لِسَانَ صِدْقٍ عَلِیًّا ۟۠

तथा हमने उन्हें अपनी रहमत से हिस्सा दिया और उन्हें बहुत ऊँची, सच्ची ख्याति प्रदान की। info
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51 : 19

وَاذْكُرْ فِی الْكِتٰبِ مُوْسٰۤی ؗ— اِنَّهٗ كَانَ مُخْلَصًا وَّكَانَ رَسُوْلًا نَّبِیًّا ۟

और आप इस पुस्तक में मूसा की चर्चा करें। निश्चय वह चुना हुआ था तथा रसूल एवं नबी था। info
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