আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - হিন্দি অনুবাদ- আজীজুল হক ওমৰী

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96 : 5

اُحِلَّ لَكُمْ صَیْدُ الْبَحْرِ وَطَعَامُهٗ مَتَاعًا لَّكُمْ وَلِلسَّیَّارَةِ ۚ— وَحُرِّمَ عَلَیْكُمْ صَیْدُ الْبَرِّ مَا دُمْتُمْ حُرُمًا ؕ— وَاتَّقُوا اللّٰهَ الَّذِیْۤ اِلَیْهِ تُحْشَرُوْنَ ۟

तथा तुम्हारे लिए समुद्र (जल) का शिकार और उसका खाना[65] हलाल कर दिया गया, तुम्हारे तथा यात्रियों के लाभ के लिए, तथा तुमपर भूमि का शिकार हराम कर दिया गया है जब तक तुम एहराम की स्थिति में रहो, और अल्लाह (की अवज्ञा) से डरो, जिसकी ओर तुम एकत्र किए जाओगे। info

65. अर्थात जो बिना शिकार किए हाथ आए, जैसे मरी हुई मछली। अर्थात जल का शिकार एह़राम की स्थिति में तथा साधारण अवस्था में अनुमेय है।

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97 : 5

جَعَلَ اللّٰهُ الْكَعْبَةَ الْبَیْتَ الْحَرَامَ قِیٰمًا لِّلنَّاسِ وَالشَّهْرَ الْحَرَامَ وَالْهَدْیَ وَالْقَلَآىِٕدَ ؕ— ذٰلِكَ لِتَعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ یَعْلَمُ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ وَاَنَّ اللّٰهَ بِكُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمٌ ۟

अल्लाह ने सम्मानित घर काबा को लोगों के लिए स्थापना का साधन बनाया है तथा सम्मानित महीनों[66] और (हज्ज की) क़ुर्बानी के जानवरों तथा गर्दन में पट्टे लगे हुए जानवरों को। यह इसलिए कि तुम जान लो कि निःसंदेह अल्लाह जानता है, जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है, तथा यह कि निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक वस्तु को ख़ूब जानने वाला है। info

66. सम्मानित महीनों से अभिप्रेत ज़ुल-क़ादा, ज़ुल-ह़िज्जा, मुह़र्रम और रजब के महीने हैं।

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98 : 5

اِعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ شَدِیْدُ الْعِقَابِ وَاَنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟ؕ

जान लो! निःसंदेह अल्लाह बहुत कठोर दंड वाला है और निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है। info
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99 : 5

مَا عَلَی الرَّسُوْلِ اِلَّا الْبَلٰغُ ؕ— وَاللّٰهُ یَعْلَمُ مَا تُبْدُوْنَ وَمَا تَكْتُمُوْنَ ۟

रसूल पर (संदेश) पहुँचा देने के सिवा कुछ नहीं और अल्लाह जानता है जो तुम प्रकट करते हो और जो छिपाते हो। info
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100 : 5

قُلْ لَّا یَسْتَوِی الْخَبِیْثُ وَالطَّیِّبُ وَلَوْ اَعْجَبَكَ كَثْرَةُ الْخَبِیْثِ ۚ— فَاتَّقُوا اللّٰهَ یٰۤاُولِی الْاَلْبَابِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ۟۠

(ऐ नबी!) कह दो कि अपवित्र (बुरी चीज़) तथा पवित्र (अच्छी चीज़) समान नहीं, चाहे अपवित्र (बुरी चीज़) की बहुतायत तुम्हें भली लगे। तो ऐ बुद्धि वालो! अल्लाह से डरो, ताकि तुम सफल हो जाओ।[67] info

67. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह ने जिससे रोक दिया है, वही मलिन और जिसकी अनुमति दी है, वही पवित्र है। अतः मलिन में रूचि न रखो, और किसी चीज़ की कमी और अधिकता को न देखो, उसके लाभ और हानि को देखो।

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101 : 5

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَسْـَٔلُوْا عَنْ اَشْیَآءَ اِنْ تُبْدَ لَكُمْ تَسُؤْكُمْ ۚ— وَاِنْ تَسْـَٔلُوْا عَنْهَا حِیْنَ یُنَزَّلُ الْقُرْاٰنُ تُبْدَ لَكُمْ ؕ— عَفَا اللّٰهُ عَنْهَا ؕ— وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ حَلِیْمٌ ۟

ऐ ईमान वालो! उन चीज़ों के विषय में प्रश्न न करो, जो यदि तुम्हारे लिए प्रकट कर दी जाएँ, तो तुम्हें बुरी लगें, तथा यदि तुम उनके विषय में उस समय प्रश्न करोगे, जब क़ुरआन उतारा जा रहा है, तो वे तुम्हारे लिए प्रकट कर दी जाएँगी। अल्लाह ने उन्हें क्षमा कर दिया और अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत सहनशील[68] है। info

68. इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) कहते हैं कि कुछ लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से उपहास के लिए प्रश्न किया करते थे। कोई प्रश्न करता कि मेरा पिता कौन है? किसी की ऊँटनी खो गई हो, तो आपसे प्रश्न करता कि मेरी ऊँटनी कहाँ है? इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4622)

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102 : 5

قَدْ سَاَلَهَا قَوْمٌ مِّنْ قَبْلِكُمْ ثُمَّ اَصْبَحُوْا بِهَا كٰفِرِیْنَ ۟

निःसंदेह तुमसे पहले कुछ लोगों ने ऐसी ही बातों के बारे में प्रश्न किया[69], फिर वे इसके कारण काफ़िर हो गए। info

69. अर्थात अपने रसूलों से। आयत का भावार्थ यह है कि धर्म के विषय में कुरेद न करो। जो करना है, अल्लाह ने बता दिया है, और जो नहीं बताया है उसे क्षमा कर दिया है, अतः अपने मन से प्रश्न न करो, अन्यथा धर्म में सुविधा की जगह असुविधा पैदा होगी, और प्रतिबंध अधिक हो जाएँगे, तो फिर तुम उनका पालन न कर सकोगे।

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103 : 5

مَا جَعَلَ اللّٰهُ مِنْ بَحِیْرَةٍ وَّلَا سَآىِٕبَةٍ وَّلَا وَصِیْلَةٍ وَّلَا حَامٍ ۙ— وَّلٰكِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا یَفْتَرُوْنَ عَلَی اللّٰهِ الْكَذِبَ ؕ— وَاَكْثَرُهُمْ لَا یَعْقِلُوْنَ ۟

अल्लाह ने कोई बह़ीरा, साइबा, वसीला और ह़ाम नियुक्त नहीं किया।[70] परंतु जिन लोगों ने कुफ़्र किया वे अल्लाह पर झूठ बाँधते हैं और उनमें से अधिकतर नहीं समझते। info

70. अरब के मिश्रणवादी देवी- देवता के नाम पर कुछ पशुओं को छोड़ देते थे, और उन्हें पवित्र समझते थे, यहाँ उन्हीं की चर्चा की गई है। बह़ीरा- वह ऊँटनी जिसे उसका कान चीर कर देवताओं के लिए मुक्त कर दिया जाता था, और उसका दूध कोई नहीं दूह सकता था। साइबा- वह पशु जिसे देवताओं के नाम पर मुक्त कर देते थे, जिसपर न कोई बोझ लाद सकता था, न सवार हो सकता था। वसीला- वह ऊँटनी जिसका पहला तथा दूसरा बच्चा मादा हो, ऐसी ऊँटनी को भी देवताओं के नाम पर मुक्त कर देते थे। ह़ाम- नर जिसके वीर्य से दस बच्चे हो जाएँ, उन्हें भी देवताओं के नाम पर साँड बना कर मुक्त कर दिया जाता था। भावार्थ यह है कि ये अनर्गल चीजें हैं। अल्लाह ने इनका आदेश नहीं दिया है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा : मैंने नरक को देखा कि उसकी ज्वाला एक दूसरे को तोड़ रही है। और अमर बिन लुह़य्य को देखा कि वह अपनी आँतें खींच रहा है। उसी ने सबसे पहले साइबा बनाया था। (बुख़ारी : 4624)

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