पवित्र कुरअानको अर्थको अनुवाद - हिन्दी अनुवाद : अजिजुल हक उमरी ।

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16 : 3

اَلَّذِیْنَ یَقُوْلُوْنَ رَبَّنَاۤ اِنَّنَاۤ اٰمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ ۟ۚ

जो कहते हैं : ऐ हमारे पालनहार! निःसंदेह हम ईमान लाए। इसलिए हमारे गुनाह माफ़ कर दे और हमें दोज़ख़ के अज़ाब से बचा। info
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17 : 3

اَلصّٰبِرِیْنَ وَالصّٰدِقِیْنَ وَالْقٰنِتِیْنَ وَالْمُنْفِقِیْنَ وَالْمُسْتَغْفِرِیْنَ بِالْاَسْحَارِ ۟

जो धैर्य रखने वाले, सत्यवादी, आज्ञाकारी, दानशील और रात की अंतिम घड़ियों में (अल्लाह से) क्षमा याचना करने वाले हैं। info
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18 : 3

شَهِدَ اللّٰهُ اَنَّهٗ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ۙ— وَالْمَلٰٓىِٕكَةُ وَاُولُوا الْعِلْمِ قَآىِٕمًا بِالْقِسْطِ ؕ— لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الْعَزِیْزُ الْحَكِیْمُ ۟ؕ

अल्लाह ने गवाही दी कि निःसंदेह उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, तथा फ़रिश्तों और ज्ञान वालों ने भी, इस हाल में कि वह न्याय को क़ायम करने वाला है। उसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है। info
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19 : 3

اِنَّ الدِّیْنَ عِنْدَ اللّٰهِ الْاِسْلَامُ ۫— وَمَا اخْتَلَفَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ اِلَّا مِنْ بَعْدِ مَا جَآءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْیًا بَیْنَهُمْ ؕ— وَمَنْ یَّكْفُرْ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ فَاِنَّ اللّٰهَ سَرِیْعُ الْحِسَابِ ۟

निःसंदेह दीन (धर्म) अल्लाह के निकट इस्लाम ही है और किताब वालों ने अपने पास ज्ञान आ जाने के पश्चात आपस में ईर्ष्या के कारण ही मतभेद किया। तथा जो अल्लाह की आयतों का इनकार करे, तो निःसंदेह अल्लाह बहुत जल्द ह़िसाब लेने वाला है। info
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20 : 3

فَاِنْ حَآجُّوْكَ فَقُلْ اَسْلَمْتُ وَجْهِیَ لِلّٰهِ وَمَنِ اتَّبَعَنِ ؕ— وَقُلْ لِّلَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ وَالْاُمِّیّٖنَ ءَاَسْلَمْتُمْ ؕ— فَاِنْ اَسْلَمُوْا فَقَدِ اهْتَدَوْا ۚ— وَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّمَا عَلَیْكَ الْبَلٰغُ ؕ— وَاللّٰهُ بَصِیْرٌ بِالْعِبَادِ ۟۠

फिर यदि वे आपसे झगड़ा करें, तो कह दीजिए कि मैंने अपना चेहरा अल्लाह के अधीन कर दिया और उसने भी जिसने मेरा अनुसरण किया, तथा उन लोगों से जिन्हें किताब दी गई और अनपढ़ लोगों से कह दो कि क्या तुम आज्ञाकारी हो गए? यदि वे आज्ञाकारी हो जाएँ, तो निःसंदेह मार्गदर्शन पा गए और यदि वे मुँह फेर लें, तो आपका दायित्व केवल (संदेश) पहुँचा देना[7] है तथा अल्लाह बंदों को ख़ूब देखने वाला है। info

7. अर्थात उनसे वाद-विवाद करना व्यर्थ है।

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21 : 3

اِنَّ الَّذِیْنَ یَكْفُرُوْنَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ وَیَقْتُلُوْنَ النَّبِیّٖنَ بِغَیْرِ حَقٍّ ۙ— وَّیَقْتُلُوْنَ الَّذِیْنَ یَاْمُرُوْنَ بِالْقِسْطِ مِنَ النَّاسِ ۙ— فَبَشِّرْهُمْ بِعَذَابٍ اَلِیْمٍ ۟

निःसंदेह जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करते हैं तथा नबियों को नाह़क़ क़त्ल करते हैं और उन लोगों को क़त्ल करते हैं, जो लोगों में से न्याय करने का आदेश देते हैं, उन्हें एक दर्दनाक अज़ाब[8] की शुभ सूचना सुना दीजिए। info

8. इसमें यहूद की आस्था तथा कार्य संबंधी पथभ्रष्टता की ओर संकेत है।

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22 : 3

اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ؗ— وَمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِیْنَ ۟

यही वे लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया तथा आख़िरत में बर्बाद हो गए और उनकी मदद करने वाले कोई नहीं। info
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