पवित्र कुरअानको अर्थको अनुवाद - हिन्दी अनुवाद : अजिजुल हक उमरी ।

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107 : 9

وَالَّذِیْنَ اتَّخَذُوْا مَسْجِدًا ضِرَارًا وَّكُفْرًا وَّتَفْرِیْقًا بَیْنَ الْمُؤْمِنِیْنَ وَاِرْصَادًا لِّمَنْ حَارَبَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ مِنْ قَبْلُ ؕ— وَلَیَحْلِفُنَّ اِنْ اَرَدْنَاۤ اِلَّا الْحُسْنٰی ؕ— وَاللّٰهُ یَشْهَدُ اِنَّهُمْ لَكٰذِبُوْنَ ۟

तथा (मुनाफ़िक़ों में से) वे लोग भी हैं, जिन्होंने एक मस्जिद[47] बनाई; ताकि (मुसलमानों को) हानि पहुँचाएँ, कुफ़्र करें, ईमान वालों के बीच फूट डालें तथा ऐसे व्यक्ति के लिए घात लगाने का ठिकाना बनाएँ, जो इससे पहले अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध कर चुका[48] है। तथा निश्चय वे अवश्य क़समें खाएँगे कि हमारा इरादा भलाई के सिवा और कुछ न था, और अल्लाह गवाही देता है कि निःसंदेह वे निश्चय झूठे हैं। info

47. इस्लामी इतिहास में यह "मस्जिदे ज़िरार" के नाम से याद की जाती है। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना आए तो आपके आदेश से "क़ुबा" नाम के स्थान में एक मस्जिद बनाई गई। जो इस्लामी युग की प्रथम मस्जिद है। कुछ मुनाफ़िक़ों ने उसी के पास एक नई मस्जिद का निर्माण किया। और जब आप तबूक के लिए निकल रहे थे तो आपसे कहा कि आप एक दिन उसमें नमाज़ पढ़ा दें। आपने कहा कि यात्रा से वापसी पर देखा जाएगा। और जब वापस मदीना के समीप पहुँचे तो यह आयत उतरी, और आपके आदेश से उसे ध्वस्त कर दिया गया। (इब्ने कसीर) 48. इससे अभीप्रेत अबू आमिर राहिब है। जिसने कुछ लोगों से कहा कि एक मस्जिद बनाओ और जितनी शक्ति और अस्त्र-शस्त्र हो सके तैयार कर लो। मैं रोम के राजा क़ैसर के पास जा रहा हूँ। रोमियों की सेना लाऊँगा, और मुह़म्मद तथा उसके साथियों को मदीना से निकाल दूँगा। (इब्ने कसीर)

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108 : 9

لَا تَقُمْ فِیْهِ اَبَدًا ؕ— لَمَسْجِدٌ اُسِّسَ عَلَی التَّقْوٰی مِنْ اَوَّلِ یَوْمٍ اَحَقُّ اَنْ تَقُوْمَ فِیْهِ ؕ— فِیْهِ رِجَالٌ یُّحِبُّوْنَ اَنْ یَّتَطَهَّرُوْا ؕ— وَاللّٰهُ یُحِبُّ الْمُطَّهِّرِیْنَ ۟

उसमें कभी खड़े न होना। निश्चय वह मस्जिद[49] जिसकी बुनियाद पहले दिन से परहेज़गारी पर रखी गई है, वह अधिक योग्य है कि आप उसमें खड़े हों। उसमें ऐसे लोग हैं, जो बहुत पाक-साफ़ रहना पसंद[50] करते हैं और अल्लाह पाक-साफ़ रहने वालों से प्रेम करता है। info

49. इस मस्जिद से अभिप्राय क़ुबा की मस्जिद है। तथा मस्जिद नबवी शरीफ़ भी इसी में आती है। (इब्ने कसीर) 50. अर्थात शुद्धता के लिए जल का प्रयोग करते हैं।

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109 : 9

اَفَمَنْ اَسَّسَ بُنْیَانَهٗ عَلٰی تَقْوٰی مِنَ اللّٰهِ وَرِضْوَانٍ خَیْرٌ اَمْ مَّنْ اَسَّسَ بُنْیَانَهٗ عَلٰی شَفَا جُرُفٍ هَارٍ فَانْهَارَ بِهٖ فِیْ نَارِ جَهَنَّمَ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الظّٰلِمِیْنَ ۟

तो क्या वह व्यक्ति बेहतर है जिसने अपनी इमारत की नींव अल्लाह के डर और उसकी खुशी पर रखी, या वह जिसने अपनी इमारत की नींव एक गड्ढे के किनारे पर रखी जो ढहने वाला था? तो वह उसके साथ जहन्नम की आग में गिर पड़ा और अल्लाह ज़ालिमों को हिदायत नहीं देता। info
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110 : 9

لَا یَزَالُ بُنْیَانُهُمُ الَّذِیْ بَنَوْا رِیْبَةً فِیْ قُلُوْبِهِمْ اِلَّاۤ اَنْ تَقَطَّعَ قُلُوْبُهُمْ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟۠

उनका भवन जो उन्होंने बनाया है, उनके दिलों में हमेशा चिंता का स्रोत रहेगा, परंतु यह कि उनके दिलों के टुकड़े-टुकड़े हो जाएँ। तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है। info
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111 : 9

اِنَّ اللّٰهَ اشْتَرٰی مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ اَنْفُسَهُمْ وَاَمْوَالَهُمْ بِاَنَّ لَهُمُ الْجَنَّةَ ؕ— یُقَاتِلُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ فَیَقْتُلُوْنَ وَیُقْتَلُوْنَ ۫— وَعْدًا عَلَیْهِ حَقًّا فِی التَّوْرٰىةِ وَالْاِنْجِیْلِ وَالْقُرْاٰنِ ؕ— وَمَنْ اَوْفٰی بِعَهْدِهٖ مِنَ اللّٰهِ فَاسْتَبْشِرُوْا بِبَیْعِكُمُ الَّذِیْ بَایَعْتُمْ بِهٖ ؕ— وَذٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِیْمُ ۟

निःसंदेह अल्लाह ने ईमान वालों के प्राणों तथा उनके धनों को इसके बदले ख़रीद लिया है कि निश्चय उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह की राह में युद्ध करते हैं, तो वे क़त्ल करते हैं और क़त्ल किए जाते हैं। यह तौरात और इंजील और क़ुरआन में उसके ज़िम्मे पक्का वादा है और अल्लाह से बढ़कर अपना वादा पूरा करने वाला कौन है? तो अपने उस सौदे पर प्रसन्न हो जाओ, जो तुमने उससे किया है और यही बहुत बड़ी सफलता है। info
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