పవిత్ర ఖురాన్ యొక్క భావార్థాల అనువాదం - హిందీ అనువాదం - అజీజుల్ హఖ్ ఉమ్రీ

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52 : 15

اِذْ دَخَلُوْا عَلَیْهِ فَقَالُوْا سَلٰمًا ؕ— قَالَ اِنَّا مِنْكُمْ وَجِلُوْنَ ۟

जब वे इबराहीम के पास आए, तो उन्होंने सलाम किया। उसने कहा : हमें तो तुमसे डर लग रहा है। info
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53 : 15

قَالُوْا لَا تَوْجَلْ اِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلٰمٍ عَلِیْمٍ ۟

उन्होंने कहा : डरिए नहीं, निःसंदेह हम आपको एक ज्ञानी बालक की शुभ सूचना देते हैं। info
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54 : 15

قَالَ اَبَشَّرْتُمُوْنِیْ عَلٰۤی اَنْ مَّسَّنِیَ الْكِبَرُ فَبِمَ تُبَشِّرُوْنَ ۟

उसने कहा : क्या तुम मुझे इस बुढ़ापे के आ जाने के उपरांत शुभ सूचना दे रहे हो? तो तुम किस आधार पर यह शुभ सूचना दे रहे होॽ info
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55 : 15

قَالُوْا بَشَّرْنٰكَ بِالْحَقِّ فَلَا تَكُنْ مِّنَ الْقٰنِطِیْنَ ۟

उन्होंने कहा : हमने आपको सच्ची शुभ सूचना दी है। अतः आप निराश होने वालों में से न हों। info
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56 : 15

قَالَ وَمَنْ یَّقْنَطُ مِنْ رَّحْمَةِ رَبِّهٖۤ اِلَّا الضَّآلُّوْنَ ۟

(इबराहीम अलैहिस्सलाम ने) कहा : और पथभ्रष्टों के सिवा अपने पालनहार की दया से कौन निराश होता है। info
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57 : 15

قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ اَیُّهَا الْمُرْسَلُوْنَ ۟

उसने कहा : ऐ भेजे हुए फ़रिश्तो! तुम्हारा अभियान क्या है? info
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58 : 15

قَالُوْۤا اِنَّاۤ اُرْسِلْنَاۤ اِلٰی قَوْمٍ مُّجْرِمِیْنَ ۟ۙ

उन्होंने उत्तर दिया : निःसंदेह हम एक अपराधी जाति की ओर भेजे गए हैं। info
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59 : 15

اِلَّاۤ اٰلَ لُوْطٍ ؕ— اِنَّا لَمُنَجُّوْهُمْ اَجْمَعِیْنَ ۟ۙ

लूत के घर वालों के सिवा। निश्चय हम उन सभी को अवश्य बचा लेने वाले हैं। info
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60 : 15

اِلَّا امْرَاَتَهٗ قَدَّرْنَاۤ ۙ— اِنَّهَا لَمِنَ الْغٰبِرِیْنَ ۟۠

परंतु लूत की पत्नी, हमने नियत कर दिया है कि निःसंदेह वह निश्चय ही पीछे रह जाने वालों में से है। info
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61 : 15

فَلَمَّا جَآءَ اٰلَ لُوْطِ ١لْمُرْسَلُوْنَ ۟ۙ

फिर जब लूत के घर वालों के पास भेजे हुए (फ़रिश्ते) आए। info
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62 : 15

قَالَ اِنَّكُمْ قَوْمٌ مُّنْكَرُوْنَ ۟

तो उस (लूत अलैहिस्सलाम) ने कहा : तुम तो अपरिचित लोग हो। info
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63 : 15

قَالُوْا بَلْ جِئْنٰكَ بِمَا كَانُوْا فِیْهِ یَمْتَرُوْنَ ۟

उन्होंने कहा : (डरो नहीं) बल्कि हम तुम्हारे पास वह चीज़ लेकर आए हैं, जिसमें वे संदेह किया करते थे। info
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64 : 15

وَاَتَیْنٰكَ بِالْحَقِّ وَاِنَّا لَصٰدِقُوْنَ ۟

और हम तुम्हारे पास सत्य लेकर आए हैं और निःसंदेह हम निश्चय सच्चे हैं। info
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65 : 15

فَاَسْرِ بِاَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ الَّیْلِ وَاتَّبِعْ اَدْبَارَهُمْ وَلَا یَلْتَفِتْ مِنْكُمْ اَحَدٌ وَّامْضُوْا حَیْثُ تُؤْمَرُوْنَ ۟

अतः तुम अपने घर वालों को लेकर रात के किसी हिस्से में निकल जाओ और खुद उनके पीछे-पीछे चलो। और तुममें से कोई मुड़कर न देखे। तथा चले जाओ, जहाँ तुम्हें आदेश दिया जाता है। info
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66 : 15

وَقَضَیْنَاۤ اِلَیْهِ ذٰلِكَ الْاَمْرَ اَنَّ دَابِرَ هٰۤؤُلَآءِ مَقْطُوْعٌ مُّصْبِحِیْنَ ۟

और हमने उसकी ओर इस बात की वह़्य कर दी कि इन लोगों की जड़ सुबह होते ही काट दी जाने वाली है। info
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67 : 15

وَجَآءَ اَهْلُ الْمَدِیْنَةِ یَسْتَبْشِرُوْنَ ۟

और उस नगर वाले इस हाल में आए कि बहुत खुश हो रहे थे।[12] info

12. अर्थात जब फ़रिश्तों को नवयुवकों के रूप में देखा, तो लूत अलैहिस्सलाम के यहाँ आ गए ताकि उनके साथ कुकर्म करें।

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68 : 15

قَالَ اِنَّ هٰۤؤُلَآءِ ضَیْفِیْ فَلَا تَفْضَحُوْنِ ۟ۙ

उस (लूत अलैहिस्सलाम) ने कहा : ये लोग तो मेरे अतिथि हैं। अतः मुझे अपमानित न करो। info
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69 : 15

وَاتَّقُوا اللّٰهَ وَلَا تُخْزُوْنِ ۟

तथा अल्लाह से डरो और मुझे अपमानित न करो। info
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70 : 15

قَالُوْۤا اَوَلَمْ نَنْهَكَ عَنِ الْعٰلَمِیْنَ ۟

उन्होंने कहा : क्या हमने तुम्हें विश्व वासियों (को अतिथि बनाने) से मना[13] नहीं किया? info

13. कि सबके समर्थक न बनो।

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