Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - Hindi translation - Azizul Haq Al-Omari

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73 : 9

یٰۤاَیُّهَا النَّبِیُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنٰفِقِیْنَ وَاغْلُظْ عَلَیْهِمْ ؕ— وَمَاْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ ؕ— وَبِئْسَ الْمَصِیْرُ ۟

ऐ नबी! काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करें और उनपर सख़्ती करें। और उनका ठिकाना जहन्नम है और वह बहुत बुरा लौटकर जाने का स्थान है। info
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74 : 9

یَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ مَا قَالُوْا ؕ— وَلَقَدْ قَالُوْا كَلِمَةَ الْكُفْرِ وَكَفَرُوْا بَعْدَ اِسْلَامِهِمْ وَهَمُّوْا بِمَا لَمْ یَنَالُوْا ۚ— وَمَا نَقَمُوْۤا اِلَّاۤ اَنْ اَغْنٰىهُمُ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ مِنْ فَضْلِهٖ ۚ— فَاِنْ یَّتُوْبُوْا یَكُ خَیْرًا لَّهُمْ ۚ— وَاِنْ یَّتَوَلَّوْا یُعَذِّبْهُمُ اللّٰهُ عَذَابًا اَلِیْمًا فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ۚ— وَمَا لَهُمْ فِی الْاَرْضِ مِنْ وَّلِیٍّ وَّلَا نَصِیْرٍ ۟

वे अल्लाह की क़सम खाते हैं कि उन्होंने (यह) बात[36] नहीं कही। हालाँकि निःसंदेह उन्होंने कुफ़्र की बात[37] कही और अपने इस्लाम लाने के पश्चात् काफ़िर हो गए और उन्होंने उस चीज़ का इरादा किया, जो उन्हें नहीं मिली। और उन्होंने केवल इसका बदला लिया कि अल्लाह और उसके रसूल ने उन्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध[38] कर दिया। अब यदि वे तौबा कर लें, तो उनके लिए बेहतर होगा और अगर वे मुँह फेर लें, तो अल्लाह उन्हें दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब देगा और उनका धरती पर न कोई दोस्त होगा और न कोई मददगार। info

36. अर्थात ऐसी बात जो रसूल और मुसलमानों को बुरी लगे। 37. यह उन बातों की ओर संकेत हैं जो मुनाफ़िक़ों ने तबूक की मुहिम के समय की थीं। (उनकी ऐसी बातों के विवरण के लिए देखिए : सूरतुल मुनाफ़िक़ून, आयत : 7-8) 38. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मदीना आने से पहले मदीने का कोई महत्व न था। आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं थी। जो कुछ था यहूदियों के अधिकार में था। वे ब्याज भक्षी थे, शराब का व्यापार करते थे, और अस्त्र-शस्त्र बनाते थे। आपके आगमन के पश्चात आर्थिक दशा सुधर गई, और व्यवसायिक उन्नति हुई।

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75 : 9

وَمِنْهُمْ مَّنْ عٰهَدَ اللّٰهَ لَىِٕنْ اٰتٰىنَا مِنْ فَضْلِهٖ لَنَصَّدَّقَنَّ وَلَنَكُوْنَنَّ مِنَ الصّٰلِحِیْنَ ۟

और उनमें से कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने अल्लाह को वचन दिया कि निश्चय यदि उसने हमें अपने अनुग्रह से कुछ प्रदान किया, तो हम अवश्य दान करेंगे और निश्चित रूप से नेक लोगों में से हो जाएँगे। info
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76 : 9

فَلَمَّاۤ اٰتٰىهُمْ مِّنْ فَضْلِهٖ بَخِلُوْا بِهٖ وَتَوَلَّوْا وَّهُمْ مُّعْرِضُوْنَ ۟

फिर जब उसने उन्हें अपने अनुग्रह से कुछ प्रदान किया, तो उन्होंने उसमें कंजूसी की और विमुख होकर फिर गए। info
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77 : 9

فَاَعْقَبَهُمْ نِفَاقًا فِیْ قُلُوْبِهِمْ اِلٰی یَوْمِ یَلْقَوْنَهٗ بِمَاۤ اَخْلَفُوا اللّٰهَ مَا وَعَدُوْهُ وَبِمَا كَانُوْا یَكْذِبُوْنَ ۟

तो परिणाम यह हुआ कि उस (अल्लाह) ने उनके दिलों में उस दिन तक के लिए निफ़ाक़ डाल दिया, जब वे उससे मिलेंगे। क्योंकि उन्होंने अल्लाह से जो वादा किया था, उसका उल्लंघन किया और इसलिए कि वे झूठ बोलते थे। info
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78 : 9

اَلَمْ یَعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ یَعْلَمُ سِرَّهُمْ وَنَجْوٰىهُمْ وَاَنَّ اللّٰهَ عَلَّامُ الْغُیُوْبِ ۟ۚ

क्या उन्हें नहीं मालूम कि निःसंदेह अल्लाह उनके भेद और उनकी कानाफूसी को अच्छी तरह जानता है और यह कि निःसंदेह अल्लाह परोक्ष की सभी बातों को भली-भाँति जानने वाला है? info
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79 : 9

اَلَّذِیْنَ یَلْمِزُوْنَ الْمُطَّوِّعِیْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ فِی الصَّدَقٰتِ وَالَّذِیْنَ لَا یَجِدُوْنَ اِلَّا جُهْدَهُمْ فَیَسْخَرُوْنَ مِنْهُمْ ؕ— سَخِرَ اللّٰهُ مِنْهُمْ ؗ— وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟

वे लोग जो स्वेच्छापूर्वक दान देने वाले मोमिनों को, उनके दान के विषय में, ताना देते हैं तथा उन लोगों को (भी) जो अपनी मेहनत के सिवा कुछ नहीं पाते। तो वे (मुनाफ़िक़) उनका उपहास करते हैं। अल्लाह ने उनका उपहास किया[39] और उनके लिए दर्दनाक यातना है। info

39. अर्थात उनके उपहास का कुफल दे रहा है। अबू मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि जब हमें दान देने का आदेश दिया गया, तो हम कमाने के लिए बोझ लादने लगे, ताकि हम दान कर सकें। और अबू अक़ील (रज़ियल्लाहु अन्हु) आधा सा' (सवा किलो) लाए। और एक व्यक्ति उनसे अधिक लेकर आया। तो मुनाफ़िक़ों ने कहा : अल्लाह को उसके थोड़े-से दान की ज़रूरत नहीं। और यह दिखाने के लिए (अधिक) लाया है। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4668)

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