કુરઆન મજીદના શબ્દોનું ભાષાંતર - હિન્દી ભાષામાં અનુવાદ - અઝીઝુલ્ હક ઉમરી

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43 : 16

وَمَاۤ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ اِلَّا رِجَالًا نُّوْحِیْۤ اِلَیْهِمْ فَسْـَٔلُوْۤا اَهْلَ الذِّكْرِ اِنْ كُنْتُمْ لَا تَعْلَمُوْنَ ۟ۙ

और (ऐ नबी!) हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजे, वे सभी पुरुष थे, जिनकी ओर हम वह़्य (प्रकाशना) करते थे। अतः यदि तुम (स्वयं) नहीं जानते हो, तो ज्ञान वालों से पूछ लो।[16] info

16. मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यदि अल्लाह को कोई रसूल भेजना होता तो किसी फ़रिश्ते को भेजता। उसी पर यह आयत उतरी। ज्ञानियों से अभिप्राय वे अह्ले किताब हैं जिन्हें आकाशीय पुस्तकों का ज्ञान हो।

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44 : 16

بِالْبَیِّنٰتِ وَالزُّبُرِ ؕ— وَاَنْزَلْنَاۤ اِلَیْكَ الذِّكْرَ لِتُبَیِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ اِلَیْهِمْ وَلَعَلَّهُمْ یَتَفَكَّرُوْنَ ۟

(उन्हें) स्पष्ट प्रमाणों तथा पुस्तकों के साथ (भेजा)। और हमने आपकी ओर यह शिक्षा (क़ुरआन) उतारी, ताकि आप लोगों के सामने खोल-खोलकर बयान कर दें, जो कुछ उनकी ओर उतारा गया है और ताकि वे सोच-विचार करें। info
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45 : 16

اَفَاَمِنَ الَّذِیْنَ مَكَرُوا السَّیِّاٰتِ اَنْ یَّخْسِفَ اللّٰهُ بِهِمُ الْاَرْضَ اَوْ یَاْتِیَهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَیْثُ لَا یَشْعُرُوْنَ ۟ۙ

तो क्या बुरी चालें चलने वाले इस बात से निश्चिंत हो गए हैं कि अल्लाह उन्हें धरती में धँसा दे, अथवा उनपर यातना आ जाए, जहाँ से वे सोचते भी न हों? info
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46 : 16

اَوْ یَاْخُذَهُمْ فِیْ تَقَلُّبِهِمْ فَمَا هُمْ بِمُعْجِزِیْنَ ۟ۙ

या वह उन्हें उनके चलने-फिरने को दौरान पकड़ ले। तो वे (अल्लाह को) किसी तरह विवश करने वाले नहीं हैं। info
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47 : 16

اَوْ یَاْخُذَهُمْ عَلٰی تَخَوُّفٍ ؕ— فَاِنَّ رَبَّكُمْ لَرَءُوْفٌ رَّحِیْمٌ ۟

अथवा वह उन्हें भयभीत होने की दशा में पकड़[17] ले? निःसंदेह तुम्हारा पालनहार निश्चय अति करुणामय, अत्यंत दयावान् है। info

17. अर्थात जबकि पहले से उन्हें आपदा का भय हो।

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48 : 16

اَوَلَمْ یَرَوْا اِلٰی مَا خَلَقَ اللّٰهُ مِنْ شَیْءٍ یَّتَفَیَّؤُا ظِلٰلُهٗ عَنِ الْیَمِیْنِ وَالشَّمَآىِٕلِ سُجَّدًا لِّلّٰهِ وَهُمْ دٰخِرُوْنَ ۟

क्या उन्होंने अल्लाह की पैदा की हुई कोई चीज़ नहीं देखी कि उसकी परछाइयाँ अल्लाह को सजदा करती हुई दाएँ तथा बाएँ झुकती हैं? जबकि वे विनम्र होती हैं। info
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49 : 16

وَلِلّٰهِ یَسْجُدُ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ مِنْ دَآبَّةٍ وَّالْمَلٰٓىِٕكَةُ وَهُمْ لَا یَسْتَكْبِرُوْنَ ۟

तथा आकाशों एवं धरती में जितने जीवधारी हैं, सब अल्लाह ही को सजदा करते हैं तथा फ़रिश्ते (भी)। और वे अहंकार नहीं करते। info
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50 : 16

یَخَافُوْنَ رَبَّهُمْ مِّنْ فَوْقِهِمْ وَیَفْعَلُوْنَ مَا یُؤْمَرُوْنَ ۟

वे[18] अपने पालनहार से डरते हैं, जो उनके ऊपर है। और वे वही करते हैं, जो आदेश दिेए जाते हैं। info

18. अर्थात फ़रिश्ते।

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51 : 16

وَقَالَ اللّٰهُ لَا تَتَّخِذُوْۤا اِلٰهَیْنِ اثْنَیْنِ ۚ— اِنَّمَا هُوَ اِلٰهٌ وَّاحِدٌ ۚ— فَاِیَّایَ فَارْهَبُوْنِ ۟

और अल्लाह ने कहा : दो पूज्य न बनाओ। वह तो केवल एक ही पूज्य है। अतः तुम मुझी से डरो। info
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52 : 16

وَلَهٗ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَلَهُ الدِّیْنُ وَاصِبًا ؕ— اَفَغَیْرَ اللّٰهِ تَتَّقُوْنَ ۟

और उसी का है, जो कुछ आकाशों में तथा जो कुछ धरती में है। और इबादत भी हमेशा उसी की है। तो क्या तुम अल्लाह के अलावा से डरते हो? info
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53 : 16

وَمَا بِكُمْ مِّنْ نِّعْمَةٍ فَمِنَ اللّٰهِ ثُمَّ اِذَا مَسَّكُمُ الضُّرُّ فَاِلَیْهِ تَجْـَٔرُوْنَ ۟ۚ

तुम्हारे पास जो भी नेमत है, वह अल्लाह ही की ओर से है। फिर जब तुम्हें दुःख पहुँचता है, तो उसी की ओर गिड़गिड़ाते हो। info
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54 : 16

ثُمَّ اِذَا كَشَفَ الضُّرَّ عَنْكُمْ اِذَا فَرِیْقٌ مِّنْكُمْ بِرَبِّهِمْ یُشْرِكُوْنَ ۟ۙ

फिर जब वह तुमसे उस कष्ट को दूर कर देता है, तो अचानक तुममें से कुछ लोग अपने रब के साथ साझी ठहराने लगते हैं। info
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