Prijevod značenja časnog Kur'ana - Prijevod na hindski jezik - Azizulhak el-Amri

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109 : 3

وَلِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— وَاِلَی اللّٰهِ تُرْجَعُ الْاُمُوْرُ ۟۠

तथा जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है सब अल्लाह ही के लिए है और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते हैं। info
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110 : 3

كُنْتُمْ خَیْرَ اُمَّةٍ اُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ تَاْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَتَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَتُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ ؕ— وَلَوْ اٰمَنَ اَهْلُ الْكِتٰبِ لَكَانَ خَیْرًا لَّهُمْ ؕ— مِنْهُمُ الْمُؤْمِنُوْنَ وَاَكْثَرُهُمُ الْفٰسِقُوْنَ ۟

तुम सर्वश्रेष्ठ समुदाय हो, जिसे लोगों के लिए निकाला गया है। तुम भलाई का आदेश देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान (विश्वास) रखते[58] हो। और यदि किताब वाले ईमान लाते, तो उनके लिए बेहतर होता। उनमें कुछ ईमान वाले भी हैं, लेकिन उनमें अधिकतर लोग अवज्ञाकारी ही हैं। info

58. इस आयत में मुसलमानों को संबोधित किया गया है, तथा उन्हें उम्मत कहा गया है। किसी जाति अथवा वर्ग और वर्ण के नाम से संबोधित नहीं किया गया है। और इसमें यह संकेत है कि मुसलमान उनका नाम है जो सत्धर्म के अनुयायी हों। तथा उनके अस्तित्व का लक्ष्य यह बताया गया है कि वह संपूर्ण मानव विश्व को सत्धर्म इस्लाम की ओर बुलाएँ, जो सर्व मानव जाति का धर्म है। किसी विशेष जाति, क्षेत्र अथवा देश का धर्म नहीं है।

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111 : 3

لَنْ یَّضُرُّوْكُمْ اِلَّاۤ اَذًی ؕ— وَاِنْ یُّقَاتِلُوْكُمْ یُوَلُّوْكُمُ الْاَدْبَارَ ۫— ثُمَّ لَا یُنْصَرُوْنَ ۟

वे तुम्हें थोड़ा कष्ट पहुँचाने के सिवा कदापि कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे और यदि वे तुमसे युद्ध करेंगे, तो तुम्हारे सामने पीठ फेरकर भाग खड़े होंगे। फिर उनकी कोई सहायता (भी) नहीं की जाएगी। info
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112 : 3

ضُرِبَتْ عَلَیْهِمُ الذِّلَّةُ اَیْنَ مَا ثُقِفُوْۤا اِلَّا بِحَبْلٍ مِّنَ اللّٰهِ وَحَبْلٍ مِّنَ النَّاسِ وَبَآءُوْ بِغَضَبٍ مِّنَ اللّٰهِ وَضُرِبَتْ عَلَیْهِمُ الْمَسْكَنَةُ ؕ— ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَانُوْا یَكْفُرُوْنَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ وَیَقْتُلُوْنَ الْاَنْۢبِیَآءَ بِغَیْرِ حَقٍّ ؕ— ذٰلِكَ بِمَا عَصَوْا وَّكَانُوْا یَعْتَدُوْنَ ۟ۗ

इन (यहूदियों) पर हर जगह, अपमान थोप दिया गया है, (यह और बात है कि) अल्लाह की शरण[59] अथवा लोगों की शरण[60] में आ जाएँ, और ये अल्लाह के प्रकोप के पात्र हुए तथा इनपर दरिद्रता थोप दी गई। यह इस कारण हुआ कि ये अल्लाह की आयतों का इनकार करते थे और नबियों की अनाधिकार हत्या करते थे। यह इस कारण (भी) है कि इन्होंने अवज्ञा की और (धर्म की) सीमा का उल्लंघन करते थे। info

59. अल्लाह की शरण से अभिप्राय इस्लाम धर्म है। 60. दूसरा बचाव का तरीक़ा यह है कि किसी ग़ैर मुस्लिम शक्ति की उन्हें सहायता प्राप्त हो जाए।

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113 : 3

لَیْسُوْا سَوَآءً ؕ— مِنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ اُمَّةٌ قَآىِٕمَةٌ یَّتْلُوْنَ اٰیٰتِ اللّٰهِ اٰنَآءَ الَّیْلِ وَهُمْ یَسْجُدُوْنَ ۟

वे सभी समान नहीं हैं; किताब वालों में एक समूह (सत्य पर) स्थापित[61] है, जो रात की घड़ियों में अल्लाह की आयतें पढ़ते हैं और वे सजदे करते हैं। info

61. अर्थात जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाए। जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम (रज़ियल्लाहु अन्हु) आदि।

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114 : 3

یُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ وَیَاْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَیَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَیُسَارِعُوْنَ فِی الْخَیْرٰتِ ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ مِنَ الصّٰلِحِیْنَ ۟

वे अल्लाह तथा अंतिम दिन (क़यामत) पर ईमान रखते हैं और भलाई का आदेश देते हैं और बुराई से रोकते हैं और भलाई के कामों में जल्दी करते हैं और वही अच्छे लोगों में से हैं। info
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115 : 3

وَمَا یَفْعَلُوْا مِنْ خَیْرٍ فَلَنْ یُّكْفَرُوْهُ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌۢ بِالْمُتَّقِیْنَ ۟

वे जो भी भलाई करेंगे, उसकी उपेक्षा नहीं की जाएगी और अल्लाह परहेज़गारों को भली-भाँति जानता है। info
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