क़ुरआन के अर्थों का अनुवाद - हिंदी अनुवाद - अज़ीज़ुल हक़ उमरी

अल्-अह़ज़ाब

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1 : 33

یٰۤاَیُّهَا النَّبِیُّ اتَّقِ اللّٰهَ وَلَا تُطِعِ الْكٰفِرِیْنَ وَالْمُنٰفِقِیْنَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلِیْمًا حَكِیْمًا ۟ۙ

ऐ नबी! अल्लाह से डरें, और काफ़िरों तथा मुनाफ़िक़ों का कहना न मानें। निश्चय अल्लाह सब कुछ जानने वाला, बड़ी हिकमत वाला है।[1] info

1. अतः उसी की आज्ञा तथा प्रकाशना का अनुसरण और पालन करो।

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2 : 33

وَّاتَّبِعْ مَا یُوْحٰۤی اِلَیْكَ مِنْ رَّبِّكَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِیْرًا ۟ۙ

तथा उसका अनुसरण करें, जो आपके पालनहार की तरफ से आपकी ओर वह़्य की जा रही है। निश्चय अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखने वाला है, जो तुम कर रहे हो। info
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3 : 33

وَّتَوَكَّلْ عَلَی اللّٰهِ ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ وَكِیْلًا ۟

और अल्लाह पर भरोसा रखें तथा अल्लाह संरक्षक के रूप में काफ़ी है। info
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4 : 33

مَا جَعَلَ اللّٰهُ لِرَجُلٍ مِّنْ قَلْبَیْنِ فِیْ جَوْفِهٖ ۚ— وَمَا جَعَلَ اَزْوَاجَكُمُ الّٰٓـِٔیْ تُظٰهِرُوْنَ مِنْهُنَّ اُمَّهٰتِكُمْ ۚ— وَمَا جَعَلَ اَدْعِیَآءَكُمْ اَبْنَآءَكُمْ ؕ— ذٰلِكُمْ قَوْلُكُمْ بِاَفْوَاهِكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ یَقُوْلُ الْحَقَّ وَهُوَ یَهْدِی السَّبِیْلَ ۟

अल्लाह ने किसी व्यक्ति के लिए उसके सीने में दो दिल नहीं बनाए, और न उसने तुम्हारी उन पत्नियों को जिनसे तुम ज़िहार करते हो, तुम्हारी माएँ बनाया है, और न तुम्हारे मुँह बोले बेटों को तुम्हारे बेटे बनाया है। यह तो तुम्हारा अपने मुँह से कहना है और अल्लाह सच कहता है तथा वही सीधी राह दिखाता है।[2] info

2. इस आयत का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार एक व्यक्ति के दो दिल नहीं होते, वैसे ही उसकी पत्नी ज़िहार कर लेने से उसकी माता तथा उसका मुँह बोला पुत्र, उसका पुत्र नहीं हो जाता। नबी (सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम) ने नबी होने से पहले अपने मुक्त किए हुए दास ज़ैद बिन ह़ारिसा को अपना पुत्र बनाया था और उनको ह़ारिसा पुत्र मुह़म्मद कहा जाता था। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4782) ज़िहार का विवरण सूरतुल मुजादिला में आ रहा है।

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5 : 33

اُدْعُوْهُمْ لِاٰبَآىِٕهِمْ هُوَ اَقْسَطُ عِنْدَ اللّٰهِ ۚ— فَاِنْ لَّمْ تَعْلَمُوْۤا اٰبَآءَهُمْ فَاِخْوَانُكُمْ فِی الدِّیْنِ وَمَوَالِیْكُمْ ؕ— وَلَیْسَ عَلَیْكُمْ جُنَاحٌ فِیْمَاۤ اَخْطَاْتُمْ بِهٖ وَلٰكِنْ مَّا تَعَمَّدَتْ قُلُوْبُكُمْ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟

उन्हें उनके बापों की ओर मनसूब करके पुकारो। यह अल्लाह के निकट अधिक न्याय की बात है और यदि तुम उनके बापों को न जानो, तो वे तुम्हारे धार्मिक भाई तथा तुम्हारे मित्र हैं। और तुमपर उसमें कोई दोष नहीं है, जो ग़लती से हो जाए, लेकिन (उसमें दोष है) जो दिल के इरादे से करो। तथा अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, अति दयावान् है। info
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6 : 33

اَلنَّبِیُّ اَوْلٰی بِالْمُؤْمِنِیْنَ مِنْ اَنْفُسِهِمْ وَاَزْوَاجُهٗۤ اُمَّهٰتُهُمْ ؕ— وَاُولُوا الْاَرْحَامِ بَعْضُهُمْ اَوْلٰی بِبَعْضٍ فِیْ كِتٰبِ اللّٰهِ مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ وَالْمُهٰجِرِیْنَ اِلَّاۤ اَنْ تَفْعَلُوْۤا اِلٰۤی اَوْلِیٰٓىِٕكُمْ مَّعْرُوْفًا ؕ— كَانَ ذٰلِكَ فِی الْكِتٰبِ مَسْطُوْرًا ۟

यह नबी[3] ईमान वालों पर उनके अपने प्राणों से अधिक हक़ रखने वाले हैं। और नबी की पत्नियाँ उनकी माताएँ[4] हैं। और रिश्तेदार, अल्लाह की किताब के अनुसार, (अन्य) ईमान वालों और मुहाजिरों से एक-दूसरे के अधिक हक़दार[5] हैं। सिवाय इसके कि तुम अपने मित्रों के साथ कोई भलाई करो। यह पुस्तक में लिखा हुआ है। info

3. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा : मैं मोमिनों का अधिक हक़दार हूँ। चाहो तो यह आयत पढ़ लो। अतः जो मोमिन माल छोड़ जाए, वह उसके वारिस का है और जो क़र्ज़ तथा निर्बल संतान छोड़ जाए, तो मैं उसका रक्षक हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4781) 4. अर्थात उनका सम्मान माताओं के बराबर है और आपके पश्चात् उनसे विवाह निषिद्ध है। 5. अर्थात धर्म विधानानुसार उत्तराधिकार समीपवर्ती संबंधियों का है। इस्लाम के आरंभिक युग में हिजरत तथा ईमान के आधार पर एक-दूसरे के उत्तराधिकारी होते थे जिसे मीरास की आयत द्वारा निरस्त कर दिया गया।

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