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12 : 31

وَلَقَدْ اٰتَیْنَا لُقْمٰنَ الْحِكْمَةَ اَنِ اشْكُرْ لِلّٰهِ ؕ— وَمَنْ یَّشْكُرْ فَاِنَّمَا یَشْكُرُ لِنَفْسِهٖ ۚ— وَمَنْ كَفَرَ فَاِنَّ اللّٰهَ غَنِیٌّ حَمِیْدٌ ۟

हमने लुक़मान को धर्म की गहन समझ और सही निर्णय की शक्ति प्रदान की थी और उससे कहा था : (ऐ लुक़मान) अपने पालनहार का शुक्रिया अदा करो कि उसने तुम्हें उसके आज्ञापालन का सामर्थ्य प्रदान किया है। और जो अपने रब का शुक्रिया अदा करेगा, तो उसके शुक्रिया का लाभ उसे ही प्राप्त होगा। अल्लाह को उसके शुक्रिया की कोई आवश्यकता नहीं है। और जिसने अल्लाह की ओर से मिली हुई नेमत का इनकार किया और उसके साथ कुफ़्र किया, तो उसके कुफ़्र का नुक़सान उसे ही होगा और वह अल्लाह को कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचाएगा। क्योंकि वह अपनी सारी मख़लूक़ से बेनियाज़ है, हर हाल में प्रशंसनीय है। info
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13 : 31

وَاِذْ قَالَ لُقْمٰنُ لِابْنِهٖ وَهُوَ یَعِظُهٗ یٰبُنَیَّ لَا تُشْرِكْ بِاللّٰهِ ؔؕ— اِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِیْمٌ ۟

और (ऐ रसूल) याद करें, जब लुक़मान ने अपने बेटे से, उसे अच्छे कार्य में रुचि दिलाते हुए और बुरे कार्य से सावधान करते हुए कहा : ऐ मेरे बेटे! अल्लाह के साथ उसके अलावा की इबादत न कर। अल्लाह के साथ किसी अन्य पूज्य की इबादत करना, अपने आप पर बहुत बड़ा अत्याचार है। क्योंकि यह सबसे बड़ा गुनाह है और इसके नतीजे में इनसान सदा जहन्नम में रहने का हक़दार बन जाता है। info
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14 : 31

وَوَصَّیْنَا الْاِنْسَانَ بِوَالِدَیْهِ ۚ— حَمَلَتْهُ اُمُّهٗ وَهْنًا عَلٰی وَهْنٍ وَّفِصٰلُهٗ فِیْ عَامَیْنِ اَنِ اشْكُرْ لِیْ وَلِوَالِدَیْكَ ؕ— اِلَیَّ الْمَصِیْرُ ۟

और हमने इनसान को उन चीज़ों में अपने माता-पिता की आज्ञा मानने और उनके साथ सद्व्यवहार करने की ताकीद की है, जिनमें अल्लाह की अवज्ञा नहीं है। उसकी माँ ने कष्ट के बाद कष्ट का सामना करते हुए उसे अपने पेट में रखा और दो साल में उसका स्तनपान छुड़ाया। और हमने उससे कहा : अल्लाह ने तुझे जो नेमतें प्रदान की हैं, उनपर अल्लाह का शुक्रिया अदा कर, फिर अपने माँ-बाप का शुक्रिया अदा कर कि उन्होंने तेरी परवरिश और देखभाल की। सबको मेरी ही ओर लौटकर आना है, फिर मैं हर एक को वह बदला दूँगा जिसका वह हक़दार है। info
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15 : 31

وَاِنْ جٰهَدٰكَ عَلٰۤی اَنْ تُشْرِكَ بِیْ مَا لَیْسَ لَكَ بِهٖ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِی الدُّنْیَا مَعْرُوْفًا ؗ— وَّاتَّبِعْ سَبِیْلَ مَنْ اَنَابَ اِلَیَّ ۚ— ثُمَّ اِلَیَّ مَرْجِعُكُمْ فَاُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ۟

और यदि माता-पिता पूरा ज़ोर लगा दें कि तुम किसी और को अल्लाह का साझी बनाओ, तो इसमें उनकी बात न मानो, क्योंकि सृष्टिकर्ता की अवज्ञा में किसी प्राणी की बात नहीं मानी जा सकती। और दुनिया में उनके साथ सद्व्यवहार, अच्छे संबंध और भलाई के साथ रहो। और उन लोगों के रास्ते पर चलो, जो तौहीद और आज्ञापालन के द्वारा मेरी ओर लौटते हैं। फिर क़ियामत के दिन तुम सभी को अकेले मेरी ही ओर लौटकर आना है, तब मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम दुनिया में क्या किया करते थे और तुम्हें उसका बदला दूँगा। info
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16 : 31

یٰبُنَیَّ اِنَّهَاۤ اِنْ تَكُ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِّنْ خَرْدَلٍ فَتَكُنْ فِیْ صَخْرَةٍ اَوْ فِی السَّمٰوٰتِ اَوْ فِی الْاَرْضِ یَاْتِ بِهَا اللّٰهُ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ لَطِیْفٌ خَبِیْرٌ ۟

ऐ मेरे बेटे! निश्चय कोई बुरा या अच्छा काम, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, राई के एक दाने के वज़न के समान हो और वह किसी चट्टान के भीतर हो, जिसे कोई नहीं जानता, या वह आकाशों में या पृथ्वी में किसी भी स्थान पर हो - तो निश्चित रूप से अल्लाह उसे क़ियामत के दिन ले आएगा और बंदे को उसका बदला देगा। निश्चय अल्लाह सूक्ष्मदर्शी है, छोटी से छोटी चीज़ भी उससे छिपी नहीं है, वह उनके तथ्यों और उनके स्थान से पूरी तरह अवगत है। info
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17 : 31

یٰبُنَیَّ اَقِمِ الصَّلٰوةَ وَاْمُرْ بِالْمَعْرُوْفِ وَانْهَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَاصْبِرْ عَلٰی مَاۤ اَصَابَكَ ؕ— اِنَّ ذٰلِكَ مِنْ عَزْمِ الْاُمُوْرِ ۟ۚ

ऐ मेरे बेटे! नमाज़ को उसके संपूर्ण तरीक़े से अदा करके क़ायम कर, भलाई का आदेश दे और बुराई से रोक, तथा इस राह में तुझे जो भी कठिनाई का सामना हो, उसपर धैर्य रख। तुझे यहाँ जिस चीज़ का आदेश दिया गया है, उसका पालन करना तेरे लिए ज़रूरी है। इसलिए इसमें तेरे लिए चयन का कोई विकल्प नहीं है। info
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18 : 31

وَلَا تُصَعِّرْ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلَا تَمْشِ فِی الْاَرْضِ مَرَحًا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ لَا یُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُوْرٍ ۟ۚ

और अहंकार के कारण लोगों से अपना मुँह न फेर तथा धरती पर अकड़कर और खुशी से खुद को निहारते हुए न चल। निश्चय अल्लाह अकड़कर चलने वाले और मिली हुई नेमतों पर गर्व करने वाले से प्रेम नहीं करता, जो उनके कारण लोगों के सामने गर्व करता हैं और उनपर अल्लाह का शुक्रिया अदा नहीं करता है। info
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19 : 31

وَاقْصِدْ فِیْ مَشْیِكَ وَاغْضُضْ مِنْ صَوْتِكَ ؕ— اِنَّ اَنْكَرَ الْاَصْوَاتِ لَصَوْتُ الْحَمِیْرِ ۟۠

अपनी चाल में बहुत तेज़ चलने और धीरे-धीरे चलने के बीच ऐसी मध्यम चाल अपनाओ, जिससे संजीदगी का पता चले। तथा अपनी आवाज़ कुछ नीची रखो। इतनी ऊँची न करो कि दूसरों को कष्ट हो। सबसे बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ है, क्योंकि उनकी आवाजें ऊँची होती हैं। info
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ក្នុង​ចំណោម​អត្ថប្រយោជន៍​នៃអាយ៉ាត់ទាំងនេះក្នុងទំព័រនេះ:
• لما فصَّل سبحانه ما يصيب الأم من جهد الحمل والوضع دلّ على مزيد برّها.
• जब अल्लाह ने गर्भावस्था और प्रसव से माँ को पहुँचने वाली कठिनाइयों का विस्तृत उल्लेख किया, तो इससे पता चला कि उसके साथ अधिक सद्व्यवहार करना चाहिए। info

• نفع الطاعة وضرر المعصية عائد على العبد.
• आज्ञाकारिता का लाभ और अवज्ञा का नुक़सान बंदे ही पर लौटने वाला है। info

• وجوب تعاهد الأبناء بالتربية والتعليم.
• बच्चों की शिक्षा और प्रशिक्षण पर ध्यान देने की अनिवार्यता। info

• شمول الآداب في الإسلام للسلوك الفردي والجماعي.
• इस्लाम में शिष्टाचार का व्यक्तिगत और सामूहिक व्यवहार को शामिल होना। info