আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - হিন্দি অনুবাদ- আজীজুল হক ওমৰী

अन्-नबा

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1 : 78

عَمَّ یَتَسَآءَلُوْنَ ۟ۚ

वे आपस में किस चीज़ के विषय में प्रश्न कर रहे हैं? info
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2 : 78

عَنِ النَّبَاِ الْعَظِیْمِ ۟ۙ

बहुत बड़ी सूचना के विषय में। info
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3 : 78

الَّذِیْ هُمْ فِیْهِ مُخْتَلِفُوْنَ ۟ؕ

जिसमें वे मतभेद करने वाले हैं। info
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4 : 78

كَلَّا سَیَعْلَمُوْنَ ۟ۙ

हरगिज़ नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे। info
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5 : 78

ثُمَّ كَلَّا سَیَعْلَمُوْنَ ۟

फिर हरगिज़ नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे।[1] info

1. (1-5) इन आयतों में उनको धिक्कारा गया है, जो प्रलय की हँसी उड़ाते हैं। जैसे उनके लिए प्रलय की सूचना किसी गंभीर चिंता के योग्य नहीं। परंतु वह दिन दूर नहीं जब प्रलय उनके आगे आ जाएगी और वे विश्व विधाता के सामने उत्तरदायित्व के लिए उपस्थित होंगे।

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6 : 78

اَلَمْ نَجْعَلِ الْاَرْضَ مِهٰدًا ۟ۙ

क्या हमने धरती को बिछौना नहीं बनाया? info
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7 : 78

وَّالْجِبَالَ اَوْتَادًا ۟ۙ

और पर्वतों को मेखें? info
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8 : 78

وَّخَلَقْنٰكُمْ اَزْوَاجًا ۟ۙ

तथा हमने तुम्हें जोड़े-जोड़े पैदा किया। info
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9 : 78

وَّجَعَلْنَا نَوْمَكُمْ سُبَاتًا ۟ۙ

तथा हमने तुम्हारी नींद को आराम (का साधन) बनाया। info
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10 : 78

وَّجَعَلْنَا الَّیْلَ لِبَاسًا ۟ۙ

और हमने रात को आवरण बनाया। info
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11 : 78

وَّجَعَلْنَا النَّهَارَ مَعَاشًا ۟ۚ

और हमने दिन को कमाने के लिए बनाया। info
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12 : 78

وَبَنَیْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعًا شِدَادًا ۟ۙ

तथा हमने तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत (आकाश) बनाए। info
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13 : 78

وَّجَعَلْنَا سِرَاجًا وَّهَّاجًا ۟ۙ

और हमने एक प्रकाशमान् तप्त दीप (सूर्य) बनाया। info
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14 : 78

وَّاَنْزَلْنَا مِنَ الْمُعْصِرٰتِ مَآءً ثَجَّاجًا ۟ۙ

और हमने बदलियों से मूसलाधार पानी उतारा। info
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15 : 78

لِّنُخْرِجَ بِهٖ حَبًّا وَّنَبَاتًا ۟ۙ

ताकि हम उसके द्वारा अन्न और वनस्पति उगाएँ। info
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16 : 78

وَّجَنّٰتٍ اَلْفَافًا ۟ؕ

और घने-घने बाग़।[2] info

2. (6-16) इन आयतों में अल्लाह की शक्ति और प्रतिपालन (रूबूबिय्यत) के लक्षण दर्शाए गए हैं, जो यह साक्ष्य देते हैं कि प्रतिकार (बदले) का दिन आवश्यक है, क्योंकि जिसके लिए इतनी बड़ी व्यवस्था की गई हो और उसे कर्मों के अधिकार भी दिए गए हों, तो उसके कर्मों का पुरस्कार या दंड तो मिलना ही चाहिए।

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17 : 78

اِنَّ یَوْمَ الْفَصْلِ كَانَ مِیْقَاتًا ۟ۙ

निःसंदेह निर्णय (फ़ैसले) का दिन एक नियत समय है। info
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18 : 78

یَّوْمَ یُنْفَخُ فِی الصُّوْرِ فَتَاْتُوْنَ اَفْوَاجًا ۟ۙ

जिस दिन सूर में फूँक मारी जाएगी, तो तुम दल के दल चले आओगे। info
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19 : 78

وَّفُتِحَتِ السَّمَآءُ فَكَانَتْ اَبْوَابًا ۟ۙ

और आकाश खोल दिया जाएगा, तो उसमें द्वार ही द्वार हो जाएँगे। info
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20 : 78

وَّسُیِّرَتِ الْجِبَالُ فَكَانَتْ سَرَابًا ۟ؕ

और पर्वत चलाए जाएँगे, तो वे मरीचिका बन जाएँगे।[3] info

3. (17-20) इन आयतों में बताया जा रहा है कि निर्णय का दिन अपने निश्चित समय पर आकर रहेगा, उस दिन आकाश तथा धरती में एक बड़ी उथल-पुथल होगी। इसके लिए सूर में एक फूँक मारने की देर है। फिर जिसकी सूचना दी जा रही है तुम्हारे सामने आ जाएगी। तुम्हारे मानने या न मानने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। और सब अपना ह़िसाब देने के लिए अल्लाह के न्यायालय की ओर चल पड़ेंगे।

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21 : 78

اِنَّ جَهَنَّمَ كَانَتْ مِرْصَادًا ۟ۙ

निःसंदेह जहन्नम घात में है। info
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22 : 78

لِّلطَّاغِیْنَ مَاٰبًا ۟ۙ

सरकशों का ठिकाना है। info
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23 : 78

لّٰبِثِیْنَ فِیْهَاۤ اَحْقَابًا ۟ۚ

जिसमें वे अनगिनत वर्षों तक रहेंगे। info
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24 : 78

لَا یَذُوْقُوْنَ فِیْهَا بَرْدًا وَّلَا شَرَابًا ۟ۙ

वे उसमें न कोई ठंड चखेंगे और न पीने की चीज़। info
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25 : 78

اِلَّا حَمِیْمًا وَّغَسَّاقًا ۟ۙ

सिवाय अत्यंत गर्म पानी और बहती पीप के। info
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26 : 78

جَزَآءً وِّفَاقًا ۟ؕ

यह पूरा-पूरा बदला है। info
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27 : 78

اِنَّهُمْ كَانُوْا لَا یَرْجُوْنَ حِسَابًا ۟ۙ

निःसंदेह वे हिसाब से नहीं डरते थे। info
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28 : 78

وَّكَذَّبُوْا بِاٰیٰتِنَا كِذَّابًا ۟ؕ

तथा उन्होंने हमारी आयतों को बुरी तरह झुठलाया। info
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29 : 78

وَكُلَّ شَیْءٍ اَحْصَیْنٰهُ كِتٰبًا ۟ۙ

और हमने हर चीज़ को लिखकर संरक्षित कर रखा है। info
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30 : 78

فَذُوْقُوْا فَلَنْ نَّزِیْدَكُمْ اِلَّا عَذَابًا ۟۠

तो चखो, हम तुम्हारे लिए यातना ही अधिक करते रहेंगे।[4] info

4. (21-30) इन आयतों में बताया गया है कि जो ह़िसाब की आशा नहीं रखते और हमारी आयतों को नहीं मानते हमने उनकी एक-एक करतूत को गिनकर अपने यहाँ लिख रखा है। और उनकी ख़बर लेने के लिए नरक घात लगाए तैयार है, जहाँ उनके कुकर्मों का भरपूर बदला दिया जाएगा।

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31 : 78

اِنَّ لِلْمُتَّقِیْنَ مَفَازًا ۟ۙ

निःसंदेह (अल्लाह से) डरने वालों के लिए सफलता है। info
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32 : 78

حَدَآىِٕقَ وَاَعْنَابًا ۟ۙ

बाग़ तथा अंगूर। info
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33 : 78

وَّكَوَاعِبَ اَتْرَابًا ۟ۙ

और समान उम्र वाली नवयुवतियाँ। info
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34 : 78

وَّكَاْسًا دِهَاقًا ۟ؕ

और छलकते हुए प्याले। info
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35 : 78

لَا یَسْمَعُوْنَ فِیْهَا لَغْوًا وَّلَا كِذّٰبًا ۟ۚۖ

वे उसमें न तो कोई व्यर्थ बात सुनेंगे और न (एक दूसरे को) झुठलाना। info
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36 : 78

جَزَآءً مِّنْ رَّبِّكَ عَطَآءً حِسَابًا ۟ۙ

यह तुम्हारे पालनहार की ओर से बदले में ऐसा प्रदान है जो पर्याप्त होगा। info
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37 : 78

رَّبِّ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَمَا بَیْنَهُمَا الرَّحْمٰنِ لَا یَمْلِكُوْنَ مِنْهُ خِطَابًا ۟ۚ

जो आकाशों और धरती तथा उनके बीच की हर चीज़ का पालनहार है, अत्यंत दयावान् है। उससे बात करने का उन्हें अधिकार नहीं होगा। info
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38 : 78

یَوْمَ یَقُوْمُ الرُّوْحُ وَالْمَلٰٓىِٕكَةُ صَفًّا ۙۗؕ— لَّا یَتَكَلَّمُوْنَ اِلَّا مَنْ اَذِنَ لَهُ الرَّحْمٰنُ وَقَالَ صَوَابًا ۟

जिस दिन रूह़ (जिबरील) तथा फ़रिश्ते पंक्तियों में खड़े होंगे, उससे केवल वही बात कर सकेगा जिसे रहमान (अल्लाह) आज्ञा देगा और वह ठीक बात कहेगा। info
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39 : 78

ذٰلِكَ الْیَوْمُ الْحَقُّ ۚ— فَمَنْ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰی رَبِّهٖ مَاٰبًا ۟

यही (वह) दिन है जो सत्य है। अतः जो चाहे अपने पालनहार की ओर लौटने की जगह (ठिकाना) बना ले।[5] info

5. (37-39) इन आयतों में अल्लाह के न्यायालय में उपस्थिति (ह़ाज़िरी) का चित्र दिखाया गया है। और जो इस भ्रम में पड़े हैं कि उनके देवी-देवता आदि अभिस्ताव करेंगे उनको सावधान किया गया है कि उस दिन कोई बिना उस की आज्ञा के मुँह नहीं खोलेगा और अल्लाह की आज्ञा से अभिस्ताव भी करेगा तो उसी के लिए जो संसार में सत्य वचन "ला इलाहा इल्लल्लाह" को मानता हो। अल्लाह के द्रोही और सत्य के विरोधी किसी अभिस्ताव के योग्य नगीं होंगे।

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40 : 78

اِنَّاۤ اَنْذَرْنٰكُمْ عَذَابًا قَرِیْبًا ۖۚ۬— یَّوْمَ یَنْظُرُ الْمَرْءُ مَا قَدَّمَتْ یَدٰهُ وَیَقُوْلُ الْكٰفِرُ یٰلَیْتَنِیْ كُنْتُ تُرٰبًا ۟۠

निःसंदेह हमने तुम्हें एक निकट ही आने वाली यातना से डरा दिया है, जिस दिन मनुष्य देख लेगा, जो कुछ उसके दोनों हाथों ने आगे भेजा है, और काफिर कहेगा : ऐ काश कि मैं मिट्टी होता![6] info

6. (40) बात को इस चेतावनी पर समाप्त किया गया है कि जिस दिन के आने की सूचना दी जा रही है, उस का आना सत्य है, उसे दूर न समझो। अब जिसका दिल चाहे इसे मानकर अपने पालनहार की ओर मार्ग बना ले। परंतु इस चेतावनी के होते जो इनकार करेगा, उसका किया-धरा सामने आएगा, तो पछता-पछता कर यह कामना करेगा कि मैं संसार में पैदा ही न होता। उस समय इस संसार के बारे में उसका यह विचार होगा जिसके प्रेम में आज वह परलोक से अंधा बना हुआ है।

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