क़ुरआन के अर्थों का अनुवाद - हिंदी अनुवाद - अज़ीज़ुल हक़ उमरी

अल्-इन्शिक़ाक़

external-link copy
1 : 84

اِذَا السَّمَآءُ انْشَقَّتْ ۟ۙ

जब आकाश फट जाएगा। info
التفاسير:

external-link copy
2 : 84

وَاَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ ۟ۙ

और अपने पालनहार के आदेश पर कान लगाएगा और यही उसके योग्य है। info
التفاسير:

external-link copy
3 : 84

وَاِذَا الْاَرْضُ مُدَّتْ ۟ؕ

तथा जब धरती फैला दी जाएगी। info
التفاسير:

external-link copy
4 : 84

وَاَلْقَتْ مَا فِیْهَا وَتَخَلَّتْ ۟ۙ

और जो कुछ उसके भीतर है, उसे निकाल बाहर फेंक देगी और खाली हो जाएगी। info
التفاسير:

external-link copy
5 : 84

وَاَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ ۟ؕ

और अपने पालनहार के आदेश पर कान लगाएगी और यही उसके योग्य है।[1] info

1. (1-5) इन आयतों में प्रलय के समय आकाश एवं धरती में जो हलचल होगी उसका चित्रण करते हुए यह बताया गया है कि इस ब्रह्मांड के विधाता के आज्ञानुसार ये आकाश और धरती कार्यरत हैं और प्रलय के समय भी उसी की आज्ञा का पालन करेंगे। धरती को फैलाने का अर्थ यह है कि पर्वत आदि खंड-खंड होकर समस्त भूमि चौरस कर दी जाएगी।

التفاسير:

external-link copy
6 : 84

یٰۤاَیُّهَا الْاِنْسَانُ اِنَّكَ كَادِحٌ اِلٰی رَبِّكَ كَدْحًا فَمُلٰقِیْهِ ۟ۚ

ऐ इनसान! निःसंदेह तू कठिन परिश्रम करते-करते अपने पालनहार की ओर जाने वाला है, फिर तू उससे मिलने वाला है। info
التفاسير:

external-link copy
7 : 84

فَاَمَّا مَنْ اُوْتِیَ كِتٰبَهٗ بِیَمِیْنِهٖ ۟ۙ

फिर जिस व्यक्ति को उसका कर्मपत्र उसके दाहिने हाथ में दिया गया। info
التفاسير:

external-link copy
8 : 84

فَسَوْفَ یُحَاسَبُ حِسَابًا یَّسِیْرًا ۟ۙ

तो उसका आसान हिसाब लिया जाएगा। info
التفاسير:

external-link copy
9 : 84

وَّیَنْقَلِبُ اِلٰۤی اَهْلِهٖ مَسْرُوْرًا ۟ؕ

तथा वह अपने लोगों की ओर ख़ुश-ख़ुश लौटेगा। info
التفاسير:

external-link copy
10 : 84

وَاَمَّا مَنْ اُوْتِیَ كِتٰبَهٗ وَرَآءَ ظَهْرِهٖ ۟ۙ

और लेकिन जिसे उसका कर्मपत्र उसकी पीठ के पीछे दिया गया। info
التفاسير:

external-link copy
11 : 84

فَسَوْفَ یَدْعُوْا ثُبُوْرًا ۟ۙ

तो वह विनाश को पुकारेगा। info
التفاسير:

external-link copy
12 : 84

وَّیَصْلٰی سَعِیْرًا ۟ؕ

तथा जहन्नम में प्रवेश करेगा। info
التفاسير:

external-link copy
13 : 84

اِنَّهٗ كَانَ فِیْۤ اَهْلِهٖ مَسْرُوْرًا ۟ؕ

निःसंदेह वह अपने घर वालों में बड़ा प्रसन्न था। info
التفاسير:

external-link copy
14 : 84

اِنَّهٗ ظَنَّ اَنْ لَّنْ یَّحُوْرَ ۟ۚۛ

निश्चय उसने समझा था कि वह कभी (अल्लाह की ओर) वापस नहीं लौटेगा। info
التفاسير:

external-link copy
15 : 84

بَلٰۤی ۛۚ— اِنَّ رَبَّهٗ كَانَ بِهٖ بَصِیْرًا ۟ؕ

क्यों नहीं, निश्चय उसका पालनहार उसे देख रहा था।[2] info

2. (6-15) इन आयतों में इनसान को सावधान किया गया है कि तुझे भी अपने पालनहार से मिलना है। और धीरे-धीरे उसी की ओर जा रहा है। वहाँ अपने कर्मानुसार जिसे दाएँ हाथ में कर्म-पत्र मिलेगा, वह अपनों से प्रसन्न होकर मिलेगा। और जिसको बाएँ हाथ में कर्म-पत्र दिया जाएगा, तो वह विनाश को पुकारेगा। यह वही होगा जिसने माया मोह में क़ुरआन को नकार दिया था। और सोचा कि इस सांसारिक जीवन के पश्चात कोई जीवन नहीं आएगा।

التفاسير:

external-link copy
16 : 84

فَلَاۤ اُقْسِمُ بِالشَّفَقِ ۟ۙ

मैं क़सम खाता हूँ शफ़क़ (सूर्यास्त के बाद की लाली) की। info
التفاسير:

external-link copy
17 : 84

وَالَّیْلِ وَمَا وَسَقَ ۟ۙ

तथा रात की और उसकी जो कुछ वह एकत्रित करती है! info
التفاسير:

external-link copy
18 : 84

وَالْقَمَرِ اِذَا اتَّسَقَ ۟ۙ

तथा चाँद की, जब वह पूरा हो जाता है। info
التفاسير:

external-link copy
19 : 84

لَتَرْكَبُنَّ طَبَقًا عَنْ طَبَقٍ ۟ؕ

तुम अवश्य एक अवस्था से दूसरी अवस्था में स्थानांतरित होते रहोगे। info
التفاسير:

external-link copy
20 : 84

فَمَا لَهُمْ لَا یُؤْمِنُوْنَ ۟ۙ

फिर उन्हें क्या हो गया है कि वे ईमान नहीं लाते? info
التفاسير:

external-link copy
21 : 84

وَاِذَا قُرِئَ عَلَیْهِمُ الْقُرْاٰنُ لَا یَسْجُدُوْنَ ۟

और जब उनके सामने क़ुरआन पढ़ा जाता है, तो सजदा नहीं करते।[3] info

3. (16-21) इन आयतों में ब्रह्मांड के कुछ लक्षणों को साक्ष्य स्वरूप प्रस्तुत करके सावधान किया गया है कि जिस प्रकार यह ब्रह्मांड तीन स्थितियों से गुज़रता है, उसी प्रकार तुम्हें भी तीन स्थितियों से गुज़रना है : सांसारिक जीवन, फिर मरण, फिर परलोक का स्थायी जीवन जिसका सुख-दुख सांसारिक कर्मों के आधार पर होगा।

التفاسير:

external-link copy
22 : 84

بَلِ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا یُكَذِّبُوْنَ ۟ؗۖ

बल्कि जिन्होंने कुफ़्र किया, वे (उसे) झुठलाते हैं। info
التفاسير:

external-link copy
23 : 84

وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا یُوْعُوْنَ ۟ؗۖ

और अल्लाह सबसे अधिक जानने वाला है जो कुछ वे अपने भीतर रखते हैं। info
التفاسير:

external-link copy
24 : 84

فَبَشِّرْهُمْ بِعَذَابٍ اَلِیْمٍ ۟ۙ

अतः उन्हें एक दर्दनाक यातना की शुभ सूचना दे दो। info
التفاسير:

external-link copy
25 : 84

اِلَّا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَهُمْ اَجْرٌ غَیْرُ مَمْنُوْنٍ ۟۠

परंतु जो लोग ईमान लाए तथा उन्होंने सत्कर्म किए, उनके लिए कभी न समाप्त होने वाला बदला है।[4] info

4. (22-25) इन आयतों में उनके लिए चेतावनी है, जो इन स्वभाविक साक्ष्यों के होते हुए क़ुरआन को न मानने पर अड़े हुए हैं। और उनके लिए शुभ सूचना है जो इसे मानकर विश्वास (ईमान) तथा सुकर्म की राह पर अग्रसर हैं।

التفاسير: