Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - Hindi translation - Azizul Haq Al-Omari

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78 : 3

وَاِنَّ مِنْهُمْ لَفَرِیْقًا یَّلْوٗنَ اَلْسِنَتَهُمْ بِالْكِتٰبِ لِتَحْسَبُوْهُ مِنَ الْكِتٰبِ وَمَا هُوَ مِنَ الْكِتٰبِ ۚ— وَیَقُوْلُوْنَ هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ وَمَا هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ۚ— وَیَقُوْلُوْنَ عَلَی اللّٰهِ الْكَذِبَ وَهُمْ یَعْلَمُوْنَ ۟

और निःसंदेह उनमें से निश्चय कुछ लोग[40] ऐसे हैं, जो किताब (पढ़ने) के साथ अपनी ज़बानें मरोड़ते हैं, ताकि तुम उसे पुस्तक में से समझो, हालाँकि वह पुस्तक में से नहीं और कहते हैं, यह अल्लाह की ओर से है। हालाँकि वह अल्लाह की ओर से नहीं और अल्लाह पर झूठ कहते हैं, हालाँकि वे जानते हैं। info

40. इससे अभिप्राय यहूदी विद्वान हैं। और पुस्तक से अभिप्राय तौरात है।

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79 : 3

مَا كَانَ لِبَشَرٍ اَنْ یُّؤْتِیَهُ اللّٰهُ الْكِتٰبَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ ثُمَّ یَقُوْلَ لِلنَّاسِ كُوْنُوْا عِبَادًا لِّیْ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَلٰكِنْ كُوْنُوْا رَبّٰنِیّٖنَ بِمَا كُنْتُمْ تُعَلِّمُوْنَ الْكِتٰبَ وَبِمَا كُنْتُمْ تَدْرُسُوْنَ ۟ۙ

किसी मनुष्य का यह अधिकार नहीं कि अल्लाह उसे पुस्तक, निर्णय शक्ति और नुबुव्वत (पैग़ंबरी) प्रदान करे, फिर वह लोगों से कहे कि अल्लाह को छोड़कर मेरे बंदे बन जाओ[41], बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम रब वाले बनो, इसलिए कि तुम पुस्तक की शिक्षा दिया करते थे और इसलिए कि तुम पढ़ा करते थे। info

41. भावार्थ यह है कि जब नबी के लिए योग्य नहीं कि लोगों से कहे कि मेरी इबादत करो, तो किसी अन्य के लिए कैसे योग्य हो सकता है?

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80 : 3

وَلَا یَاْمُرَكُمْ اَنْ تَتَّخِذُوا الْمَلٰٓىِٕكَةَ وَالنَّبِیّٖنَ اَرْبَابًا ؕ— اَیَاْمُرُكُمْ بِالْكُفْرِ بَعْدَ اِذْ اَنْتُمْ مُّسْلِمُوْنَ ۟۠

तथा न यह (अधिकार है) कि तुम्हें आदेश दे कि फ़रिश्तों और नबियों को रब (पूज्य)[42] बना लो। क्या वह तुम्हें कुफ़्र का आदेश देगा, इसके बाद कि तुम मुसलमान (अल्लाह के आज्ञाकारी) हो? info

42. जैसे अपने पालनहार के आगे झुकते हो, उसी प्रकार उनके आगे भी झुको।

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81 : 3

وَاِذْ اَخَذَ اللّٰهُ مِیْثَاقَ النَّبِیّٖنَ لَمَاۤ اٰتَیْتُكُمْ مِّنْ كِتٰبٍ وَّحِكْمَةٍ ثُمَّ جَآءَكُمْ رَسُوْلٌ مُّصَدِّقٌ لِّمَا مَعَكُمْ لَتُؤْمِنُنَّ بِهٖ وَلَتَنْصُرُنَّهٗ ؕ— قَالَ ءَاَقْرَرْتُمْ وَاَخَذْتُمْ عَلٰی ذٰلِكُمْ اِصْرِیْ ؕ— قَالُوْۤا اَقْرَرْنَا ؕ— قَالَ فَاشْهَدُوْا وَاَنَا مَعَكُمْ مِّنَ الشّٰهِدِیْنَ ۟

तथा (याद करो) जब अल्लाह ने सब नबियों से दृढ़ वचन लिया कि मैं किताब और हिकमत में से जो कुछ तुम्हें दूँ, फिर तुम्हारे पास कोई रसूल आए जो उसकी पुष्टि करने वाला हो जो तुम्हारे पास है, तो तुम उसपर अवश्य ईमान लाओगे और अवश्य उसका समर्थन करोगे। (अल्लाह ने) कहा : क्या तुमने स्वीकार किया और उसपर मेरी प्रतिज्ञा क़बूल की? उन्होंने कहा : हमने स्वीकार कर लिया। (अल्लाह ने) कहा : तो तुम गवाह रहो और मैं भी तुम्हारे साथ गवाहों में से हूँ।[43] info

43. भावार्थ यह है कि जब आगामी नबियों को ईमान लाना आवश्यक है, तो उनके अनुयायियों को भी ईमान लाना आवश्यक होगा। अतः अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाना सभी के लिए अनिवार्य है।

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82 : 3

فَمَنْ تَوَلّٰی بَعْدَ ذٰلِكَ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْفٰسِقُوْنَ ۟

फिर जो इसके बाद[44] फिर जाए, तो यही लोग अवज्ञाकारी हैं। info

44. अर्थात इस वचन और प्रण के बाद।

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83 : 3

اَفَغَیْرَ دِیْنِ اللّٰهِ یَبْغُوْنَ وَلَهٗۤ اَسْلَمَ مَنْ فِی السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ طَوْعًا وَّكَرْهًا وَّاِلَیْهِ یُرْجَعُوْنَ ۟

तो क्या वे अल्लाह के धर्म (इस्लाम) के अलावा कुछ और तलाश करते हैं? जबकि आकाशों और धरती में जो भी है स्वेच्छा से और अनिच्छा से उसी का आज्ञाकारी[45] है तथा वे उसी की ओर लौटाए[46] जाएँगे। info

45. अर्थात उसी की आज्ञा तथा व्यवस्था के अधीन हैं। फिर तुम्हें इस स्वभाविक धर्म से इनकार क्यों है? 46. अर्थात प्रलय के दिन अपने कर्मों के प्रतिफल के लिए।

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