ترجمة معاني القرآن الكريم - الترجمة الهندية - عزيز الحق العمري

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36 : 9

اِنَّ عِدَّةَ الشُّهُوْرِ عِنْدَ اللّٰهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِیْ كِتٰبِ اللّٰهِ یَوْمَ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ مِنْهَاۤ اَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ؕ— ذٰلِكَ الدِّیْنُ الْقَیِّمُ ۙ۬— فَلَا تَظْلِمُوْا فِیْهِنَّ اَنْفُسَكُمْ ۫— وَقَاتِلُوا الْمُشْرِكِیْنَ كَآفَّةً كَمَا یُقَاتِلُوْنَكُمْ كَآفَّةً ؕ— وَاعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ مَعَ الْمُتَّقِیْنَ ۟

निःसंदेह अल्लाह के निकट महीनों की संख्या, अल्लाह की किताब में बारह महीने है, जिस दिन उसने आकाशों तथा धरती की रचना की। उनमें से चार महीने हुरमत[16] वाले हैं। यही सीधा धर्म है। अतः इनमें अपने प्राणों पर अत्याचार[17] न करो। तथा बहुदेववादियों से सब मिलकर युद्ध करो, जैसे वे तुमसे मिलकर युद्ध करते हैं, और जान लो कि निःसंदेह अल्लाह मुत्तक़ी लोगों के साथ है। info

16. जिनमें युद्ध निषेध है। और वे ज़ुलक़ादा, ज़ुल ह़िज्जा, मुह़र्रम तथा रजब के महीने हैं। (बुख़ारी : 4662) 17. अर्थात इनमें युद्ध तथा रक्तपात न करो, इनका आदर करो।

التفاسير: