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111 : 6

وَلَوْ اَنَّنَا نَزَّلْنَاۤ اِلَیْهِمُ الْمَلٰٓىِٕكَةَ وَكَلَّمَهُمُ الْمَوْتٰی وَحَشَرْنَا عَلَیْهِمْ كُلَّ شَیْءٍ قُبُلًا مَّا كَانُوْا لِیُؤْمِنُوْۤا اِلَّاۤ اَنْ یَّشَآءَ اللّٰهُ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ یَجْهَلُوْنَ ۟

यदि हम उन्हें जवाब देते हुए उनकी प्रस्तावित चीज़ को ले आते, चुनाँचे हम उनके पास फ़रिश्ते उतार देते और वे उन्हें अपनी आँखों से देख लेते, तथा मरे हुए लोग उनसे बातें करते और आप जो कुछ लेकर आए हैं उसमें उन्हें आपकी सच्चाई की ख़बर देते, एवं हम उनके लिए वह सब कुछ इकट्ठा कर देते, जो उन्होंने सुझाव दिया था, जिन्हें वे आमने-सामने देख लेते; तो भी वे उस चीज़ पर ईमान न लाते जो आप लेकर आए हैं, परंतु यह कि अल्लाह उनमें से जिसे मार्गदर्शन दिखाना चाहे। लेकिन उनमें से अधिकतर लोग इस बात से अनजान हैं। इसलिए वे अल्लाह का सहारा नहीं लेते ताकि वह उन्हें मार्गदर्शन का सामर्थ्य प्रदान करे। info
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112 : 6

وَكَذٰلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نَبِیٍّ عَدُوًّا شَیٰطِیْنَ الْاِنْسِ وَالْجِنِّ یُوْحِیْ بَعْضُهُمْ اِلٰی بَعْضٍ زُخْرُفَ الْقَوْلِ غُرُوْرًا ؕ— وَلَوْ شَآءَ رَبُّكَ مَا فَعَلُوْهُ فَذَرْهُمْ وَمَا یَفْتَرُوْنَ ۟

जिस प्रकार हमने इन बहुदेववादियों की शत्रुता के साथ आपकी परीक्षा ली, उसी प्रकार हमने आपसे पहले के हर नबी की परीक्षा ली। चुनाँचे हमने उनमें से प्रत्येक नबी के लिए सरकश मनुष्यों में से कुछ दुश्मन एवं सरकश जिन्नों में से कुछ दुश्मन बना दिए, जो एक-दूसरे के दिल में बुरी बातें डालते हैं, चुनाँचे वे उन्हें धोखा देने के लिए उनके लिए झूठ को सुशोभित करके प्रस्तुत करते हैं। और यदि अल्लाह चाहता कि वे ऐसा न करें, तो वे ऐसा नहीं करते। लेकिन अल्लाह ने परीक्षण के तौर पर उनके लिए ऐसा चाहा था। अतः आप उन्हें और जो कुछ वे कुफ़्र और झूठ गढ़ते हैं, उसे छोड़ दें और उनकी परवाह न करें। info
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113 : 6

وَلِتَصْغٰۤی اِلَیْهِ اَفْـِٕدَةُ الَّذِیْنَ لَا یُؤْمِنُوْنَ بِالْاٰخِرَةِ وَلِیَرْضَوْهُ وَلِیَقْتَرِفُوْا مَا هُمْ مُّقْتَرِفُوْنَ ۟

और ताकि उन लोगों के दिल जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते उस (बुरी) बात की ओर झुक जाएँ, जो वे एक-दूसरे के दिलों में डालते हैं, और ताकि वे लोग उसे अपने लिए स्वीकार कर लें और उसे अपने लिए पसंद कर लें, और ताकि वे भी वही अवज्ञा और पाप करने लग जाएँ, जो ये लोग करने वाले हैं। info
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114 : 6

اَفَغَیْرَ اللّٰهِ اَبْتَغِیْ حَكَمًا وَّهُوَ الَّذِیْۤ اَنْزَلَ اِلَیْكُمُ الْكِتٰبَ مُفَصَّلًا ؕ— وَالَّذِیْنَ اٰتَیْنٰهُمُ الْكِتٰبَ یَعْلَمُوْنَ اَنَّهٗ مُنَزَّلٌ مِّنْ رَّبِّكَ بِالْحَقِّ فَلَا تَكُوْنَنَّ مِنَ الْمُمْتَرِیْنَ ۟

ऐ रसूल! आप इन बहुदेववादियों से, जो अल्लाह के साथ उसके अलावा को पूजते हैं, कह दें : क्या यह तर्कसंगत है कि मैं अपने और तुम्हारे बीच अल्लाह के अलावा किसी अन्य को न्यायकर्ता स्वीकार करूं? जबकि अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे ऊपर क़ुरआन को अवतरित किया है जो हर चीज़ को पूर्ण रूप से स्पष्ट करने वाला है। तथा यहूदी लोग जिन्हें हमने तौरात दी और ईसाई लोग जिन्हें हमने इंजील प्रदान की, इस तथ्य को जानते हैं कि क़ुरआन आपपर सत्य के साथ उतारा गया है। क्योंकि उन्होंने अपनी पुस्तकों में इसके प्रमाण पाए हैं। अतः आप उसपर शक करने वालों में से न बनें, जो हमने आपकी ओर वह़्य की है। info
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115 : 6

وَتَمَّتْ كَلِمَتُ رَبِّكَ صِدْقًا وَّعَدْلًا ؕ— لَا مُبَدِّلَ لِكَلِمٰتِهٖ ۚ— وَهُوَ السَّمِیْعُ الْعَلِیْمُ ۟

क़ुरआन बातों और ख़बरों में सत्य की पराकाष्ठा को पहुँचा हुआ है। उसकी बातों को कोई बदलने वाला नहीं। वह अपने बंदों की बातों को सुनने वाला, उन्हें जानने वाला है। इसलिए उनमें से कुछ भी उससे छिपा नहीं है, और वह उन लोगों को बदला देगा जो उसकी बातों को बदलने की चेष्टा करते हैं। info
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116 : 6

وَاِنْ تُطِعْ اَكْثَرَ مَنْ فِی الْاَرْضِ یُضِلُّوْكَ عَنْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ؕ— اِنْ یَّتَّبِعُوْنَ اِلَّا الظَّنَّ وَاِنْ هُمْ اِلَّا یَخْرُصُوْنَ ۟

यदि मान लिया जाए कि (ऐ रसूल!) आपने पृथ्वी पर रहने वाले अधिकांश लोगों का पालन किया, तो वे आपको अल्लाह के धर्म से गुमराह कर देंगे। क्योंकि यह अल्लाह की सुन्नत (परंपरा) रही है कि सत्य कम लोगों के पास होता है। जबकि अधिकांश लोग केवल अनुमान का पालन करते हैं जिसका कोई आधार नहीं होता। क्योंकि उन्हें यह गुमान था कि उनके पूज्य उन्हें अल्लाह के निकट कर देते हैं। हालाँकि वे इसके बारे में झूठ बोलते हैं। info
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117 : 6

اِنَّ رَبَّكَ هُوَ اَعْلَمُ مَنْ یَّضِلُّ عَنْ سَبِیْلِهٖ ۚ— وَهُوَ اَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِیْنَ ۟

निःसंदेह (ऐ रसूल!) आपका पालनहार उसे सबसे अधिक जानता है जो उसके मार्ग से भटक जाता है, तथा वह उन लोगों को भी सबसे अधिक जानने वाला है जो उसके मार्ग पर निर्देशित हैं, उनमें से कुछ भी उससे छिपा नहीं है। info
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118 : 6

فَكُلُوْا مِمَّا ذُكِرَ اسْمُ اللّٰهِ عَلَیْهِ اِنْ كُنْتُمْ بِاٰیٰتِهٖ مُؤْمِنِیْنَ ۟

तो (ऐ लोगो!) उस पशु में से खाओ, जिसपर ज़बह़ करते समय अल्लाह का नाम लिया गया है, यदि तुम वास्तव में उसके स्पष्ट प्रमाणों पर ईमान रखने वाले हो। info
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ក្នុង​ចំណោម​អត្ថប្រយោជន៍​នៃអាយ៉ាត់ទាំងនេះក្នុងទំព័រនេះ:
• يجب أن يكون الهدف الأعظم للعبد اتباع الحق، ويطلبه بالطرق التي بيَّنها الله، ويعمل بذلك، ويرجو عَوْن ربه في اتباعه، ولا يتكل على نفسه وحوله وقوته.
• बंदे का सबसे बड़ा उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह सत्य का अनुसरण करे, उसे उन तरीक़ों से खोजे जो अल्लाह ने स्पष्ट किए हैं, उसके अनुसार कार्य करे और उसके अनुसरण में अपने पालनहार की मदद की आशा रखे, तथा उसे खुद पर और अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य पर भरोसा नहीं करना चाहिए। info

• من إنصاف القرآن للقلة المؤمنة العالمة إسناده الجهل والضلال إلى أكثر الخلق.
• अल्प संख्यक ज्ञानी मुसलमानों के साथ क़ुरआन के न्याय का एक पहलू यह है कि उसने अज्ञानता और पथभ्रष्टता की निस्बत अधिकांश सृष्टि की ओर की है। info

• من سنّته تعالى في الخلق ظهور أعداء من الإنس والجنّ للأنبياء وأتباعهم؛ لأنّ الحقّ يعرف بضدّه من الباطل.
• सृष्टि में अल्लाह का तरीक़ा रहा है कि वह नबियों तथा उनके अनुयायियों के लिए जिन्न तथा मानव जाति में से कुछ शत्रु खड़े कर देता है, क्योंकि सत्य को असत्य से उसके विपरीत द्वारा ही पहचाना जाता है। info

• القرآن صادق في أخباره، عادل في أحكامه،لا يُعْثَر في أخباره على ما يخالف الواقع، ولا في أحكامه على ما يخالف الحق.
• क़ुरआन अपनी ख़बरों में सच्चा और अपने नियमों में न्यायसंगत है। उसकी खबरों में ऐसा कुछ भी नहीं पाया जाता, जो वास्तविकता के विपरीत हो और न ही उसके नियमों में कुछ ऐसा है, जो सत्य के विरुद्ध हो। info