Übersetzung der Bedeutungen von dem heiligen Quran - Die Übersetzung in Hindi - Azizul-Haqq Al-Umari

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51 : 28

وَلَقَدْ وَصَّلْنَا لَهُمُ الْقَوْلَ لَعَلَّهُمْ یَتَذَكَّرُوْنَ ۟ؕ

और निःसंदेह हमने उनकी ओर निरंतर संदेश पहुँचाया, ताकि वे नसीहत ग्रहण करें। info
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52 : 28

اَلَّذِیْنَ اٰتَیْنٰهُمُ الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِهٖ هُمْ بِهٖ یُؤْمِنُوْنَ ۟

जिन लोगों को हमने इससे पहले किताब[15] दी थी, वे[16] इसपर ईमान लाते हैं। info

15. अर्थात तौरात तथा इंजील। 16. अर्थात उनमें से जिन्होंने अपनी मूल पुस्तक में परिवर्तन नहीं किया है।

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53 : 28

وَاِذَا یُتْلٰی عَلَیْهِمْ قَالُوْۤا اٰمَنَّا بِهٖۤ اِنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَّبِّنَاۤ اِنَّا كُنَّا مِنْ قَبْلِهٖ مُسْلِمِیْنَ ۟

तथा जब यह उनके सामने पढ़ा जाता है, तो वे कहते हैं : हम इसपर ईमान लाए। निश्चय यही हमारे रब की ओर से सत्य है। निःसंदेह हम इससे पहले मुसलमान (आज्ञाकारी) थे। info
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54 : 28

اُولٰٓىِٕكَ یُؤْتَوْنَ اَجْرَهُمْ مَّرَّتَیْنِ بِمَا صَبَرُوْا وَیَدْرَءُوْنَ بِالْحَسَنَةِ السَّیِّئَةَ وَمِمَّا رَزَقْنٰهُمْ یُنْفِقُوْنَ ۟

ये वे लोग हैं जिन्हें उनका प्रतिफल दोहरा[17] दिया जाएगा, इसके बदले कि उन्होंने सब्र किया और वे भलाई के साथ बुराई को दूर करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से खर्च करते हैं। info

17. अपनी पुस्तक तथा क़ुरआन दोनों पर ईमान लाने के कारण। (देखिए : सह़ीह़ बुख़ारी : 97, मुस्लिम : 154)

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55 : 28

وَاِذَا سَمِعُوا اللَّغْوَ اَعْرَضُوْا عَنْهُ وَقَالُوْا لَنَاۤ اَعْمَالُنَا وَلَكُمْ اَعْمَالُكُمْ ؗ— سَلٰمٌ عَلَیْكُمْ ؗ— لَا نَبْتَغِی الْجٰهِلِیْنَ ۟

और जब वे व्यर्थ बात सुनते हैं, तो उससे किनारा करते हैं, तथा कहते हैं : हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। सलाम है तुमपर, हम जाहिलों को नहीं चाहते। info
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56 : 28

اِنَّكَ لَا تَهْدِیْ مَنْ اَحْبَبْتَ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ یَهْدِیْ مَنْ یَّشَآءُ ۚ— وَهُوَ اَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِیْنَ ۟

निःसंदेह आप उसे हिदायत नहीं दे सकते जिसे आप चाहें,[18] परंतु अल्लाह हिदायत देता है जिसे चाहता है और वह हिदायत पाने वालों को अधिक जानने वाला है। info

18. ह़दीस में वर्णित है कि जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के (काफ़िर) चाचा अबू तालिब के निधन का समय हुआ, तो आप उनके पास गए। उस समय उनके पास अबू जह्ल तथा अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या उपस्थित थे। आपने कहा : चाचा! ''ला इलाहा इल्लल्लाह'' कह दें, ताकि मैं क़ियामत के दिन अल्लाह से आपकी क्षमा के लिए सिफ़ारिश कर सकूँ। परंतु दोनों के कहने पर उन्होंने अस्वीकार कर दिया और उनका अंत कुफ़्र पर हुआ। इसी विषय में यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्या : 4772)

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57 : 28

وَقَالُوْۤا اِنْ نَّتَّبِعِ الْهُدٰی مَعَكَ نُتَخَطَّفْ مِنْ اَرْضِنَا ؕ— اَوَلَمْ نُمَكِّنْ لَّهُمْ حَرَمًا اٰمِنًا یُّجْبٰۤی اِلَیْهِ ثَمَرٰتُ كُلِّ شَیْءٍ رِّزْقًا مِّنْ لَّدُنَّا وَلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا یَعْلَمُوْنَ ۟

तथा उन्होंने कहा : यदि हम आपके साथ इस मार्गदर्शन का अनुसरण करें, तो हम अपनी धरती से उचक[19] लिए जाएँगे। और क्या हमने उन्हें एक शांतिपूर्ण (सुरक्षित) हरम[20] में जगह नहीं दी? जिसकी ओर, हमारे पास से रोज़ी के तौर पर, सब वस्तुओं के फल खींचकर लाए जाते हैं। परंतु उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते। info

19. अर्थात हमारे विरोधी हमपर आक्रमण कर देंगे। 20. अर्थात मक्का नगर को।

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58 : 28

وَكَمْ اَهْلَكْنَا مِنْ قَرْیَةٍ بَطِرَتْ مَعِیْشَتَهَا ۚ— فَتِلْكَ مَسٰكِنُهُمْ لَمْ تُسْكَنْ مِّنْ بَعْدِهِمْ اِلَّا قَلِیْلًا ؕ— وَكُنَّا نَحْنُ الْوٰرِثِیْنَ ۟

और हमने कितनी ही बस्तियों को विनष्ट कर दिया, जो अपनी गुज़र-बसर के संसाधनों पर इतराने लगी थीं। तो ये हैं उनके घर, जो उनके बाद आबाद नहीं किए गए, परंतु बहुत कम। और हम ही हमेशा उत्तराधिकारी बनने वाले हैं। info
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59 : 28

وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرٰی حَتّٰی یَبْعَثَ فِیْۤ اُمِّهَا رَسُوْلًا یَّتْلُوْا عَلَیْهِمْ اٰیٰتِنَا ۚ— وَمَا كُنَّا مُهْلِكِی الْقُرٰۤی اِلَّا وَاَهْلُهَا ظٰلِمُوْنَ ۟

और आपका पालनहार कभी बस्तियों को विनष्ट करने वाला नहीं, यहाँ तक कि उनके केंद्र में एक रसूल भेजे जो उनके सामने हमारी आयतें पढ़े। तथा हम कभी बस्तियों को विनष्ट करने वाले नहीं, परंतु जबकि उसके निवासी अत्याचारी हों। info
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