Salin ng mga Kahulugan ng Marangal na Qur'an - Salin sa Wikang Hindi ni Aziz Al-Haq Al-Omari

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23 : 7

قَالَا رَبَّنَا ظَلَمْنَاۤ اَنْفُسَنَا ٚ— وَاِنْ لَّمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُوْنَنَّ مِنَ الْخٰسِرِیْنَ ۟

दोनों ने कहा : ऐ हमारे पालनहार! हमने अपने आपपर अत्याचार किया है। और यदि तूने हमें क्षमा न किया तथा हमपर दया न की, तो निश्चय हम अवश्य घाटा उठाने वालों में से हो जाएँगे।[7] info

7. अर्थात आदम तथा ह़व्वा ने अपने पाप के लिए अल्लाह से क्षमा माँग ली। शैतान के समान अभिमान नहीं किया।

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24 : 7

قَالَ اهْبِطُوْا بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ ۚ— وَلَكُمْ فِی الْاَرْضِ مُسْتَقَرٌّ وَّمَتَاعٌ اِلٰی حِیْنٍ ۟

(अल्लाह ने) कहा : उतर जाओ। तुम एक-दूसरे के शत्रु हो और तुम्हारे लिए धरती में एक अवधि तक रहने का स्थान और कुछ जीवन-सामग्री है। info
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25 : 7

قَالَ فِیْهَا تَحْیَوْنَ وَفِیْهَا تَمُوْتُوْنَ وَمِنْهَا تُخْرَجُوْنَ ۟۠

उसने कहा : तुम उसी में जीवित रहोगे और उसी में मरोगे और उसी से निकाले जाओगे। info
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26 : 7

یٰبَنِیْۤ اٰدَمَ قَدْ اَنْزَلْنَا عَلَیْكُمْ لِبَاسًا یُّوَارِیْ سَوْاٰتِكُمْ وَرِیْشًا ؕ— وَلِبَاسُ التَّقْوٰی ۙ— ذٰلِكَ خَیْرٌ ؕ— ذٰلِكَ مِنْ اٰیٰتِ اللّٰهِ لَعَلَّهُمْ یَذَّكَّرُوْنَ ۟

ऐ आदम की संतान! निश्चय हमने तुमपर वस्त्र उतारा है, जो तुम्हारे गुप्तांगों को छिपाता है और शोभा भी है। और तक़वा (अल्लाह की आज्ञाकारिता) का वस्त्र सबसे अच्छा है। यह अल्लाह की निशानियों में से है, ताकि वे उपदेश ग्रहण करें।[8] info

8. तथा उसके आज्ञाकारी एवं कृतज्ञ बनें।

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27 : 7

یٰبَنِیْۤ اٰدَمَ لَا یَفْتِنَنَّكُمُ الشَّیْطٰنُ كَمَاۤ اَخْرَجَ اَبَوَیْكُمْ مِّنَ الْجَنَّةِ یَنْزِعُ عَنْهُمَا لِبَاسَهُمَا لِیُرِیَهُمَا سَوْاٰتِهِمَا ؕ— اِنَّهٗ یَرٰىكُمْ هُوَ وَقَبِیْلُهٗ مِنْ حَیْثُ لَا تَرَوْنَهُمْ ؕ— اِنَّا جَعَلْنَا الشَّیٰطِیْنَ اَوْلِیَآءَ لِلَّذِیْنَ لَا یُؤْمِنُوْنَ ۟

ऐ आदम की संतान! ऐसा न हो कि शैतान तुम्हें लुभाए, जैसे उसने तुम्हारे माता-पिता को जन्नत से निकाल दिया; वह दोनों के वस्त्र उतारता था, ताकि दोनों को उनके गुप्तांग दिखाए। निःसंदेह वह तथा उसकी जाति, तुम्हें वहाँ से देखते हैं, जहाँ से तुम उन्हें नहीं देखते। निःसंदेह हमने शैतानों को उन लोगों का मित्र बनाया है, जो ईमान नहीं रखते। info
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28 : 7

وَاِذَا فَعَلُوْا فَاحِشَةً قَالُوْا وَجَدْنَا عَلَیْهَاۤ اٰبَآءَنَا وَاللّٰهُ اَمَرَنَا بِهَا ؕ— قُلْ اِنَّ اللّٰهَ لَا یَاْمُرُ بِالْفَحْشَآءِ ؕ— اَتَقُوْلُوْنَ عَلَی اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ ۟

तथा जब वे कोई निर्लज्जता का काम करते हैं, तो कहते हैं कि हमने अपने पूर्वजों को कि इसी (रीति) पर पाया तथा अल्लाह ने हमें इसका आदेश दिया है। (ऐ नबी!) आप उनसे कह दें : निःसंदेह अल्लाह निर्लज्जता का आदेश नहीं देता। क्या तुम अल्लाह पर ऐसी बात का आरोप धरते हो, जो तुम नहीं जानते? info
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29 : 7

قُلْ اَمَرَ رَبِّیْ بِالْقِسْطِ ۫— وَاَقِیْمُوْا وُجُوْهَكُمْ عِنْدَ كُلِّ مَسْجِدٍ وَّادْعُوْهُ مُخْلِصِیْنَ لَهُ الدِّیْنَ ؕ۬— كَمَا بَدَاَكُمْ تَعُوْدُوْنَ ۟ؕ

आप कह दें : मेरे पालनहार ने न्याय का आदेश दिया है। तथा प्रत्येक नमाज़ के समय अपने चेहरे को सीधा रखो, और उसके लिए धर्म को विशुद्ध करते हुए उसे पुकारो। जिस तरह उसने तुम्हें पहली बार पैदा किया, उसी तरह वह तुम्हें दोबारा पैदा करेगा।[9] info

9. इस आयत में सत्य धर्म के तीन मूल नियम बताए गए हैं : कर्म में संतुलन, इबादत में अल्लाह की ओर ध्यान तथा धर्म में विशुद्धता तथा एक अल्लाह की इबादत करना।

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30 : 7

فَرِیْقًا هَدٰی وَفَرِیْقًا حَقَّ عَلَیْهِمُ الضَّلٰلَةُ ؕ— اِنَّهُمُ اتَّخَذُوا الشَّیٰطِیْنَ اَوْلِیَآءَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَیَحْسَبُوْنَ اَنَّهُمْ مُّهْتَدُوْنَ ۟

एक समूह का उसने मार्गदर्शन किया और एक समूह पर गुमराही सिद्ध हो गई। निःसंदेह उन्होंने अल्लाह को छोड़कर शैतानों को दोस्त बना लिया और समझते हैं कि निश्चय वे सीधे मार्ग पर हैं। info
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