আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - আল-মুখতাচাৰ ফী তাফছীৰিল কোৰআনিল কাৰীমৰ হিন্দী অনুবাদ

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16 : 3

اَلَّذِیْنَ یَقُوْلُوْنَ رَبَّنَاۤ اِنَّنَاۤ اٰمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ ۟ۚ

ये जन्नत वाले ही हैं जो अपने पालनहार से दुआ करते हुए कहते हैं : ऐ हमारे पालनहार! हम तुझपर ईमान लाए और उसपर भी जो कुछ तूने अपने रसूलों पर उतारा है, तथा हमने तेरी शरीयत का पालन किया। अतः तू हमारे द्वारा किए गए पापों को क्षमा कर दे और हमें आग की यातना से बचा। info
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17 : 3

اَلصّٰبِرِیْنَ وَالصّٰدِقِیْنَ وَالْقٰنِتِیْنَ وَالْمُنْفِقِیْنَ وَالْمُسْتَغْفِرِیْنَ بِالْاَسْحَارِ ۟

जो आज्ञाकारिता के काम करने और बुरे कामों को त्यागने, तथा उनपर आने वाली विपत्तियों पर धैर्य रखने वाले हैं, तथा वे अपने कथनों और कार्यों में सच्चे हैं, और वे पूरी तरह से अल्लाह के आज्ञाकारी हैं, और वे अल्लाह की राह में अपना धन खर्च करने वाले हैं, तथा वे रात की अंतिम घड़ियों में अल्लाह से क्षमा माँगने वाले हैं। क्योंकि उस समय दुआ स्वीकार होने की संभावना अधिक होती है और दिल व्यस्तताओं से खाली होता है। info
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18 : 3

شَهِدَ اللّٰهُ اَنَّهٗ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ۙ— وَالْمَلٰٓىِٕكَةُ وَاُولُوا الْعِلْمِ قَآىِٕمًا بِالْقِسْطِ ؕ— لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الْعَزِیْزُ الْحَكِیْمُ ۟ؕ

अल्लाह ने गवाही दी कि निःसंदेह वही वास्तव में इबादत के योग्य पूज्य है। उसके सिवा कोई उपासना के योग्य नहीं। ऐसा उसने शरई और ब्रह्मांडीय आयतों (निशानियों) को स्थापित करके किया है, जो उसके एकमात्र पूज्य होने को दर्शाती हैं। तथा फरिश्तों ने भी इसकी गवाही दी, और ज्ञान वाले लोगों ने तौहीद (एकेश्वरवाद) को लोगों के लिए स्पष्ट करने और उन्हें उसकी ओर आमंत्रित करने के द्वारा इसकी गवाही दी। उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े तथ्य अर्थात् इस बात की गवाही दी कि अल्लाह ही एकमात्र पूज्य है और वह अपनी सृष्टि और शरीयत में न्याय स्थापित करने वाला है। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, वह सब पर प्रभुत्वशाली है, उसपर किसी का ज़ोर नहीं चलता, अपनी रचना, प्रबंधन और शरीयतसाज़ी में पूर्ण हिकमत वाला है। info
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19 : 3

اِنَّ الدِّیْنَ عِنْدَ اللّٰهِ الْاِسْلَامُ ۫— وَمَا اخْتَلَفَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ اِلَّا مِنْ بَعْدِ مَا جَآءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْیًا بَیْنَهُمْ ؕ— وَمَنْ یَّكْفُرْ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ فَاِنَّ اللّٰهَ سَرِیْعُ الْحِسَابِ ۟

नि:संदेह अल्लाह के निकट स्वीकार्य धर्म इस्लाम है। इस्लाम का मतलब है आज्ञाकारिता के साथ अकेले अल्लाह के प्रति अधीनता और उपासना (बंदगी) के साथ उसके प्रति समर्पण; तथा सभी रसूलों पर उनकी अंतिम कड़ी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक ईमान लाना, जिनपर अल्लाह ने रसूलों का सिलसिला समाप्त कर दिया। अतः अल्लाह आपकी शरीयत के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेगा। यहूदियों और ईसाइयों ने अपने धर्म के बारे में जो भी मतभेद किया और विभिन्न समूहों और दलों में विभाजित हो गए, वह उनके पास ज्ञान आने के साथ उनपर तर्क स्थापित होने के बाद, ईर्ष्या और दुनिया की लालच के कारण था। तथा जो अल्लाह की उसके रसूल पर अवतरित आयतों का इनकार करे, तो निःसंदेह अल्लाह उससे बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है, जिसने उसका इनकार किया और उसके रसूलों को झुठलाया। info
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20 : 3

فَاِنْ حَآجُّوْكَ فَقُلْ اَسْلَمْتُ وَجْهِیَ لِلّٰهِ وَمَنِ اتَّبَعَنِ ؕ— وَقُلْ لِّلَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ وَالْاُمِّیّٖنَ ءَاَسْلَمْتُمْ ؕ— فَاِنْ اَسْلَمُوْا فَقَدِ اهْتَدَوْا ۚ— وَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّمَا عَلَیْكَ الْبَلٰغُ ؕ— وَاللّٰهُ بَصِیْرٌ بِالْعِبَادِ ۟۠

(ऐ रसूल!) अगर वे आपसे उस सत्य के संबंध में झगड़ें, जो आपपर अल्लाह की ओर से उतरा है, तो उन्हें उत्तर देते हुए कह दीजिए : मैं और ईमान वालों में से मेरा अनुसरण करने वाले अल्लाह को समर्पित हो गए। और (ऐ रसूल!) किताब वालों और मुश्रिकों से पूछिए : क्या तुम लोग अल्लाह के प्रति, उसके लिए विशुद्ध होकर और जो मैं लाया हूँ उसका अनुसरण करते हुए, समर्पित हो गए? यदि वे अल्लाह के प्रति समर्पित हो जाएँ और आपकी शरीयत का अनुसरण करें, तो निःसंदेह उन्होंने हिदायत का मार्ग अपना लिया। और अगर वे इस्लाम से मुँह फेर लें, तो आपका काम केवल अपनी बात उन तक पहुँचा देना है और उनका मामला अल्लाह के हवाले है। क्योंकि वह अपने बंदों को ख़ूब देखने वाला है, और वह प्रत्येक कार्यकर्ता को उसके कार्य का बदला देगा। info
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21 : 3

اِنَّ الَّذِیْنَ یَكْفُرُوْنَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ وَیَقْتُلُوْنَ النَّبِیّٖنَ بِغَیْرِ حَقٍّ ۙ— وَّیَقْتُلُوْنَ الَّذِیْنَ یَاْمُرُوْنَ بِالْقِسْطِ مِنَ النَّاسِ ۙ— فَبَشِّرْهُمْ بِعَذَابٍ اَلِیْمٍ ۟

जो लोग अल्लाह के उन तर्कों का इनकार करते हैं जो उसने उनपर उतारे हैं, तथा उसके नबियों को बिना अधिकार के अन्याय व आक्रामकता के साथ क़त्ल करते हैं और उन लोगों को क़त्ल करते हैं, जो लोगों में से न्याय करने का आदेश देते हैं और वे अच्छी बात का आदेश देने वाले और बुराई से रोकने वाले लोग हैं, तो इन काफ़िर हत्यारों को एक दर्दनाक यातना की शुभ सूचना दे दें। info
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22 : 3

اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ؗ— وَمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِیْنَ ۟

जो लोग इन गुणों से विशेषित हैं, उनके कर्म बर्बाद हो गए। अतः उन्हें इस दुनिया में या आख़िरत में उनसे कोई लाभ नहीं होगा। क्योंकि वे अल्लाह पर ईमान नहीं रखते हैं। तथा उनके लिए कोई सहायक नहीं होंगे, जो उनसे अज़ाब को टाल सकें। info
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এই পৃষ্ঠাৰ আয়াতসমূহৰ পৰা সংগৃহীত কিছুমান উপকাৰী তথ্য:
• من أعظم ما يُكفِّر الذنوب ويقي عذاب النار الإيمان بالله تعالى واتباع ما جاء به الرسول صلى الله عليه وسلم.
• पापों का प्रायश्चित करने और आग की यातना से बचाने वाली सबसे बड़ी चीज़ों में से एक अल्लाह पर ईमान और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की लाई हुई शरीयत का अनुसरण है। info

• أعظم شهادة وحقيقة هي ألوهية الله تعالى ولهذا شهد الله بها لنفسه، وشهد بها ملائكته، وشهد بها أولو العلم ممن خلق.
• सबसे बड़ी गवाही और सच्चाई अल्लाह की उलूहियत अर्थात् अल्लाह का एकमात्र इबादत के लायक़ होना है। इसीलिए अल्लाह ने स्वयं इसकी गवाही दी तथा उसके फरिश्तों ने इसकी गवाही दै। और उसकी सृष्टि में से ज्ञान वाले लोगों ने भी इसकी गवाही दी। info

• البغي والحسد من أعظم أسباب النزاع والصرف عن الحق.
• अत्याचार और ईर्ष्या, विवाद एवं सत्य से मुँह फेरने के सबसे बड़े कारणों में से हैं। info