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40 : 29

فَكُلًّا اَخَذْنَا بِذَنْۢبِهٖ ۚ— فَمِنْهُمْ مَّنْ اَرْسَلْنَا عَلَیْهِ حَاصِبًا ۚ— وَمِنْهُمْ مَّنْ اَخَذَتْهُ الصَّیْحَةُ ۚ— وَمِنْهُمْ مَّنْ خَسَفْنَا بِهِ الْاَرْضَ ۚ— وَمِنْهُمْ مَّنْ اَغْرَقْنَا ۚ— وَمَا كَانَ اللّٰهُ لِیَظْلِمَهُمْ وَلٰكِنْ كَانُوْۤا اَنْفُسَهُمْ یَظْلِمُوْنَ ۟

तो हमने हर एक को उसके पाप के कारण पकड़ लिया। फिर उनमें से कुछ पर हमने पथराव करने वाली हवा[17] भेजी, और उनमें से कुछ को चीख[18] ने पकड़ लिया, और उनमें से कुछ को हमने धरती में धँसा[19] दिया और उनमें से कुछ को हमने डुबो[20] दिया। तथा अल्लाह ऐसा नहीं था कि उनपर अत्याचार करे, परंतु वे स्वयं अपने आपपर अत्याचार करते थे। info

17. अर्थात लूत की जाति पर। 18. अर्थात सालेह़ और शुऐब (अलैहिमस्सलाम) की जाति को। 19. जैसे क़ारून को। 20. अर्थात नूह़ तथा मूसा (अलैहिमस्सलाम) की जातियों को।

التفاسير: