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34 : 14

وَاٰتٰىكُمْ مِّنْ كُلِّ مَا سَاَلْتُمُوْهُ ؕ— وَاِنْ تَعُدُّوْا نِعْمَتَ اللّٰهِ لَا تُحْصُوْهَا ؕ— اِنَّ الْاِنْسَانَ لَظَلُوْمٌ كَفَّارٌ ۟۠

और उसने तुम्हें उन सब चीज़ों में से प्रदान किया, जो तुमने माँगीं और जो तुमने नहीं माँगीं। यदि तुम अल्लाह की नेमतों की गणना करो, तो उनकी बहुतायत और बहुलता के कारण उनकी गणना नहीं कर सकते। क्योंकि तुम्हारे लिए जो कुछ उल्लेख किया गया है, वे उनके कुछ उदाहरण हैं। निश्चय इनसान अपने आप पर बड़ा अत्याचार करने वाला, अल्लाह सर्वशक्तिमान की नेमतों का बहुत कृतघ्न है। info
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35 : 14

وَاِذْ قَالَ اِبْرٰهِیْمُ رَبِّ اجْعَلْ هٰذَا الْبَلَدَ اٰمِنًا وَّاجْنُبْنِیْ وَبَنِیَّ اَنْ نَّعْبُدَ الْاَصْنَامَ ۟ؕ

(ऐ रसूल!) उस समय को याद करें, जब इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ने अपने बेटे इसमाईल और उनकी माँ हाजर को मक्का की घाटी में रहने के लिए छोड़ने के बाद दुआ की : ऐ मेरे पालनहार! इस नगर - मक्का - को, जिसमें मैंने अपने परिवार को रहने के लिए छोड़ा है, शांति एवं सुरक्षा वाला नगर बना दे। जिसमें कोई खून न बहाया जाए, और किसी पर अत्याचार न किया जाए। तथा मुझे और मेरे बच्चों को मूर्तिपूजा से दूर रख। info
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36 : 14

رَبِّ اِنَّهُنَّ اَضْلَلْنَ كَثِیْرًا مِّنَ النَّاسِ ۚ— فَمَنْ تَبِعَنِیْ فَاِنَّهٗ مِنِّیْ ۚ— وَمَنْ عَصَانِیْ فَاِنَّكَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟

ऐ मेरे पालनहार! मूर्तियों ने बहुत से लोगों को गुमराह किया है। क्योंकि उन्होंने यह सोचा कि ये मूर्तियाँ उनके लिए सिफ़ारिश करेंगी। इसलिए वे इनके फ़ितने (प्रलोभन) में पड़ गए और अल्लाह को छोड़कर इनकी पूजा की। अतः लोगों में से जिसने भी अल्लाह के एकेश्वरवाद और उसके आज्ञापालन में मेरा अनुसरण किया, वह मेरे दल और मेरे अनुयायियों में से है। और जिसने मेरी अवज्ञा की और अल्लाह के एकेश्वरवाद और उसके आज्ञापालन में मेरा अनुसरण नहीं किया, तो (ऐ मेरे रब!) तू जिनके गुनाहों को क्षमा करना चाहे, क्षमा करने वाला, उनपर दया करने वाला है। info
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37 : 14

رَبَّنَاۤ اِنِّیْۤ اَسْكَنْتُ مِنْ ذُرِّیَّتِیْ بِوَادٍ غَیْرِ ذِیْ زَرْعٍ عِنْدَ بَیْتِكَ الْمُحَرَّمِ ۙ— رَبَّنَا لِیُقِیْمُوا الصَّلٰوةَ فَاجْعَلْ اَفْىِٕدَةً مِّنَ النَّاسِ تَهْوِیْۤ اِلَیْهِمْ وَارْزُقْهُمْ مِّنَ الثَّمَرٰتِ لَعَلَّهُمْ یَشْكُرُوْنَ ۟

ऐ हमारे पालनहार! मैंने अपनी कुछ संतान, अर्थात् अपने बेटे इसमाईल और उसके बेटों को तेरे सम्मानित घर के पास एक ऐसी घाटी में बसाया है, जिसमें कोई खेती या पानी नहीं है। ऐ हमारे पालनहार! मैंने उन्हें उसके पास इसलिए बसाया है कि वे उसमें नमाज़ क़ायम करें। इसलिए (ऐ मेरे रब!) लोगों के दिलों को इनकी ओर और इस नगर की ओर प्रलोभित कर दे, और उन्हें फलों से रोज़ी प्रदान कर, ताकि वे अपने ऊपर तेरे उपकार का शुक्रिया अदा करें। info
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38 : 14

رَبَّنَاۤ اِنَّكَ تَعْلَمُ مَا نُخْفِیْ وَمَا نُعْلِنُ ؕ— وَمَا یَخْفٰی عَلَی اللّٰهِ مِنْ شَیْءٍ فِی الْاَرْضِ وَلَا فِی السَّمَآءِ ۟

ऐ हमारे पालनहार! तू हर उस चीज़ को जानता है, जिसे हम छिपाते हैं और जिसे हम प्रकट करते हैं। तथा धरती या आकाश में अल्लाह से कोई भी चीज़ छिपी नहीं है। बल्कि वह उसे जानता है। इसलिए उसकी ओर हमारी आवश्यकता और हमारी निर्धनता उससे छिपी नहीं है। info
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39 : 14

اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِیْ وَهَبَ لِیْ عَلَی الْكِبَرِ اِسْمٰعِیْلَ وَاِسْحٰقَ ؕ— اِنَّ رَبِّیْ لَسَمِیْعُ الدُّعَآءِ ۟

हर प्रकार का आभार और प्रशंसा उस अल्लाह महिमावान् के लिए है, जिसने नेक संतान प्रदान करने की मेरी दुआ स्वीकार कर ली। चुनाँचे उसने मेरे बुढ़ापे के बावजूद मुझे हाजर से इसमाईल और सारा से इसहाक़ प्रदान किया। निःसंदेह मेरा पवित्र पालनहार उसकी दुआ को सुनने वाला है, जो उससे दुआ करे। info
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40 : 14

رَبِّ اجْعَلْنِیْ مُقِیْمَ الصَّلٰوةِ وَمِنْ ذُرِّیَّتِیْ ۖۗ— رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَآءِ ۟

ऐ मेरे पालनहार! मुझे पूर्ण रूप से नमाज़ पढ़ने वाला बना और मेरी औलाद को भी नमाज़ क़ायम करने वालों में से बना। ऐ हमारे पालनहार! और मेरी दुआ स्वीकार कर और उसे अपने यहाँ स्वीकृत बना दे। info
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41 : 14

رَبَّنَا اغْفِرْ لِیْ وَلِوَالِدَیَّ وَلِلْمُؤْمِنِیْنَ یَوْمَ یَقُوْمُ الْحِسَابُ ۟۠

ऐ हमारे पालनहार! मेरे पापों को क्षमा कर दे और मेरे माता-पिता के पापों को क्षमा कर दे। (यह प्रार्थना उन्होंने उस समय की थी जब उन्हें पता नहीं था कि उनके पिता अल्लाह के दुश्मन हैं। जब उनके लिए यह स्पष्ट हो गया कि वह अल्लाह के दुश्मन हैं, तो उनसे खुद को अलग कर लिया।) और ईमान वालों के गुनाहों को क्षमा कर दे, जिस दिन लोग अपने पालनहार के सामने हिसाब के लिए खड़े होंगे। info
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42 : 14

وَلَا تَحْسَبَنَّ اللّٰهَ غَافِلًا عَمَّا یَعْمَلُ الظّٰلِمُوْنَ ؕ۬— اِنَّمَا یُؤَخِّرُهُمْ لِیَوْمٍ تَشْخَصُ فِیْهِ الْاَبْصَارُ ۟ۙ

(ऐ रसूल!) आप हरगिज़ यह न समझें कि यदि अल्लाह अत्याचारियों की यातना को विलंबित कर रहा है, तो वह उनके झुठलाने और अल्लाह के रास्ते से रोकने आदि कार्यों से अनजान है। बल्कि वह उनसे अवगत है। उनमें से कुछ भी उससे छिपा नहीं है। वह केवल उनकी यातना को क़ियामत के दिन तक विलंबित कर रहा है, जिस दिन आँखें, जो कुछ देख रही होंगी उसकी भयावहता के डर से, फटी की फटी रह जाएँगी। info
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ក្នុង​ចំណោម​អត្ថប្រយោជន៍​នៃអាយ៉ាត់ទាំងនេះក្នុងទំព័រនេះ:
• بيان فضيلة مكة التي دعا لها نبي الله إبراهيم عليه الصلاة والسلام.
• मक्का की श्रेष्ठता का वर्णन, जिसके लिए अल्लाह के नबी इबराहीम अलैहिस्सलाम ने दुआ की थी। info

• أن الإنسان مهما ارتفع شأنه في مراتب الطاعة والعبودية ينبغي له أن يخاف على نفسه وذريته من جليل الشرك ودقيقه.
• आज्ञापालन और इबादत की श्रेणियों में इनसान की स्थिति कितनी भी ऊँची क्यों न हो जाए, उसे ख़ुद अपने और अपनी संतान के बारे में छोटे-बड़े शिर्क से डरते रहना चाहिए। info

• دعاء إبراهيم عليه الصلاة والسلام يدل على أن العبد مهما ارتفع شأنه يظل مفتقرًا إلى الله تعالى ومحتاجًا إليه.
• इबराहीम अलैहिस्सलाम की दुआ यह दर्शाती है कि बंदे की स्थिति चाहे कितनी भी ऊँची हो, वह हमेशा अल्लाह का मुह़ताज और ज़रूरतमंद रहता है। info

• من أساليب التربية: الدعاء للأبناء بالصلاح وحسن المعتقد والتوفيق في إقامة شعائر الدين.
इस्लामी तरबियत का एक तरीक़ा यह है कि : बच्चों के लिए धर्मपरायणता, शुद्ध अक़ीदा और धर्म के अनुष्ठानों को स्थापित करने में सामर्थ्य की दुआ की जाए। info