আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - হিন্দি অনুবাদ- আজীজুল হক ওমৰী

अल्-ह़दीद

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1 : 57

سَبَّحَ لِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ۚ— وَهُوَ الْعَزِیْزُ الْحَكِیْمُ ۟

अल्लाह की पवित्रता का गान किया हर उस चीज़ ने जो आकाशों और धरती में है और वही सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है। info
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2 : 57

لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ۚ— یُحْیٖ وَیُمِیْتُ ۚ— وَهُوَ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ ۟

उसी के लिए आकाशों तथा धरती का राज्य है। वह जीवन प्रदान करता और मौत देता है। तथा वह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है। info
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3 : 57

هُوَ الْاَوَّلُ وَالْاٰخِرُ وَالظَّاهِرُ وَالْبَاطِنُ ۚ— وَهُوَ بِكُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمٌ ۟

वही सबसे पहले है और सबसे आख़िर है और ज़ाहिर (दृश्यमान) है और पोशीदा (अदृश्य) है और वह हर चीज़ को भली-भाँति जानने वाला है। info
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4 : 57

هُوَ الَّذِیْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ فِیْ سِتَّةِ اَیَّامٍ ثُمَّ اسْتَوٰی عَلَی الْعَرْشِ ؕ— یَعْلَمُ مَا یَلِجُ فِی الْاَرْضِ وَمَا یَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا یَنْزِلُ مِنَ السَّمَآءِ وَمَا یَعْرُجُ فِیْهَا ؕ— وَهُوَ مَعَكُمْ اَیْنَ مَا كُنْتُمْ ؕ— وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِیْرٌ ۟

उसी ने आकाशों तथा धरती को छह दिनों में पैदा किया, फिर वह अर्श पर बुलंद हुआ। वह जानता है जो कुछ धरती में प्रवेश करता है और जो कुछ उससे निकलता है और जो कुछ आकाश से उतरता है और जो कुछ उसमें चढ़ता है और वह तुम्हारे साथ[1] है, तुम जहाँ कहीं भी हो। और जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे ख़ूब देखने वाला है। info

1. अर्थात अपने सामर्थ्य तथा ज्ञान द्वारा। आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह सदा से है और सदा रहेगा। प्रत्येक चीज़ का अस्तित्व उसके अस्तित्व के पश्चात् है। वही नित्य है, विश्व की प्रत्येक वस्तु उसके होने को बता रही है, फिर भी वह ऐसा गुप्त है कि दिखाई नहीं देता।

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5 : 57

لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ؕ— وَاِلَی اللّٰهِ تُرْجَعُ الْاُمُوْرُ ۟

आकाशों और धरती का राज्य उसी का है और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते हैं। info
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6 : 57

یُوْلِجُ الَّیْلَ فِی النَّهَارِ وَیُوْلِجُ النَّهَارَ فِی الَّیْلِ ؕ— وَهُوَ عَلِیْمٌۢ بِذَاتِ الصُّدُوْرِ ۟

वह रात्रि को दिन में दाखिल करता है और दिन को रात्रि में दाखिल करता है तथा वह सीनों की बातों को ख़ूब जानने वाला है। info
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7 : 57

اٰمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَاَنْفِقُوْا مِمَّا جَعَلَكُمْ مُّسْتَخْلَفِیْنَ فِیْهِ ؕ— فَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْ وَاَنْفَقُوْا لَهُمْ اَجْرٌ كَبِیْرٌ ۟

अल्लाह तथा उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसमें से खर्च करो जिसमें उसने तुम्हें उत्तराधिकारी बनाया है। फिर तुममें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने ख़र्च किए, उनके लिए बहुत बड़ा प्रतिफल है। info
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8 : 57

وَمَا لَكُمْ لَا تُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ ۚ— وَالرَّسُوْلُ یَدْعُوْكُمْ لِتُؤْمِنُوْا بِرَبِّكُمْ وَقَدْ اَخَذَ مِیْثَاقَكُمْ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْنَ ۟

और तुम्हें क्या हो गया है कि अल्लाह पर ईमान नहीं लाते, जबकि रसूल[2] तुम्हें बुला रहा है कि अपने पालनहार पर ईमान लाओ, और निश्चय वह (अल्लाह) तुमसे दृढ़ वचन[3] ले चुका है, यदि तुम ईमान वाले हो। info

2. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)। 3. (देखिए : सूरतुल-आराफ़, आयत : 172)। इब्ने कसीर ने इससे अभिप्राय वह वचन लिया है जिसका वर्णन सूरतुल-माइदा, आयत : 7 में है। जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के द्वारा सह़ाबा से लिया गया कि वे आपकी बातें सुनेंगे तथा सुख-दुःख में अनुपालन करेंगे। और प्रिय और अप्रिय में सच बोलेंगे। तथा किसी की निंदा से नहीं डरेंगे। (बुख़ारी : 7199, मुस्लिम :1709)

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9 : 57

هُوَ الَّذِیْ یُنَزِّلُ عَلٰی عَبْدِهٖۤ اٰیٰتٍۢ بَیِّنٰتٍ لِّیُخْرِجَكُمْ مِّنَ الظُّلُمٰتِ اِلَی النُّوْرِ ؕ— وَاِنَّ اللّٰهَ بِكُمْ لَرَءُوْفٌ رَّحِیْمٌ ۟

वही है, जो अपने बंदे पर स्पष्ट निशानियाँ उतारता है, ताकि तुम्हें अँधेरों से प्रकाश की ओर निकाले। तथा निःसंदेह अल्लाह तुमपर निश्चय ही बड़ा करुणामय, अत्यंत दयावान् है। info
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10 : 57

وَمَا لَكُمْ اَلَّا تُنْفِقُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَلِلّٰهِ مِیْرَاثُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ؕ— لَا یَسْتَوِیْ مِنْكُمْ مَّنْ اَنْفَقَ مِنْ قَبْلِ الْفَتْحِ وَقٰتَلَ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ اَعْظَمُ دَرَجَةً مِّنَ الَّذِیْنَ اَنْفَقُوْا مِنْ بَعْدُ وَقَاتَلُوْاؕ— وَكُلًّا وَّعَدَ اللّٰهُ الْحُسْنٰی ؕ— وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِیْرٌ ۟۠

और तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह की राह में ख़र्च नहीं करते, जबकि आसमानों और ज़मीन की मीरास अल्लाह ही के लिए है। तुममें से जिसने (मक्का की) विजय से पहले ख़र्च किया और लड़ाई की वह (बाद में ऐसा करने वालों के) बराबर नहीं है। ये लोग पद में उन लोगों से बड़े हैं, जिन्होंने बाद में[4] ख़र्च किया और युद्ध किया। जबकि अल्लाह ने प्रत्येक से अच्छा बदला देने का वादा किया है तथा तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे भली-भाँति सूचित है। info

4. ह़दीस में है कि यदि कोई व्यक्ति उह़ुद (पर्वत) के बराबर भी सोना दान कर दे, तो मेरे सह़ाबा के आधा अथवा चौथाई किलो के बराबर भी नहीं होगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3673, सह़ीह़ मुस्लिम : 2541)

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11 : 57

مَنْ ذَا الَّذِیْ یُقْرِضُ اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا فَیُضٰعِفَهٗ لَهٗ وَلَهٗۤ اَجْرٌ كَرِیْمٌ ۟

कौन है जो अल्लाह को अच्छा क़र्ज़[5] दे, फिर वह उसे उसके लिए कई गुना कर दे और उसके लिए अच्छा (सम्मानजनक) बदला है? info

5. क़र्ज़ से अभिप्राय अल्लाह की राह में धन दान करना है।

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12 : 57

یَوْمَ تَرَی الْمُؤْمِنِیْنَ وَالْمُؤْمِنٰتِ یَسْعٰی نُوْرُهُمْ بَیْنَ اَیْدِیْهِمْ وَبِاَیْمَانِهِمْ بُشْرٰىكُمُ الْیَوْمَ جَنّٰتٌ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا ؕ— ذٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِیْمُ ۟ۚ

जिस दिन तुम ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों को देखोगे कि उनका प्रकाश उनके आगे तथा उनके दाहिनी ओर दौड़ रहा होगा।[5] आज तुम्हें ऐसे बागों की शुभ-सूचना है, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, जिनमें तुम हमेशा रहोगे। यही तो बहुत बड़ी सफलता है। info

5. यह प्रलय के दिन होगा जब वे अपने ईमान के प्रकाश में स्वर्ग तक पहुँचेंगे।

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13 : 57

یَوْمَ یَقُوْلُ الْمُنٰفِقُوْنَ وَالْمُنٰفِقٰتُ لِلَّذِیْنَ اٰمَنُوا انْظُرُوْنَا نَقْتَبِسْ مِنْ نُّوْرِكُمْ ۚ— قِیْلَ ارْجِعُوْا وَرَآءَكُمْ فَالْتَمِسُوْا نُوْرًا ؕ— فَضُرِبَ بَیْنَهُمْ بِسُوْرٍ لَّهٗ بَابٌ ؕ— بَاطِنُهٗ فِیْهِ الرَّحْمَةُ وَظَاهِرُهٗ مِنْ قِبَلِهِ الْعَذَابُ ۟ؕ

जिस दिन मुनाफ़िक़ पुरुष तथा मुनाफ़िक़ स्त्रियाँ ईमान वालों से कहेंगे कि हमारी प्रतीक्षा करो कि हम तुम्हारे प्रकाश में से कुछ प्रकाश प्राप्त कर लें। कहा जाएगा : अपने पीछे लौट जाओ, फिर कोई प्रकाश तलाश करो।[6] फिर उनके बीच एक दीवार बना दी जाएगी, जिसमें एक द्वार होगा। उसके भीतरी भाग में दया होगी तथा उसके बाहरी भाग की ओर यातना होगी। info

6. अर्थात संसार में जाकर ईमान तथा सत्कर्म के प्रकाश की खोज करो, किंतु यह असंभव होगा।

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14 : 57

یُنَادُوْنَهُمْ اَلَمْ نَكُنْ مَّعَكُمْ ؕ— قَالُوْا بَلٰی وَلٰكِنَّكُمْ فَتَنْتُمْ اَنْفُسَكُمْ وَتَرَبَّصْتُمْ وَارْتَبْتُمْ وَغَرَّتْكُمُ الْاَمَانِیُّ حَتّٰی جَآءَ اَمْرُ اللّٰهِ وَغَرَّكُمْ بِاللّٰهِ الْغَرُوْرُ ۟

वे उन्हें पुकारकर कहेंगे : क्या हम तुम्हारे साथ नहीं थे? वे कहेंगे : क्यों नहीं, परंतु तुमने अपने आपको फ़ितने (परीक्षा) में डाला, और तुम प्रतीक्षा[7] करते रहे तथा तुमने संदेह किया और (झूठी) इच्छाओं ने तुम्हें धोखा दिया, यहाँ तक कि अल्लाह का आदेश आ गया, और इस धोखेबाज़ ने तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखा दिया। info

7. कि मुसलमानों पर कोई आपदा आए।

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15 : 57

فَالْیَوْمَ لَا یُؤْخَذُ مِنْكُمْ فِدْیَةٌ وَّلَا مِنَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا ؕ— مَاْوٰىكُمُ النَّارُ ؕ— هِیَ مَوْلٰىكُمْ ؕ— وَبِئْسَ الْمَصِیْرُ ۟

तो आज न तुमसे कोई छुड़ौती ली जाएगी और न उन लोगों से जिन्होंने कुफ़्र किया। तुम्हारा ठिकाना जहन्नम है। वही तुम्हारी दोस्त है और वह बुरा ठिकाना है। info
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16 : 57

اَلَمْ یَاْنِ لِلَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اَنْ تَخْشَعَ قُلُوْبُهُمْ لِذِكْرِ اللّٰهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ الْحَقِّ ۙ— وَلَا یَكُوْنُوْا كَالَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلُ فَطَالَ عَلَیْهِمُ الْاَمَدُ فَقَسَتْ قُلُوْبُهُمْ ؕ— وَكَثِیْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ ۟

क्या उन लोगों के लिए जो ईमान लाए, वह समय नहीं आया कि उनके दिल अल्लाह की याद के लिए और उस सत्य के लिए झुक जाएँ जो उतरा है, और वे उन लोगों की तरह न हो जाएँ, जिन्हें इससे पहले पुस्तक प्रदान की गई थी, फिर उनपर लंबा समय गुज़र गया, तो उनके दिल कठोर हो गए[8] और उनमें बहुत-से लोग अवज्ञाकारी हैं? info

8. (देखिए : सूरतुल-मायदा, आयत : 13)

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17 : 57

اِعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ یُحْیِ الْاَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ؕ— قَدْ بَیَّنَّا لَكُمُ الْاٰیٰتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُوْنَ ۟

जान लो कि निःसंदेह अल्लाह धरती को उसके मरने के पश्चात जीवित करता है। निःसंदेह हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं, ताकि तुम समझो। info
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18 : 57

اِنَّ الْمُصَّدِّقِیْنَ وَالْمُصَّدِّقٰتِ وَاَقْرَضُوا اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا یُّضٰعَفُ لَهُمْ وَلَهُمْ اَجْرٌ كَرِیْمٌ ۟

निःसंदेह दान करने वाले पुरुष तथा दान करने वाली स्त्रियाँ और जिन्होंने अल्लाह को अच्छा ऋण[9] दिया, उन्हें कई गुना दिया जाएगा और उनके लिए सम्मानित प्रतिफल है। info

9. ह़दीस में है कि जो पवित्र कमाई से एक खजूर के बराबर भी दान करता है, तो अल्लाह उसे पोसता है जैसे कोई घोड़े के बच्चे को पोसता है यहाँ तक कि वह पर्वत के समान हो जाता है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 1410)

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19 : 57

وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖۤ اُولٰٓىِٕكَ هُمُ الصِّدِّیْقُوْنَ ۖۗ— وَالشُّهَدَآءُ عِنْدَ رَبِّهِمْ ؕ— لَهُمْ اَجْرُهُمْ وَنُوْرُهُمْ ؕ— وَالَّذِیْنَ كَفَرُوْا وَكَذَّبُوْا بِاٰیٰتِنَاۤ اُولٰٓىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَحِیْمِ ۟۠

तथा जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों[10] पर ईमान लाए, वही अपने रब के निकट सिद्दीक़ तथा शहीद[11] (गवाही देने वाले) हैं, उन्हीं के लिए उनका प्रतिफल तथा उनका प्रकाश है। और वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वे भड़कती आग में रहने वाले हैं। info

10. अर्थात बिना अंतर और भेद-भाव किए सभी रसूलों पर ईमान लाए। 11. सिद्दीक़ का अर्थ है बड़ा सच्चा। और शहीद का अर्थ गवाह है। (देखिए : सूरतुल-बक़रह, आयत : 143, और सूरतुल-ह़ज्ज, आयत : 78)। शहीद का अर्थ अल्लाह की राह में मारा गया व्यक्ति भी है।

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20 : 57

اِعْلَمُوْۤا اَنَّمَا الْحَیٰوةُ الدُّنْیَا لَعِبٌ وَّلَهْوٌ وَّزِیْنَةٌ وَّتَفَاخُرٌ بَیْنَكُمْ وَتَكَاثُرٌ فِی الْاَمْوَالِ وَالْاَوْلَادِ ؕ— كَمَثَلِ غَیْثٍ اَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهٗ ثُمَّ یَهِیْجُ فَتَرٰىهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ یَكُوْنُ حُطَامًا ؕ— وَفِی الْاٰخِرَةِ عَذَابٌ شَدِیْدٌ ۙ— وَّمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرِضْوَانٌ ؕ— وَمَا الْحَیٰوةُ الدُّنْیَاۤ اِلَّا مَتَاعُ الْغُرُوْرِ ۟

जान लो कि वास्तव में संसार का जीवन केवल एक खेल है और मनोरंजन है और शोभा[12] है, तथा तुम्हारा आपस में एक-दूसरे पर बड़ाई जताना है और धन एवं संतान में एक-दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश करना है। उस वर्षा के समान जिससे उगने वाली खेती ने किसानों को प्रसन्न कर दिया, फिर वह पक जाती है, फिर तुम उसे देखते हो कि वह पीली हो गई, फिर वह चूरा हो जाती है। और आख़िरत में कड़ी यातना है और अल्लाह की ओर से बड़ी क्षमा और प्रसन्नता है, और संसार का जीवन धोखे के सामान के सिवा और कुछ नहीं। info

12. इसमें सांसारिक जीवन की शोभा की उपमा वर्षा की उपज की शोभा से दी गई है। जो कुछ ही दिन रहती है, फिर चूर-चूर हो जाती है।

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21 : 57

سَابِقُوْۤا اِلٰی مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا كَعَرْضِ السَّمَآءِ وَالْاَرْضِ ۙ— اُعِدَّتْ لِلَّذِیْنَ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖ ؕ— ذٰلِكَ فَضْلُ اللّٰهِ یُؤْتِیْهِ مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَاللّٰهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِیْمِ ۟

अपने पालनहार की क्षमा तथा उस जन्नत की ओर एक-दूसरे से आगे बढ़ो, जिसका विस्तार आकाश तथा धरती के विस्तार के समान है, वह उन लोगों के लिए तैयार की गई है, जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए। यह अल्लाह का अनुग्रह है। वह इसे उसको देता है जिसे चाहता है और अल्लाह बहुत बड़े अनुग्रह वाला है। info
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22 : 57

مَاۤ اَصَابَ مِنْ مُّصِیْبَةٍ فِی الْاَرْضِ وَلَا فِیْۤ اَنْفُسِكُمْ اِلَّا فِیْ كِتٰبٍ مِّنْ قَبْلِ اَنْ نَّبْرَاَهَا ؕ— اِنَّ ذٰلِكَ عَلَی اللّٰهِ یَسِیْرٌ ۟ۙ

धरती में तथा तुम्हारे प्राणों पर जो भी विपदा आती है, वह एक किताब में अंकित है, इससे पहले कि हम उसे पैदा करें।[13] निश्चय यह अल्लाह के लिए बहुत आसान है। info

13. अर्थात इस संसार और मनुष्य के अस्तित्व से पूर्व ही अल्लाह ने अपने ज्ञान अनुसार 'लौह़े मह़फ़ूज़' (सुरक्षित पट्टिका) में लिख रखा है। ह़दीस में है कि अल्लाह ने पूरी सृष्टि का भाग्य आकाशों तथा धरती की रचना से पचास हज़ार वर्ष पहले लिख दिया, जबकि उसका अर्श पानी पर था। (सह़ीह़ मुस्लिम : 2653)

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23 : 57

لِّكَیْلَا تَاْسَوْا عَلٰی مَا فَاتَكُمْ وَلَا تَفْرَحُوْا بِمَاۤ اٰتٰىكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُوْرِ ۟ۙ

ताकि तुम उसपर शोक न करो, जो तुमसे छूट जाए और उसपर फूल न जाओ, जो वह तुम्हें प्रदान करे। और अल्लाह किसी अहंकार करने वाले, बहुत गर्व करने वाले से प्रेम नहीं करता। info
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24 : 57

١لَّذِیْنَ یَبْخَلُوْنَ وَیَاْمُرُوْنَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ ؕ— وَمَنْ یَّتَوَلَّ فَاِنَّ اللّٰهَ هُوَ الْغَنِیُّ الْحَمِیْدُ ۟

वे लोग जो कंजूसी करते हैं और लोगों को कंजूसी करने का आदेश देते हैं। तथा जो मुँह फेर ले, तो निश्चय अल्लाह ही है जो बड़ा बेनियाज़, बहुत प्रशंसनीय है। info
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25 : 57

لَقَدْ اَرْسَلْنَا رُسُلَنَا بِالْبَیِّنٰتِ وَاَنْزَلْنَا مَعَهُمُ الْكِتٰبَ وَالْمِیْزَانَ لِیَقُوْمَ النَّاسُ بِالْقِسْطِ ۚ— وَاَنْزَلْنَا الْحَدِیْدَ فِیْهِ بَاْسٌ شَدِیْدٌ وَّمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَلِیَعْلَمَ اللّٰهُ مَنْ یَّنْصُرُهٗ وَرُسُلَهٗ بِالْغَیْبِ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ قَوِیٌّ عَزِیْزٌ ۟۠

निःसंदेह हमने अपने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा तथा उनके साथ पुस्तक और तराज़ू उतारा, ताकि लोग न्याय पर क़ायम रहें। तथा हमने लोहा उतारा, जिसमें बहुत शक्ति[14] है और लोगों के लिए बहुत-से लाभ हैं, और ताकि अल्लाह जान ले कि कौन उसकी तथा उसके रसूलों की बिना देखे सहायता करता है। निश्चय ही अल्लाह अति शक्तिशाली, सब पर प्रभुत्वशाली है। info

14. उससे अस्त्र-शस्त्र बनाए जाते हैं।

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26 : 57

وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا نُوْحًا وَّاِبْرٰهِیْمَ وَجَعَلْنَا فِیْ ذُرِّیَّتِهِمَا النُّبُوَّةَ وَالْكِتٰبَ فَمِنْهُمْ مُّهْتَدٍ ۚ— وَكَثِیْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ ۟

और निःसंदेह हमने नूह़ और इबराहीम को (रसूल बनाकर) भेजा, और उन दोनों की संतान में नुबुव्वत तथा पुस्तक रख दी। फिर उनमें से कुछ सीधे मार्ग पर चलने वाले हैं और उनमें से बहुत-से लोग अवज्ञाकारी हैं। info
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27 : 57

ثُمَّ قَفَّیْنَا عَلٰۤی اٰثَارِهِمْ بِرُسُلِنَا وَقَفَّیْنَا بِعِیْسَی ابْنِ مَرْیَمَ وَاٰتَیْنٰهُ الْاِنْجِیْلَ ۙ۬— وَجَعَلْنَا فِیْ قُلُوْبِ الَّذِیْنَ اتَّبَعُوْهُ رَاْفَةً وَّرَحْمَةً ؕ— وَرَهْبَانِیَّةَ ١بْتَدَعُوْهَا مَا كَتَبْنٰهَا عَلَیْهِمْ اِلَّا ابْتِغَآءَ رِضْوَانِ اللّٰهِ فَمَا رَعَوْهَا حَقَّ رِعَایَتِهَا ۚ— فَاٰتَیْنَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مِنْهُمْ اَجْرَهُمْ ۚ— وَكَثِیْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ ۟

फिर हमने उनके पद्चिह्नों पर निरंतर अपने रसूल भेजे। और उनके पीछे मरयम के पुत्र ईसा को भेजा, और उसे इंजील प्रदान किया, और हमने उन लोगों के दिलों में जिन्होंने उसका अनुसरण किया नर्मी और मेहरबानी रख दी। रहा संन्यास, तो उन्होंने खुद इसका आविष्कार किया, हमने उसे उनके ऊपर अनिवार्य नहीं किया[15] था, परंतु अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए (उन्होंने ऐसा किया)। फिर उन्होंने उसका पूर्ण रूप से पालन नहीं किया। फिर हमने उनमें से जो लोग ईमान लाए उन्हें उनका बदला प्रदान कर दिया और उनमें से बहुत-से लोग अवज्ञाकारी हैं। info

15. संसार त्याग अर्थात संन्यास के विषय में यह बताया गया है कि अल्लाह ने उन्हें इसका आदेश नहीं दिया। उन्होंने अल्लाह की प्रसन्नता के लिए स्वयं इसे अपने ऊपर अनिवार्य कर लिया। फिर भी इसे निभा नहीं सके। इसमें यह संकेत है कि योग तथा संन्यास का धर्म में कभी कोई आदेश नहीं दिया गया है। इस्लाम में भी शरीअत के स्थान पर तरीक़त बनाकर नई बातें बनाई गईं। और सत्धर्म का रूप बदल दिया गया। ह़दीस में है कि कोई हमारे धर्म में नई बात निकाले जो उसमें नहीं है, तो वह मान्य नहीं। (सह़ीह़ बुख़ारी : 2697, सह़ीह़ मुस्लिम : 1718)

التفاسير:

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28 : 57

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ وَاٰمِنُوْا بِرَسُوْلِهٖ یُؤْتِكُمْ كِفْلَیْنِ مِنْ رَّحْمَتِهٖ وَیَجْعَلْ لَّكُمْ نُوْرًا تَمْشُوْنَ بِهٖ وَیَغْفِرْ لَكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟ۙ

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! अल्लाह से डरो और उसके रसूल पर ईमान लाओ, वह तुम्हें अपनी दया का दोहरा हिस्सा[16] प्रदान करेगा। और तुम्हें ऐसा प्रकाश देगा, जिसमें तुम चलोगे। तथा तुम्हें क्षमा कर देगा। और अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है। info

16. ह़दीस में है कि तीन व्यक्ति ऐसे हैं जिनको दोहरा प्रतिफल मिलेगा। इन में एक अह्ले किताब में से वह वयक्ति है जो अपने नबी पर ईमान लाया था फिर मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर भी ईमान लाया। (सह़ीह़ बुख़ारी : 97, 2544, सह़ीह़ मुस्लिम : 154)

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29 : 57

لِّئَلَّا یَعْلَمَ اَهْلُ الْكِتٰبِ اَلَّا یَقْدِرُوْنَ عَلٰی شَیْءٍ مِّنْ فَضْلِ اللّٰهِ وَاَنَّ الْفَضْلَ بِیَدِ اللّٰهِ یُؤْتِیْهِ مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَاللّٰهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِیْمِ ۟۠

ताकि अह्ले किताब[17] जान लें कि वे अल्लाह के अनुग्रह में से किसी चीज़ पर अधिकार नहीं रखते और यह कि सारा अनुग्रह अल्लाह के हाथ में है। वह जिसे चाहता है, प्रदान करता है और अल्लाह बहुत बड़े अनुग्रह वाला है। info

17. अह्ले किताब से अभिप्राय यहूदी तथा ईसाई हैं।

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